विवरण अनुसार सूरज कुमार द्वारा यह आरोप लगाया गया है कि उन्हें उक्त मासूम के इलाज के लिए वांछित ग्रुप का ब्लड समय से मिल जाता तो यहाँ ही कुछ राहत मिल जाती। परन्तु महामाया राजकीय मेडिकल कालेज सद्दरपुर स्थित ब्लड बैंक के प्रभारी डॉ. मनोज कुमार गुप्ता, लैब टेक्नीशियन विनोद वर्मा और काउन्सिलर दीपक नाग द्वारा वैष्णवी गुप्ता (8 वर्ष) को बी पॉजिटिव ग्रुप का ब्लड नहीं उपलब्ध कराया गया, जबकि ब्लड बैंक के स्टोर में उक्त ग्रुप का ब्लड प्रचुर मात्रा में था। यह वाकया 21 अक्टूबर 2020 का है। बी पॉजिटिव ग्रुप का रक्त थैली प्राप्त करने के लिए जिले के प्रमुख रक्तदाता सूरज कुमार गुप्ता ने मेडिकल कॉलेज के रक्त बैंक प्रभारी, लैब टेक्नीशियन और काउन्सिलर से काफी अनुनय-विनय किया परन्तु इन हृदयहीन मेडिकल कर्मियों का दिल नहीं पसीजा। अन्ततः बी पॉजिटिव ग्रुप का ब्लड पैकेट अन्य बैंक से लेना पड़ा। सूरज कुमार ने आरोप लगाया है कि मेडिकल कॉलेज ब्लड बैंक में कार्यरत समस्त स्टाफ रक्त की कालाबाजारी करने में जुटा हुआ है। ये रक्त माफिया 10 से 12 हजार रूपए प्रति यूनिट ब्लड जरूरतमन्दों में बेंच रहे हैं। मरता क्या न करता की स्थिति में मरीजों के परिजन जमीन जायदाद एवं अन्य सामग्रियाँ बेंच तथा गिरवी रखकर रक्तकोष संचालकों द्वारा मांगी गई रकम अदा कर वांछित ग्रुप का ब्लड पाते हैं।
ब्लड बैंक के प्रभारी डॉ. मनोज कुमार गुप्ता उन्होंने कहा कि आरोप सरासर गलत है। एनजीओ संचालक के रिश्तेदार मरीज को बी पॉजिटिव रक्त की कब आवश्यकता थी और कब रिक्वेस्ट लेटर आया था उन्हें इसकी जानकारी नहीं है। जबकि वह 21 अक्टूबर 2020 को पूरे कार्यावधि में ब्लड बैंक में ही उपस्थित थे। उन्होंने कहा कि वह स्वयं अब ब्लड बैंक के प्रभारी के रूप में कार्य करते हुए आजिज आ गये हैं। और इस वजह से वह अपने मूल पद पर वापस जाना चाहते हैं। डॉ. मनोज गुप्ता प्रभारी ब्लड बैंक विभाग महामाया राजकीय मेडिकल कॉलेज सद्दरपुर ने संकल्प मानव सेवा संस्था के प्रबन्धक सूरज कुमार उर्फ बन्टी गुप्ता द्वारा लगाये गये सभी आरोपों का जोरदार खण्डन किया। कहा कि उनके यहाँ के ब्लड बैंक विभाग के सभी लोग कर्मठ और ईमानदार कर्मी हैं। किसी का भी रिश्ता ब्लड माफिया से नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि यदि वास्तविकता से वाकिफ होना है तो ब्लड बैंक का स्टिंग करा लें। सच्चाई अपने आप सामने आ जायेगी। ब्लड बैंक के काउन्सिलर दीपक नाग से सम्पर्क किया तो उन्होंने कहा कि उन्हें दुःख है कि हम मित्र होते हुए भी सूरज कुमार की कोई मदद नहीं कर पाये। उन्होंने तकनीकी कारणों का हवाला देते हुए कहा कि अनुरोध पत्र के साथ प्रेषित ब्लड की मात्रा कम थी ऐसे में ग्रुप की जाँच कर विभागीय नियमानुसार वास्तविकता पता करना कठिन था। इसलिए लैब टेक्नीशियन विनोद वर्मा ने वांछित ग्रुप का ब्लड नहीं दिया। जबकि एक मित्र होने के कारण उन्होंने स्वयं ब्लड बैंक के लैब टेक्नीशियन विनोद वर्मा से वैष्णवी गुप्ता (8 वर्ष) के लिए मांगे गये बी पॉजिटिव ग्रुप का ब्लड देने का अनुरोध किया था। दीपक नाग ने कहा कि मुझे बेहद दुःख है कि सूरज गुप्ता जैसे समाजसेवी प्रमुख रक्तदाता एनजीओ संकल्प मानव सेवा संस्था के प्रबन्धक को उनके स्वयं के रिश्तेदार के लिए रक्त नहीं मिल सका। सम्बन्धित आरोपों के बारे में महामाया राजकीय मेडिकल कॉलेज ब्लड बैंक विभाग के लैब टेक्नीशियन विनोद वर्मा से वार्ता किया तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि उन्हें बेहद दुःख है कि वह 21 अक्टूबर को वैष्णवी नामक 8 वर्षीया जरूरतमन्द को रक्त उपलब्ध नहीं करा सके। हालांकि यदि चाहा जाता तो मानवता के आधार पर बी पॉजिटिव ग्रुप का रक्त पैकेट आसानी से दिया जा सकता था। उन्होंने कहा कि ब्लड बैंक के प्रभारी डॉ0 मनोज गुप्ता ने बड़े ही सख्त नियम बना रखे हैं, उन नियमों को तोड़ना या उनके आदेशों की अवहेलना करना ब्लड बैंक विभाग के किसी कर्मचारी के वश की बात नही है। लैब टेक्नीशियन वर्मा ने कहा कि सूरज कुमार का मलाल जायज है। यह आरोप लगाना कि ब्लड माफिया रैकेट में मैं भी शामिल हूँ यह गलत है, इसका मैं खण्डन करता हूँ।
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