आलू की फसल को अगेती, पिछेती झुलसा रोग से बचाये।
बहराइच 18 नवम्बर। जिला उद्यान अधिकारी पारसनाथ ने बताया कि जनपद में आलू के अच्छे उत्पादन हेतु सम-सामयिक महत्व के कीट, व्याधियों का उचित समय पर नियंत्रण नितान्त आवश्यक है। आलू की फसल को अगेती, पिछेती झुलसा रोग के प्रति अत्यन्त संवेदनशील होती है, प्रतिकूल मौसम विशेषकर बदलीयुक्त बूॅदा-बाॅदी एवं नम वातावरण में झुलसा रोग का प्रकोप बहुत तेजी से फैलता है तथा फसल को भारी क्षति पहॅुचती है।
उन्होंने आलू उत्पादक किसानों को सलाह दी है कि आलू की अच्छी पैदावार प्राप्त करने लिए सावधानी अपनायें। अगेती झुलसा रोग का प्रकोप निचली पत्तियों से प्रारम्भ होता है, जिसके फलस्वरूप गहरे भूरे, काले रंग के कुण्डाकार छल्लेनुमा धब्बे पड़कर सूखकर टूट जाते हैं। पिछेती झुलसा रोग के प्रकोप से आलू की फसल को विशेष क्षति होती है। इस रोग से पत्तियाॅं सिरे से झुलसना प्रारम्भ होकर 2 से 4 दिन के अन्दर ही सम्पूर्ण फसल को नष्ट हो जाती है। बदलीयुक्त 90 प्रतिशत से अधिक आर्द्र वातावरण एवं कम तापक्रम पर इस रोग का प्रकोप बहुत तेजी से फैलता है। आलू की फसल को पिछेती झूलसा रोग से बचाने के लिए जिंक मैगनीज कार्बामेट 2.0 से 2.5 किग्रा0 को 800 ली0 पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से रक्षात्मक छिड़काव बुवाई के 30-45 दिन बाद अवश्य करें।
डीएचओ ने यह भी बताया कि रोग के नियंत्रण हेतु दूसरा एवं तीसरा छिड़काव काॅपर आक्सीक्लोराइड 2.5 से 3.0 कि0ग्रा0 अथवा जिंक मैगनीज कार्बामेट 2.0 से 2.5 कि ग्रा0 मेें से किसी एक का चयन कर 800-1000 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से 10 से 12 दिनों के अन्तर पर करें। दूसरे एवं तीसरे छिड़काव के साथ माहू कीट का नियंत्रण आवश्यक है। इसके प्रकोप से आलू बीज उत्पादन प्रभावित हो सकता है इसलिए दूसरे एवं तीसरे छिड़काव के साथ कीटनाशक रसायन जैसे-डायमेथाएट 30 ई0जी0 या मिथाइल-ओ-डेमेटोन 25 ई0सी0 1.0 ली0 प्रति हेक्टेयर की दर से अथवा मोनोक्रोटोफास 36 ई0सी0 750 मि0ली0 को प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाकर छिड़काव करेे।
बहराईच ब्यूरो राम कुमार की रिपोर्ट।
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