वाराणसी : त्रिलोक से न्यारी काशी की बात निराली है। यह महादेव की नगरी के नाम से दुनिया में जानी जाती है। भोले की काशी में शक्ति के कई चमत्कारिक केंद्र हैं। इनके बारे में जानकर एक बारगी हर कोई हैरान रह जाता है। लेकिन यहां आने के बाद हर किसी का देवी के चमत्कार पर यकीन बढ़ जाता है। ऐसा ही एक चमत्कारिक शक्ति स्थल है प्राचीन दुर्गा बाड़ी। यहां 253 साल पुरानी मां दुर्गा की प्रतिमा आज तक विसर्जित नहीं हो सकी है।वाराणसी के बंगाली टोला मुहल्ले में स्थित दुर्गा बाड़ी में लगभग पांच फीट ऊंची इस दुर्गा प्रतिमा की स्थापना मुखर्जी परिवार ने 1767 में की थी। 9 दिनों तक मुखर्जी परिवार ने पूरे विधि-विधान से देवी की पूजा-अर्चना की। मुखर्जी परिवार की पूजा और श्रद्धाभाव से देवी कुछ इस कदर प्रसन्न हुईं कि तब से यहीं बस गईं।

हेमंत कुमार मुखर्जी ने बताया कि विजयादशमी पर जब देवी के विसर्जन के लिए लोगों ने इस प्रतिमा को उठाना चाहा तो प्रतिमा अपने स्थल से नहीं हिली। शुरुआत में 15 से 20 लोगों ने ये प्रयास किया, बाद में 50 से 100 आए तब भी देवी की प्रतिमा को हिला न सके।मुखर्जी परिवार के सदस्य हेमंत कुमार मुखर्जी ने बताया कि उसी रात परिवार के मुखिया को मां में स्वप्न में दर्शन दिया। इस दौरान देवी ने मुखर्जी परिवार के मुखिया से नहीं जाने की बात कही। बस तब से देवी की माटी की यह प्रतिमा यहीं विराजमान है।मां की महिमा सुन नवरात्र में दूर-दूर से श्रद्धालु देवी के दर्शन को यहां आते हैं। यूं तो हर दिन देवी की पूजा-अर्चना की जाती है लेकिन नवरात्र में नौ दिन देवी का विशेष पूजन होता है। श्रद्धालु भी मानते हैं कि देवी के दर्शन से मुंहमांगी मुराद पूरी होती है।आईआईटी बीएचयू के प्रफेसर पी के मिश्र ने बताया कि आमतौर पर मिट्टी, पुआल और बांस की बनी प्रतिमा बहुत दिन तक नहीं रह सकती। ऐसे में 253 सालों से मिट्टी की बनी यह प्रतिमा कैसे बिल्कुल ठीक है यह शोध का विषय हो सकता है।

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