कुछ लोग अपनी क्षुद्र राजनीति के लिए कह रहे हैं कि जब संक्रमित 500 थे तो लॉक डाउन लगा दिया लोगों को डंडे मार रहे थे अब 5 लाख से ऊपर हैं तो सब खोल दिया । उन पढ़े लिखे अज्ञानियों को मेरा जवाब है विल्कुल तब लोग डंडे खा रहे थे, पर जब संख्या 500 थी तो 1 लाख लोगों के इलाज की भी क्षमता नहीं थी भारत के पास और आज संख्या 5 लाख भी है तो 5 करोड़ के इलाज की क्षमता रखता है ये भारत देश ।
लॉक डाउन तब इसलिए जरूरी था क्योंकि हमारे पास इतने संसाधन नहीं थे और हमें वो संसाधन जुटाने थे । आज हमारे पास संसाधन भरपूर हैं । सरकार हर आदमी का इलाज कर रही है । ऑलमोस्ट हर केस पर निगरानी रखी जा रही है । आप भूल रहे हैं इटली जैसे संसाधन बहुल राष्ट्र में भी अन्तः चुनाव की स्थिति आ गयी थी कि किसका इलाज किया जाए और किसका नहीं जबकि वहाँ जनसंख्या भारत की आधी भी नहीं है और वर्तमान में भारत की जनसंख्या में बहुत ज्यादा होने के बावजूद सरकार सबका मुफ्त इलाज कर रही है ।
ये गर्व का विषय है ना कि क्षोभ का । आर्थिक मोर्चे पर थोड़े कमजोर जरूर है सरकार पर उसका कारण लिक्विडिटी मनी की कमी है । उम्मीद है इसका भी निराकरण जल्दी ही होगा ।एसी कमरे मे बैठकर सोशल मीडिया पर ज्ञान पेलना बहुत आसान है लेकिन असलियत के धरातल पर आना बहुत मुश्किल है । यह प्राकृतिक आपदा है न कि किसी पार्टी या सरकार की कमजोर नीति का नतीजा। हम हर बात के लिए सरकार पर दोषारोपण नही कर सकते । हर चीज के लिए सरकार को दोषी ठहराना मूर्खता की पराकाष्ठा है।
जब देश मे लाकडाउन चल रहा था और सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफार्म पर सरकार से जुडे मंत्री और खुद प्रधानमंत्री भी जनता से हाथ जोडकर सरकार की गाइड लाइन का पालन करने का निवेदन कर रहे थे लेकिन हममें से कितने लोगो ने पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ इसका पालन किया था । आज भी लोग अपनी और दूसरों की सुरक्षा का कितना पालन कर पा रहे है यह भी सर्व विदित है। कुछ लोग तो आफिसों मे ऐसा बैठते है जैसे कि समुद्र मंथन मे से निकला हुआ अमृत उनही ने ही पिया हो । ऐसे पढे लिखे गंवार अपने आपको प्रकृति और विधाता से ऊपर समझते है लेकिन किसी ने सच ही कहा है कि चार पैर वाले पशु (जानवर) को समझाना बहुत आसान है लेकिन दो पैर वाले पशु (इंसान ) को समझाना बहुत मुश्किल है और उसे समझाने वाला सबसे बडा मूर्ख होता है वैसे भी हम भारतीयों पर एक बात फिट बैठती है कि जब तक जंगल की आग हमारे घर तक नही पहुंचती तब तक न तो हम उसे बुझाने का प्रयास करते है और न ही हम उससे बचाव का कोई भी प्रयास करते है ।
जब दिसंबर जनवरी मे विदेशों मे यह रोग पैर पसार रहा था तब भी हम बेफिक्र थे और आज जब यह हमारे घर की दहलीज पर आ चुका है हम अब भी चैन की बांसुरी बजा रहे है । कोविड को डर को दिन दुगना और रात चौगुना करने मे अगर किसी ने वृद्धि की है तो वह है हमारे देश का पेटीकोट छाप इलैक्ट्रानिक मीडिया जो हर रोज अपनी ब्रेकिंग न्यूज मे यह तो दिखाता है भारत मे कोविड मरीजो की संखया दस लाख के आसपास है लेकिन वह यह बहुत धीमी आवाज मे कहता है कि भारत मे 6 लाख से अधिक मरीज पूर्ण रूप से स्वस्थ होकर अपने घर जा चुके है और भारत मे सही होने की दर विश्व के सभी देशों से सबसे अधिक है । वैसे जिसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी नही है उसे ही इस रोग के होने की संभावना बहुत अधिक है। और हम लोग तो बचपन से ही अपने बच्चो को मैगी मोमोज पीजा बर्गर और न जाने क्या क्या कचरा खिला खिलाकर उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता और उनके पाचन तंत्र को दो कौडी का बना चुके है। खैर बोये पेड बबूल का तो आम कहा से होय।
जिंदगी 8 अंक है हमे वापस वही मिल रहा है जो हमने बोया है किसी को कम तो किसी को ज्यादा। बाकि आने वाले 6 महीने बहुत भयानक और खतरनाक है । बाकि इस मामले पर जितना लिखा जाए उतना कम है । कहा सुना माफ करना । साल के अंत तक जिंदा रहा तो फिर मिलेंगे। अपने और अपने परिवार का खयाल रखिए । जान है तो जहान है।
बाकि आप सब समझदार है
जय जय सियाराम
हेमन्त कुमार शर्मा
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