किसानो की खुशहाली के लिये न्यूनतम समर्थन मुल्य का कानून बनाये केन्द्र सरकार। जयराम पान्डेय

सरकार की जन विरोधी नीतियो से हताश व परेशान है अन्नदाता किसान

         लोक दल के राष्ट्रीय प्रवक्ता जयराम पान्डेय ने केन्द्र सरकार को आड़े हाथो लेते हुये कहा कि दिन भर हाड़ तोड़ मेहनत करके अपनी छोटी सी जमीन पर खेती कर के देश की अर्थव्यवस्था में अहम योगदान देने वाला किसान जब खेती करना शुरू करता है तो उसके सामने मुश्किलों का एक बहुत बड़ा पहाड़ खड़ा रहता है।

       बड़े किसानों की अपेक्षा भारत में लघु और सीमांत किसानों की संख्या आज भी सबसे ज्यादा है। वर्ष 2011 की कृषि जनगणना के अनुसार भारत में किसानों की कुल जनसंख्या में 18 प्रतिशत लघु किसान हैं। जबकि 68 प्रतिशत सीमांत किसान परिवार हैं।

    लघु किसान वे हैं जिनके खेत के जोत का आकार एक से दो हेक्टेयर (02 से 05 एकड़) तक होता है। जबकि सीमांत किसान वे हैं जिनके जोत का आकार एक हेक्टेयर (2.5 एकड़) से भी कम है। ऐसे में छोटे जोत वाले किसान के लिए बदलते दौर में खेती करना दिन ब दिन मुश्किल होता जा रहा है। यही कारण है कि देश के 19 राज्यों में 48 फीसदी किसान परिवार नहीं चाहते कि उनकी आने वाली पीढ़ी खेती करे। 

      पिछ्ले कई वर्षो से सरकार हर वर्ष फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करती चली आ रही है, लेकिन यह सरकारी कीमत सिर्फ छह प्रतिशत किसानों को ही लाभ दे पाती है।  गेंहू और धान में सरकार ठीक से खरीद करती है लेकिन कई अन्य फसलों में सरकार बस न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा कर के सो जाती है। किसान को यह समर्थन मूल्य मिल सके इसकी कोई व्यवस्था आज तक नहीं की जा सकी है। 

  लोक दल यह मांग करता है कि  किसानों की उत्पादित फसलो के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य को एक कानूनी अधिकार बनाया जाना चाहिए। इसे तय करने वाली सरकारी संस्था ‘कृषि लागत एवं मूल्य आयोग’ यानी सीएसीपी को कानूनी दर्जा दिया जाना चाहिए और उसकी सिफारिशें सरकार पर बाध्यकारी बनाई जाएं। किसानो की लागत का निर्धारण ठीक से किया जाना चाहिए। उसमें किसान की अपनी मजदूरी और जमीन की लागत भी शामिल की जानी चाहिए। फिर उस लागत में 50 प्रतिशत का मुनाफा जोड़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित होने चाहिए। यह सिफारिश स्वामीनाथन आयोग ने कई साल पहले की थी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी चुनाव से पहले देश के किसानों से यह वादा किया था। लोक दल मांग करता है कि सरकार अपना वादा पूरा करे। जब यह कानूनी अधिकार बन जाएगा तो सरकार को हर किसान को हर फसल पर न्यूनतम समर्थन मूल्य देना पडेगा। आज देश का किसान कर्ज के बोझ से दबा है। कर्ज के कारण ही अधिकांश किसान आत्महत्या कर रहे हैं। अगर इस स्थिति से किसानो को उबारना है तो उसे ऋणों से मुक्त करना होगा- बैंकों का ऋण, सहकारी समिति का ऋण या फिर सेठ साहूकार का ऋण। लोक दल का मानना है कि इस पूरे ऋण को एक बार समाप्त कर दिया जाए। सेठ साहूकारो के ऋण में भी सरकार दखल दे और उसका निपटारा करे। 
  

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