मित्रता ऐसी
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नहीं  होते  जिनके  मित्र खास ,
लोग  वो  बहुत  होते  उदास
आता  है जब  कोई  अवसर
तब एकांत में  रोते जी  भर!

काश! होता ऐसा मित्र मेरा भी
जो मेरा  साथ  हमेशा  देता,
होती  उदास जो मै मुझे हंसाता
अच्छा मित्र बनकर सामने आता!

बाटता  दुःख  दर्द   सभी
मुझको अपना सा लगाता,
छुपाती गम जो कभीअपने
बिन कहे  सब समझ जाता!

बनकर वो  कान्हा सा मित्र 
मेरी     लाज      बचाता,
आकर  भरी  सभा  में वो
दुष्टों  को  दूर   भगाता!

छलके   जो  मेरे  आँसू तो
ह्रदय  उसका  भी   रोता,
मुश्किल  घड़ी   में   वो 
अाकर मेरी ढाल बन जाता!

कलयुग  है  ऐसा   आया,
मित्रो  ने  रंग  भी दिखाया
मित्रो ने ही  अपने  मित्रों
को कर  दिया  है पराया !

किस्से  कहानी  सुने   ऐसे,
मदद     करते  ना   कोई ,
हैं  जब  विपदा    आती
मित्र पड़ा कही  दूर दिखाई!

जो   खून  के  हैं रिश्ते,
यूं   तोड़ें  नहीं   जाते
आधे  सफर   में  ही,
छोड़ें  नहीं  यूं  जाते!

 इस  जहाँ  में  मैं  भी 
दिखाऊं  मित्र  बन  के,
जहाँ  में  सभी  के   बीच 
मैं दिखाऊं सहारा बनके!

मित्र ,मित्र  का   रिश्ता,
है पावन जहां में  सबसे
सलामत रहे  ये  रिश्ता,
करती  दुआ  ये  रब से!
प्रियंका द्विवेदी 
मंझनपुर कौशाम्बी

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