हौसले के दम पर गरीबी को मात देते हुए खासकर महिलाओं, किशोरियों लिए प्रतिभा प्रेरणदायी बन गई हैं। बात 2001 की है। सिविल लाइन रोड निवासिनी स्नातक प्रतिभा ने एक हजार रुपये और पति के 1500 की कुल जमा इनकम से जिंदगी की शुरूआत की। ढाई हजार रुपये में दो बच्चों व पति-पत्नी सहित चार सदस्यों का गुजारा बमुश्किल ही हो पाता। आत्म बल भी तब शायद बेहद कमजोर रहा। लोगों के बीच में बोलने में पसीने छूटने लगते। घोर निरशा के दौर थे। लेकिन इसी बीच अंदर से हिम्मत भी पैदा हुई। यूनिसेफ की गरिमा परियोजना से जुड़ने का मौका मिला। एडीएसएस संस्थान ने प्रतिभा का खूब सहयोग किया। कुछ ही दिनों में दब्बू प्रतिभा सहासी और अच्छी वक्ता बन गईं। 440 किशोरियों के ग्रुप का लीड करने लगीं। स्वच्छता प्रबंधन से लेकर महिला स्वरोजगार,कुटीर उद्योग, उद्यमिता विकास आदि क्षेत्र में महिलाओं को जागरुकता व स्वावलंबन का पाठ पढ़ाते हुए खुद भी आर्थिक रुप से आत्मनिर्भर बन चुकी हैं। 25 हजार रुपये सेलरी है। बेटी बीएसई कर रही है जबकि बेटा बीएसई करके बैंकिंग सर्विस की तैयारी कर रहा है। आदिवासी महिलाओं को बना रहीं जागरूक : प्रतिभा अब अपने जिले के साथ ही सोनभद्र और चंदौली जिले के दुरूह आदिवासी क्षेत्रों में महिलाओं का समूह बनाकर उन्हें नारी सशक्तिकरण से जोड़ कर जागरुक कर रहीं हैं।

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