विगत कई वर्षो से देश के लिए एक बेहतर, प्रभावशाली, सशक्त शिक्षा नीति की आवश्यकता और मांग जोरो पर रही है | जिसके पीछे कई कारण रहे है जिनमे से प्रमुख है - शिक्षा और शिक्षक की गुणवत्ता में वृद्धि करना, सबको सामान शिक्षा उपलब्ध कराना, रोजगार उन्मुख शिक्षा का विकास करना, रचनात्मक और शोध के विषय में वृद्धि करना, शिक्षा क्षेत्र में काले धन को वैध बनाने के कार्य को रोकना, शिक्षा में राजनैतिक हस्तक्षेप को कम करना, वैश्विक संस्थानों की रैंकिंग में देश के संस्थानों को लाना, स्वस्थ प्रतियोगिता को बढ़ावा देना, ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा को बढ़ाना, शिक्षा के व्यावसायिक करण और निजी करण पर नियन्त्रण रखना | शिक्षा शुल्क में मनमानी को रोकना | आम जनता से लेकर बड़े घरानों के हितो को यह शिक्षा प्रभावित करती है | इसीलिए इसके आगमन में 34 वर्षो का समय लग गया | पर क्या प्रस्तुत शिक्षा नीति मांग के अनुरूप है ? क्या इस शिक्षा से समग्र विकास संभव है ? क्या निजीकरण पर नियन्त्रण होगा? ऐसे ढेरो प्रश्न है |
भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रति अपनी तटस्थता को सार्वजानिक कर रखा था | जिसके क्रम में आगे बढ़ते हुए सत्ता में आने के पश्चात् अक्टूबर 2015 में टी.एस.आर. सुब्रमनियन के नेतृत्व में एक कमेटी गठित की | इस कमेटी ने मई 2016 में अपनी रिपोर्ट सरकार को दी जिसके प्रमुख सुझाव थे - शिक्षण संस्थानों में अध्यापको को 10 वर्षो के लिए पढ़ाने का लायसेंस देना और प्रत्येक दस वर्ष बाद उसका नवीनीकरण करना, परीक्षा में नंबर देने के स्थान पर ग्रेड/ परसेंटाइल सिस्टम लागू किया जाना, यू.जी.सी. ए.आई.सी.टी.आई. संस्थानों की भूमिका में बड़ा बदलाव करना, शिक्षा पर जी.डी.पी. का वर्तमान खर्च 3 प्रतिशत से बढ़ाकर 6 प्रतिशत करना, अध्यापको की कमी को पूरा करने के लिए, टीचर न्युक्ति के लिए स्वायत्त बोर्ड का बनाया जाना, शिक्षको के प्रशिक्षण के लिए चार वर्ष का बी.एड. कोर्स करना, मिड-डे-मील योजना का विस्तार माध्यमिक विद्यालय तक करना, आल इंडिया एजुकेशन सर्विस बनाना, 10 वी कक्षा के छात्रों के पास गणित, बिज्ञान के अलग-अलग विषयों का पाठ्यक्रम बनाना, ऑनलाइन ऑन-डिमांड बोर्ड परीक्षा कराना, वार्षिक परीक्षा के स्थान पर सेमेस्टर प्रणाली लागू होना | आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए आरक्षित 25 प्रतिशत सीटों का विस्तार अल्पसंख्यक संस्थानों तक किया जाना | कक्षा 12वीं उत्तीर्ण करने के बाद समस्त विद्यार्थियों के लिए एक राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा का प्रावधान किया जाना | ये महत्वपूर्ण सुझाव कमेटी ने दिए थे | पर सरकार ने इस कमेटी की रिपोर्ट को प्राथमिकता न देकर नई कमेटी का गठन कर दिया |
सरकार ने जून 2017 में एक नई कमेटी का गठन किया जिसका नेतृत्व डॉ. कृष्णस्वामी कस्तुरीरंगन (प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक एवं राज्यसभा सासंद है) को दिया गया | कमेटी ने अपनी रिपोर्ट मई 2019 में सरकार को सौपी | मांगे गए सुझाव के, दो महीने से कम की अवधि में 65 हजार से अधिक सुझाव और पिछले एक वर्ष में 2 लाख से अधिक सुझाव राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर लोगो ने दिए | राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को केन्द्रीय सरकार की कैबिनेट की मंजूरी के पश्चात् पिछले कुछ दिनों से मीडिया समेत कई अन्य प्लेटफार्म पर यह विषय चर्चा में है | वजह देश के प्रत्येक घर से इसका हित जुड़ा होना है | 34 वर्षो के पश्चात् शिक्षा नीति को नए स्वरुप में आना कई मायने में लोगो के लिए आकर्षण का भी केंद्र है | इससे पहले शिक्षा नीति 1968 पुनः 1986 में और संशोधित रूप में 1992 में सामने आयी थी | वर्ष 2000 और 2005 में एन.सी.आर.टी. ने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम को बदलकर शिक्षा में सुधार किया था | वर्ष 2009 में शिक्षा के अधिकार के नियम का आना भी शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए जीवन रेखा के रूप में काम करना जैसे ही था | यानि की भले ही 34 वर्षो पश्चात् शिक्षा नीति अब बन पायी हो पर अति आवश्यक सुधार के कार्य समय - समय पर किये गए है |
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के मुख्य आकर्षण है - इस नई नीति का उद्देश्य 2030 तक स्कूली शिक्षा में 100% जीईआर के साथ पूर्व-विद्यालय से माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा के सार्वभौमिकरण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है | स्कूल से दूर रह रहे 2 करोड़ बच्चों को फिर से मुख्य धारा में लाया जायेगा | 5 + 3 + 3 + 4 के नियम पर स्कूली पाठ्यक्रम रहेगा | इंटर्नशिप के साथ कक्षा 6 से व्यावसायिक शिक्षा शुरू किया जायेगा | कम से कम 5 वीं कक्षा तक मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई होगी जहाँ संभव हो 8 वीं तक की जायेगी | समग्र विकास कार्ड के साथ मूल्यांकन प्रक्रिया में पूरी तरह सुधार, सीखने की प्रक्रिया में छात्रों की प्रगति पर पूरी नज़र होगी | उच्च शिक्षा में जीईआर को 2035 तक 50% तक बढ़ाया जायेगा; उच्च शिक्षा में 3.5 करोड़ नई सीटें जोड़ी जाएंगी और पाठ्यक्रम में विषयों की विविधता होगी | उपयुक्त प्रमाणीकरण के साथ पाठ्यक्रम के बीच में नामांकन / निकास की अनुमति होगी | ट्रांसफर ऑफ क्रेडिट की सुविधा के लिए अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट की स्थापना की जाएगी | राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन की स्थापना की जाएगी | संबद्धता प्रणाली 15 वर्षों में चरणबद्ध स्वायत्तता के साथ महाविद्यालयों के लिए चरणबद्ध की जाएगी | राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी फोरम बनाया जाएगा | वाह्य प्रभावशाली सभी बातों का समवेश इस नीति में किया गया है | जबकि कुछ जमीनी मुद्दे और प्रश्नों का जवाब, स्थान इस नीति में नहीं है | शायद यही वजह है की देश के प्रमुख टी.वी. समाचार चैनल इस पर चर्चा करने से बच रहें है | जबकि अनावश्यक मुद्दे चर्चा में बने हुए है |
शिक्षा नीति 2020 की मंजूरी के पश्चात् से ही ढेरो प्रश्न आम जनता से लेकर बुद्धजीवियों में है और ऐसे में सरकार द्वारा शिक्षा नीति 2020 का पूरा डॉक्यूमेंट सार्वजानिक न किया जाना अनेक प्रश्नों को खड़ा कर रहा है | शिक्षा की नीति के कुछ प्रमुख विवरण को प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो की वेबसाइट पर दिए गया है | विगत में सरकार की नीतिया सार्वजानिक क्षेत्र की यूनिट्स को निजी क्षेत्रो के हाथ में बेचने की रही है, जिससे लोग शिक्षा के प्रति भी आशंकित है | कुछ बड़े निजी घरानों को सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र के लिए किया जा रहा सहयोग भी प्रश्नों के घेरे में है | ऐसे में जमीनी जरूरत के सुधार के लिए नीति लोगो को आकर्षित नहीं कर पा रही है | देश में अनेक स्तर पर शिक्षको के पद खाली पड़े है उसके लिए सरकार की नीति मौन है | लगभग 50 प्रतिशत छात्र निजी स्कूलों में है, उनके लिए प्रावधान का स्पष्टीकरण नहीं है | शिक्षक के बिना शिक्षा नीति की सफलता की कल्पना करना अधूरे ख्वाबो को हकीकत मानने जैसा है | शिक्षा के क्षेत्र में निजी क्षेत्रो के बढ़ते वर्चस्व को समाप्त करने के लिए सरकार ने नीति में कोई स्थान नहीं दिया है | एक देश एक सामान शिक्षा, एक शुल्क, एक पाठ्यक्रम की आवश्यकता का भी ध्यान नहीं रखा गया है | आँगनवाड़ी से क्या आवश्यक शिक्षा दी जा सकती है यह बड़ा विषय है | क्या इस शिक्षा नीति से कोचिंग और ट्यूशन का वर्चस्व टूट पायेगा?
कक्षा 3/5/8 में ग्रेड परीक्षा चिंता का विषय है एवं स्वयं / सहपाठी से मूल्यांकन छात्रो के लिए चुनौतीपूर्ण कार्य होगा | निजी स्कूलों की फीस के नियन्त्रण पर न केवल मौन है बल्कि निजी स्कूलों को अंग्रेजी भाषा के नाम पर बढ़ावा मिलेगा | सरकारी एजुकेशन सिस्टम को कैसे बेहतर किया जाएगा, इस पर पालिसी में ध्यान नही दिया गया है | नर्सरी से 12वीं तक फ्री एजुकेशन होगी, कैसे होगी, इस पर भी पॉलिसी मौन है | सेक्टर स्पेसिफिक यूनिवर्सिटी की जरूरत है | जिसके बारे में कोई चर्चा नही है | स्कूलों में छठे ग्रेड से ही व्यावसायिक शिक्षा और इंटर्नशिप लागू करना बड़ी भीड़ को स्वरोजगार में कम उम्र में भेजने का रास्ता खोलने जैसा है, जिससे देश की आबादी दो हिस्सों में बट जाएगी यानि की गावों से अधिकांश स्वरोजगारी निकलेगे, जबकि शहरो से अधिकारी | विदेशी टॉप 100 यूनिवर्सिटी का देश में आना शिक्षा का वैश्विक व्यावसायिक करण करना है जहाँ मूल्यों मान्यताओ से अधिक पैसो का महत्व होगा | मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा को शिक्षा में बढ़ावा देना ठीक है पर प्रमुख प्रतियोगी परीक्षा और पढ़ाई क्या इन भाषाओ में आगे चलकर हो पायेगी ? क्या वैश्वीकरण रोजगार की पूर्ति देश कर पायेगा या विदेशी शिक्षा में भाषा बाधा नहीं बनेगी ?
वर्ष 2000 में, पिछले 50 वर्षो से गिरती शिक्षा व्यवस्था पर स्वर्गीय प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी ने यह अनुभव किया था की सरकार को पैसो से सहूलियत बच्चो को देनी चाहिये न की स्कूल से, जिससे पेरेंट्स अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा मिलने वाली स्कूल में पढ़ा सकें और स्कूल, शिक्षको का वेतन प्राप्त शुल्क से करें | इससे अच्छे स्कूल का विकास होगा जबकि बुरे स्कूल स्वतः बंद हो जायेगे | सरकार बच्चो को स्कॉलरशीप के जरिये ऐसा कर सकती है | यह एक ऐसी विधि है जिसके जरिये सरकारी और निजी स्कूलों में स्वस्थ प्रतियोगिता स्वतः होगी | जरूरत है इस तरह के विकल्पों पर कार्य करने की | शिक्षा क्षेत्र की समस्या सरकरी शिक्षा का प्रभावशाली तरीके से न होना सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है | इस नीति के आने के बाद क्या सरकरी क्षेत्र निजी क्षेत्र की प्रतियोगिता में खड़ा हो पायेगा यह भी सोचनीय विषय है |
प्रश्न आपके हमारे, हम सभी के मन में इस नई शिक्षा पालिसी के भविष्य के प्रभाव और उद्देश्य को लेकर कई है और इसका जवाब समय के गर्भ में छिपा हुआ है | राज्यों का रोल शिक्षा पालिसी को लेकर कितना सार्थक होगा यह भी बड़ा विषय है | वैश्वीकरण की अर्थव्यवस्था और रोजगार में शिक्षा अत्यधिक प्रभावी तभी हो सकती है जबकि इसके लिए आधारिक संरचना, शिक्षक, प्रशिक्षण, पाठ्यक्रम, शुल्क, देश और लोगो की आवश्यकता के अनुरूप बनाया जाये न की विश्व के विकसित देशो द्वारा अपनाई गयी विचारधारा/कार्य प्रणाली को संशोधित रूप में देश में लागू कर देना | देश की स्थिति विदेशो से बिल्कुल अलग है कदम-कदम पर आवश्यकता यहाँ बदल जाती है | आज निजी क्षेत्र शिक्षा को लेकर तेजी से आगे बढ़ रहें है जहाँ उनकी लागत पैसा है जिसकी पूर्ति करना सबके बस की बात नहीं | सरकारी क्षेत्र शिक्षा में दशकों से दिन-प्रतिदिन पिछड़ रहा है, पर उसमे मुलभुत परिवर्तन करने के लिए अभी तक नही सोचा गया है | सरकार को इस बात को भी समझने की जरूरत है की शिक्षा सामाजिक सरोकार का अभिन्न हिस्सा है जिसे किसी भी परिस्थिति में सरकार के नियन्त्रण में रहना चाहिये, पर दुर्भाग्य है की इस क्षेत्र में निजी क्षेत्रो का नियन्त्रण तेजी से बढ़ता जा रहा है जहाँ पैसा प्राथमिक है जिसका भुगतान सबके लिए संभव नही | अभी तक उपलब्ध विवरणों से ऐसा प्रतीत होता है की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 से न केवल शिक्षा महँगी होगी बल्कि निजीकरण और पूंजीवाद को बढ़ावा मिलेगा |
डॉ अजय कुमार मिश्रा
drajaykrmishra@gmail.com
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