तुम्हारी बेटी
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मै ही हु माँ अंश तुम्हारा
मै ही हु माँ प्यार तुम्हरा
साझा खुशियो से भरा,
संसार तुम्हारा,मै
तुम्हारी बेटी ......
माँ आँगन की तेरे, एक
सुंदर सी गुड़िया थी मैं,
बाबूजी कहकर बुलाते थे,
प्यारी - प्यारी रानी बिटिया।
आँखें खोली जब से मैने
स्नेह प्यार बहुत बरसाया,
अपनी प्यारी सी बाहों में,
झूला मुझे खूब झुलाया ।
मेरे सारे नख़रे को,
नाजों को खूब उठाया,
पल-पल मेरी ज़िद को,
हर बार पूरा करवाया।
हर बार पूरा किया अरमान
पलकों पर खूब बिठाया
बेटी नही बेटा हु मै उनका
हर बार एहसाह कराया।
बीत गए हैं अब बरसों,
घर आँगन को छोड़े,
आँखें पल-पल नम होती,
जब याद घर की सताती
माँ के स्नेहिल आँचल,
और पकवानों की खुशबू,
हर पल मुझे रुलाते,
पल -पल मुझे सताते।
थक - सी बहुत गयी हूँ,अब
आना है अब तेरे आँगन,
गाँव की अपने सोंधी खुशबू
में महकाने फिर अपना बचपन।
बड़े -बड़े इन जंगल में,
अब मन बहुत आकुलाता,
घर - गाड़ी सुख साधन से,
बढ़ती हर पल व्याकुलता।
काश! अगर चिड़िया मैं होती,
हर रोज तुम्हारे आँगन आती,
तेरे प्रेमभरे के आँचल की,
शीतलता में रोज सो जाती
जिसपर जीवन को वारा, कभी नहीं था वो अपना
परायों के बीच में रहकर,
खोया अपना हर एक सपना।
आज बिटिया बहुत व्यथित है
माँ स्मृति तुम्हारी आयी है,
अब दौड़ तुम्हारे आँचल,
आकर के छिप जाना है।
प्रियंका द्विवेदी
मंझनपुर कौशाम्बी
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