आपसे मिले बिना ही हमने साक्षात्कार कर लिया।
चुपके से हृदय में रखकर यूँ आपके कार्य पर अधिकार कर लिया।
प्रेम की पीड़ा, अश्रु मीठे, आँखों को धुंधला कर देते ।
एक आपके साक्षात्कार के लिए हर पीड़ा को स्वीकार कर लिया।
रूखी अल कें भीगीं पलकें
खोई,खोई सी आँखें
पास नही है कोई दर्पण पर देखो श्रृंगार कर लिया।
दीया बाती, चिट्ठी पाती, सारे दुख अब दूर हुए
अपने से ही छुप छुप कर हमने, आपके साक्षात्कार का अभिसार कर लिया।
अपने ही ख्वाबो के झरोखों में ,
बिन देखे तुझे, तुझपे अधिकार कर लिया।
सपनो से तुझको हक़ीक़त में लाकर,
भावनाओं का अंबार कर लिया।
सुबह की भीनी सी खुशबू में
महकता सा हर पल गुलज़ार कर लिया।
दूर होकर भी तुझसे यूँ ,
तेरी यादों पर ऐतबार कर लिया।
प्रियंका द्विवेदी
मंझनपुर कौशाम्बी
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