मुक्तक
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सदा  ही  भावनाओं की 
हँसी  महफ़िल  सजाना ,
इशारों   ही   इशारों   में 
कभी      बातें    बनाना ,
दबी जो ख्वाहिशें मन में
पुनः     हँसने      लगेगी ,
तुम्हारा   मुस्कुरा  करके
हमारे      पास     आना !

अकेले  अकेले   यूँ 
बातें       बनाना ,
कभी   रूठ   जाना 
कभी मान जाना ,
चुराने   की   आदत 
दिलों को तुम्हारी ,
सदा  इस तरह रोज
सपने    सजाना !

सार जीवन  का सारा 
तुम्हारे   लिए ,
प्यार दिल में बसा जो
तुम्हारे   लिए ,
शब्द को  मैं सजाकर
बनाया जिसे ,
प्रेम का  हार वह भी 
तुम्हारे  लिए !

जख्म पे जख्म हम यार
सहते गये ,
संग   धारा  मिली  और 
बहते गये ,
चांदनी    रात    में   दूर 
तुम जो हुए ,
आँसुओ  से  नयन रोज 
भरते गये !

कब न जाने  कहाँ रात 
हो ही गई ,
दो  घड़ी  की मुलाकात 
हो ही गई ,
होंठ   काँपे  मगर  मौन
हो ही गये ,
बात आँखों में आँखों से 
हो ही गई !

चाँद  जाने  न  क्यूँ  मुझसे 
नराज है ,
आज तारों की तवियत भी 
नासाज है ,
इस जमाने को  मुझसे हुई 
क्यों जलन ,
प्यार  तेरा  मुझे  जो मिला 
आज    है !

ये   आँखों   का   बंधन 
तुम्हारे लिए ,
दिलों  की   ये  धड़कन
तुम्हारे लिए ,
आज सपनो में स्वागत 
तुम्हरा प्रिय ,
मन    तुम्हारा     हुआ ,
तुम्हारे लिए !

आते सब पास मगर  
दूर   चले   जाते   हैं ,
जो      थे     अकेले 
अकेले  रह  जाते  हैं ,
दिल का ये दर्द भला 
किसको दिखायें हम ,
अपना ही बनकर जो 
जख्म   दे   जाते   है ।

कहूँ  कैसे  हमारी  रूह  में 
बसने     लगे      हो     तुम ,
जिगर में बन कहीं खुशियाँ 
सनम  हँसने  लगे  हो  तुम ,
जरा  सा पास  आ दिल से
लगा लो आज तुम मुझको ,
हृदय  में  आज नूतन गीत
फिर  रचने   लगे  हो  तुम !

सांसो  का   सांसो  से 
बन्धन  अजीब है ,
दिल में जो उठता वह
कंपन  अजीब  है ,
एहसाह  खास   बहुत
होते   हैं   प्रियंका ,पाप
बन जाना दिल के भी
धड़कन अजीब है !

तेरी  मुस्कान  सनम 
मेरी    कमजोरी   है ,
मेरी  ये  बचपन  की 
प्रीति  बहुत  कोरी है ,
इतना समझ लो बस
आप  इस  बात  को ,
चुप हो  जुबान भले 
पक्की  ये  डोरी  है !

प्रियंका द्विवेदी 
मंझनपुर कौशाम्बी ।

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