अम्बेडकर नगरग।  सन 2012 मे निर्भया कांड के बाद देशवासियों को उम्मीद थी कि ऐसी घटनाओं पर रोक लगाने के लिए सरकारें नए कानून लाएंगी, दोषियों पर सख्त कार्यवाई की जाएगी और बलात्कार की घटनाएं रुक सकेंगी। आठ साल बीत जाने के बाद भी देश में ऐसी घटनाओं में कोई कमी नहीं आई है। एक तरफ देश के प्रधानमंत्री 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' की मुहिम चलाकर बेटियों की जनभागीदारी सुनिश्चित करने का दावा करते हैं, लेकिन बेटियों की सुरक्षा के लिए अभी तक कोई कारगर कानून नहीं लाया जा सका। दो सप्ताह पहले हाथरस में एक बेटी के साथ हाथरस में एक बेटी के साथ और उसके बाद बलरामपुर में एक छात्रा के साथ हुई दर्दनाक घटना ने सब को विचलित कर दिया है और लड़कियों की सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। देश में बलात्कार और महिला उत्पीड़न की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं और दोषियों को सजा के बजाय प्रकारांतर से पुलिस का संरक्षण मिल जाता है।  अगर अभी भी इस विषय को अगर अभी भी इस विषय को गंभीरता से नहीं लिया गया तो महिलाओं का घर से बाहर निकलना दुष्कर हो जाएगा।  दो-चार दिन सोशल मीडिया पर पीड़िता के लिए न्याय की गुहार लगाकर और मोमबत्ती मार्च निकालने के बाद लोग घटना को भूल जाते हैं।  और प्रशासन भी शिथिल पड़ जाता है।  आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहता है और जब तक दोषियों को सजा मिलती है तब तक ना जाने कितनी लड़कियों के साथ दुर्व्यवहार हो चुका होता है। मानवता को शर्मसार करने वाली घटनाओं के दोषियों को कड़ी से कड़ी और त्वरित सजा मिलनी चाहिए।  सरकार को महिलाओं से छेड़छाड़ और बलात्कार जैसे अपराधों को पूरी तरह रोकने के लिए कड़े कानून बनाने चाहिए, ताकि समाज में संदेश जाए कि ऐसे अपराधों के लिए किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा। तभी शायद पीड़ितों को उचित न्याय मिल सकेगा और ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगेगा।


हिन्दीसंवाद के लिए विकाश कुमार निषाद जलालपुर अम्बेडकर नगर

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