भारतीय राजनीति में आमूलचूल परिवर्तन के लिए चुनाव लड़ने वाले हर व्यक्ति की योग्यता उसी प्रकार निर्धारित की जानी चाहिए जैसे किसी प्रशासनिक अधिकारी बढ़ने के लिए उसे प्रतियोगी परीक्षाओं और साक्षात्कार ओं का सामना करना पड़ता है।

लेकिन यह प्रक्रिया चुनाव लड़ने वाले सांसदों विधायकों और किसी भी दूसरे पद के उम्मीदवारों के ऊपर लागू नहीं होती जिसका भयानक परिणाम यह होता है कि महामूर्ख और अपराधी सरेआम अपनी ताकत और गुंडागर्दी के बल पर चुनाव में खड़े होते हैं और किसी भी प्रकार की योग्यता नहीं होने के कारण समाज के लिए अभिशाप बन रहे हैं।

इस स्थिति में भारत की पूरी राजनीति को अपराधी तत्वों का अखाड़ा और षड्यंत्रकारी लोगों की चरागाह बना दिया है जिनको अपना स्वार्थ सिद्ध करने के अलावा कुछ भी आता जाता नहीं है।

दुर्भाग्य की बातयह है कि जब इस प्रकार के लोग विधायक और सांसद बनकर सरकार चलाने लगते हैं तो प्रशासनिक अधिकारियों को इनके नियंत्रण में रहकर काम करना पड़ता है और अंतिम निर्णय का अधिकार भी इन्हीं लोगों के पास होता है।

इस प्रकार की भारी कमी के कारण देश की लोकसभा का सवाल हो या सभी प्रांतों की विधानसभाओं और सरकारों का सवाल हो सभी अयोग्य और महामूर्ख लोगों का अखाड़ा बनकर रह गई है जहां पर जनकल्याण की कोई व्यापक चर्चा भी असंभव हो चुकी है

यह सब बर्थडे और देखने की बात है कि एक ओर तो देश में पढ़े लिखे शिक्षित नौजवानों की भारी उपेक्षा हो रही है तो दूसरी तरफ अपनी गुंडागर्दी और धन की ताकत के बल पर महामूर्ख लोग पूरे देश की जनता का भाग्य फ़ोड़ रहे हैं।

इसलिए यदि हम अपने आप को जागरूक नागरिक मानते हैं तो हमें खुद आगे आकर इस प्रकार के जटिल मुद्दे पर जनता को जागरूक करना चाहिए जब तक समझदार और पढ़े लिखे लोग देश का नेतृत्व नहीं संभालेंगे तब तक देश का भाग्य बदलने वाला नहीं है और समाज की असली समस्या क्या है इस पर भी कोई चर्चा नहीं हो सकती। लेकिन अगर इस दिशा में लोग सक्रिय होकर लगातार विचार करने लगे तो यह बात निश्चित है कि जनता का दबाव बढ़ेगा और अंत में किसी भी चुनाव में खड़ा होने के लिए योग्यता के मापदंड को अनिवार्य बना दिया जाएगा जिससे महामूर्ख और दलाल किस्म के लोग समाज के भविष्य को बर्बाद नहीं कर पाएंगे और उसका परिणाम देश की जनता के पक्ष में अवश्य दिखाई पड़ने लगेगा।

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