प्रणय निवेदन
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तुम प्रेम - गीत मेरे बन जा
मैं  राग मिलन की  बन जाऊँ !
तुम चन्द्र हृदय-नभ के मेरे ,
मैं ज्योति नयन की बन जाऊँ !

अब चलो घटा के पार जहाँ
हो तना आसमां का वितान ,
है  हेमकुम्भ अब बुला रहा 
इतिहास खड़ा देदीप्यमान ।

बन  जाओ  सागर  की  तरंग 
उठते - गिरते   बढ़ते   जाओ ,
पर  मोती  तुझे   मिलेंगे  तब 
जब अतल क्षोर तक जा पाओ ।

बारिश में भींगे संग - संग
आँखों से आँख मिला झूमे ,
पानी   में    कश्ती   तैरायें 
ख्वाबों की हम पलकें चूमें ।

बाहों  में  भरकर  प्यार करो
ले  चलो  जहाँ  से  दूर कहीं ,
ऐसी  दुनियाँ   अलबेली  हो  
हो प्यार जहाँ कुछ और नहीं ।

टूटे  अरमान  जगा  लो तुम 
मैं   टूटी  आस   जगा  लूँगी ,
ओ  मेरे  मन  के  पँछी आ
आँखों  में तुझे  सजा लूँगी !

इस जीवन को  हम धन्य करें
अब सकल साधना साध चलें ,
दीपक बनकर तुम आज जलो !
अब  भव  सागर के  पार चलो !

प्रियंका द्विवेदी .

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