गीत-कहाँ कम हैं
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कहाँ कम है जिंदगी में ,
जो दर्द उपहार दिए जा रहे हो
अरे खुशियाँ, सुकून, मुस्कुराहटें
कभी इनको भी तो लाओ ,
रिश्तों में घुटन, तड़पन क्या कम है, जो तकलीफों के सरगम गुने जा रहे हो ,यहाँ कम है अपनापन
फिर क्यों दूरी दिए जा रहे हो।

ईश्वर की खूबसूरत कृति
इंसान में कमी ढूँढे जा रहे हो,
अरे इसकी खूबसूरती में '
जमाने में दिखाओ न
क्या नहीं मिला तुम्हें धरा पे जो बर्बाद किए जा रहे हो,
धरती का श्रृंगार करो,
 कुछ नए दृश्य देखो कभी।।

जब भी खुश होता है कोई,
 दुःख की धारा बढ़ा देते हो,
अरे सबके खुश रहने की,
 कोई नयी वज़ह बनाओ तो 
इतनी नायाब है ये ज़िन्दगी  
का सफर ख़ुशी को खोजो कभी
इसके स्वागत और सत्कार में अपनी पलकें बिछाओ कभी

 दूसरा  कोई करेगा क्या कमी पूरी 
खुद ही एक नया जहान बनाओ न
खुश होकर अपने के बीच ,
जहाँ किसी में कोई कमी नज़र आने भी लगे,
आगे आकर हिम्मत दिखाओ न

अभी तक कुछ ना कर पाए तो क्या हुआ,
आज ही  दूसरों की गठरी 
सिर पर उठाओ ना l
जो भी पल बीत गए अबतक, जैसे भी बीत गए,
खुश होकर हर पल का
जश्न मनाओ   ना l l

ह्रदय साफ करके अब,
 सबसे मुस्कुरा कर मिलें, 
आओ!सभी तकलीफें भूलकर
सारी   ईर्ष्या   द्वेष भूलकर,
चेहरों की खुशियां बढ़ाते हैं
परेशानी तो बहुत है जग में 
सब मिलकर मुस्कुराते हैं।

क्यों उलझे जाते है,
 पुरानी उलझनों के संग, 
नई  नई प्रेम-डोरी से, 
कुछ तो नया बनो अब
कहाँ कम है ज़िन्दगी में ,
जो दर्द उपहार दिए जा रहे हो।

प्रियंका द्विवेदी
मंझनपुर कौशाम्बी

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