*मौजूदा सरकार नहीं कर पा रही किसानों के साथ न्याय किसानों के प्रति किए गए सरकार के दावे फेल    *----------------------------*                                              *(मंहगाई में टूटते किसान ,  सरकार की व्यवस्था कर रही हैरान)*                                         *----------------------------*                                                  *भारत एक कृषि प्रधान देश है। यह उपाधि किसानों ने भारत को दी है । कोई नेता , विधायक,सेठ , साहूकार ने नहीं ,किसानों ने अपनी मेहनत और खून- पसीना बहाकर यह उपाधि भारत को दी है ।आज उन्हीं किसानों की ऐसी दुर्दशा देखने को मिल रही है कि आत्महत्या कर ले रहे हैं। कारण किसानों की मेहनत का फल न मिल पाना । किसान मेहनत भले ही करें लेकिन फायदा सेठ, साहूकारों वह अन्य लोगों का फायदा होता है ।उसको तो दो वक्त की रोटी में अभी भी सूखा यानी नमक रोटी ही खानी पड़ती है ।अपनी मेहनत से फसल, सब्जी, तिलहन का उत्पादन करने वाला किसान आखिर कब तक दंश झेलेगा  । कुछ मालूम नहीं है किसान जब खेतों में अनाज पैदा करता है उसके बाद बाजार में ले जाता है तो मूल्य सुनकर सूख जाता है। सोचो आज 40 से ₹50 किलो आलू मिल रही है प्याज ₹70 प्रति किलो, मटर ₹60 किलो, टमाटर ₹50 किलो, ₹40 किलो गोभी, परवल, धनिया, अदरक, पालक, मूली, लौकी , इत्यादि सब्जियां 40 से 100 के मध्य चल रही हैं। ऐसे में किसान कैसे सब्जी खा सकता है क्योंकि धान की कीमत घटाकर ₹8 से ₹12 किलो कर दिया गया है जबकि 1200 से 1400 सौ रुपए डाई  ₹400 प्रति बोरी यूरिया, ₹1020 प्रति घंटे की एकबारगी की जोताई , 1200 से 2000 तक कीटनाशक दवा यानी एक बीघा खेती करने के लिए ₹10000 की लागत लगाकर मेहनत करता है रोग प्रकोप लगाकर एक बीघे में 10 कुंतल गल्ला पैदा कर लेता है तो मात्र आज के मूल्य से मात्र ₹12000 का अनाज पैदा कर पाता है। बताइए 10000 लगाकर मात्र 4 महीने में ₹12000 मिले 10000 लागत निकाल दे तो 4 महीने में ₹2000 प्राप्त कर किस हिसाब से अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करे ।यह सरकार व सेठ ,साहूकारों को नहीं दिखेगा। इसमें तो मेहनत करने वाला मुजरिम बनकर हर दुख को बर्दाश्त करता है। इस तरह किसानों के गल्ले पर सारी संस्थाएं, सेठ -साहूकार व सरकार स्वयं कुबेर बनकर बैठे हैं और किसानों को बेवकूफ बना रहे हैं। किसानों की ऐसी दयनीय स्थिति लाने के लिए जिम्मेदार सरकार है जो कहीं ना कहीं किसानों के हित के परे सोच रही है*




*अमेठी रिपोर्ट संतोष त्रिपाठी*

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