अजंता की मूरत हो तुम 
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धरा की जरूरत हो तुम
क्या कहूँ ,क्या लिखूँ 
प्रिय तुम्हारे  लिए ,
सच कहूँ तो 
अजंता की मूरत हो तुम !

जाम से ये भरे हैं 
तुम्हारे नयन ,
फूल से भी सुकोमल 
तुम्हारा बदन ,
प्रिय तेरी बड़ी है 
निराली छटा ,
गेसुओं में समाई है 
काली घटा ,
चाँद की चाँदनी ,
राग की रागिनी ,
श्वेत कलियों से भी 
खूबसूरत हो तुम !
सच कहूँ तो 
अजंता की मूरत हो तुम !

फूल  खिलते  चमन  में 
तुम्हारे लिए ,
नित निकलता है सूरज 
तुम्हारे लिए ,
श्याम आँखों मे मदिरा 
छुपाए हो तुम ,
लाल  ओठों  में  अमृत 
बसाए हो तुम ,
तुम विहंसती कली ,
प्रेम में हो ढली ,
कामनाओं की मेरी 
जरूरत हो तुम !
सच कहूँ तो 
अजंता की मूरत हो तुम !

प्रियंका द्विवेदी 
मंझनपुर कौशाम्बी

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