शास्त्र संकेत कर रहे हैं कि शनि का रोहिणी नक्षत्र पर आना वेश्विक स्तर पर युद्ध की स्थितियों का निर्माण कर देता है.
जब भी शनि वृषभ राशि में आता है तो विध्वंसक स्थिति का निर्माण हो जाता है. लेकिन व्यवहार में ऐसा पाया गया है कि इस राशि में यदि राहु-केतु भी गोचर करते हैं तो शनि के गोचर के समान ही विध्वंसक परिणाम देते हैं.
अठारह वर्ष बाद राहु पुनः वृषभ राशि में 23 सितम्बर, 2020 को प्रवेश कर रहा है और वो यहाँ 12 अप्रैल, 2022 तक रहेगा. शनि पहले से ही मकर राशि में प्लूटो के साथ बैठा है, जहाँ 22 नवम्बर, 2020 को नीच का गुरु भी गठजोड़ करने आ जायेंगे. दक्षिण भारत में आपस में त्रिकोण राशियों में बैठे ग्रहों को एक साथ बैठा हुआ मानकर कुण्डली विचार करते हैं. इस दृष्टि से राहु, शनि, गुरु व प्लूटो एक साथ माने जायेंगे. यही नहीं, स्वतंत्र भारत की कुण्डली में तृतीय भाव में कर्क राशि में सूर्य, चन्द्र, बुध, शुक्र और शनि बैठे हैं. ये सभी पाँच ग्रह गोचर के शनि, गुरु प्लूटो से बुरी तरह प्रभावित होंगे. कुण्डली में तीसरा घर पराक्रम का भी है और पड़ोसियों का भी है. यह भाव सीमा विवाद और सशस्त्र बल का भी प्रतिनिधित्व करता है. इस समय विशेष में बहुत संभव है कि भारत को अपने पड़ोसी देशों के साथ सीमा विवाद को लेकर अपने सशस्त्र बलों के द्वारा अपना पराक्रम दिखाने की नौबत आ जाये. भगवान न करे की हालात खराब हों, पर अगर स्थितियाँ खराब होती हैं तो वे देश या लोग चपेटे में अधिक आ जायेंगे, जिनकी जन्म कुण्डली में वृषभ, वृश्चिक, कर्क और मकर राशि में पापी ग्रह बैठे होंगे.
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