कोरोना वायरस की इस वैश्विक महामारी ने अनेको समस्याओ को जन्म दिया है, शायद ही कोई क्षेत्र हो जिन पर इसका नकारात्मक प्रभाव न पड़ा हो | सर्वाधिक विपरीत प्रभाव शिक्षा पर पड़ रहा है, व्यवस्थित शिक्षा न मिलने से बड़ी आबादी का न केवल वर्तमान बाधित हो रहा है, बल्कि भविष्य में भी इसका असर दिखाई जरुर पड़ेगा | यह जितना नुकसानदायक छात्रो के लिए है, उससे कही अधिक देश के लिए है | यदि आप स्कूल और छात्रो से संवाद करेगे तो, आपको ज्ञात होगा की अनेको स्कूल, कालेज ऐसे है, जिन्होंने मार्च 2020 से लॉक-डाउन के पश्चात् छात्रो को कुछ भी नहीं पढ़ाया है | आपको कुछ स्कूल मिलेगे (जिनमे शहरो के नामी स्कूल भी शामिल है) जो व्हाट्सएप्प पर पुरे दिन के विभिन्न विषयों की पढ़ाई उपलब्ध करा देते है | कुछ चुनिन्दा स्कूल ही आपको मिलेगे जो ऑनलाइन माध्यम से पढ़ा रहे है | पढ़ाई जा रही विभिन्न विधियों को आप गहराई से समझेगे तो आप स्वतः सहमत होगे की छात्रो द्वारा स्कूल जाकर नियमित शिक्षा प्राप्त करने से उपयोगी एवं प्रभावशाली, आज भी कोई विकल्प देश में नहीं है |
देश में शिक्षा के कई प्रकार चल रहे है, विभिन्न बोर्ड, पाठ्यक्रम, इसका जीवंत उदाहरण है | विगत 4 से 5 दशकों में शिक्षा का व्यवसायीकरण इतनी तेजी से हुआ है कि आम जनता को अपने बच्चो को बेहतर शिक्षा दिलाना न केवल समय की मज़बूरी बन चूका है, बल्कि सीमित रोजगार के क्षेत्र में स्थान पाने की लिए अत्यंत जरुरी भी | बड़े - बड़े कॉर्पोरेट घराने, राजनेता, सेवानिवृत्त अधिकारी और दबंग लोगो ने इस क्षेत्र में जमकर पैसा लगाया हुआ है | वजह आय की ग्यारंटी होना है | एक देश, एक पाठ्यक्रम, एक समान शिक्षा, सामान फीस की जरूरत मानो अज्ञातवास में है, जिसके बारे में लोगो को कुछ भी नहीं पता | अधिकांश निजी शिक्षा संस्थानों के कई उद्देश्यों में से, एक महत्वपूर्ण उद्देश्य लाभ कमाना होता है | इसका आकलन आप उन संस्थानों में पढ़ाने वाले लोगो की योग्यता और उनको भुगतान किये जा रहे वेतन से भी आसानी से समझ सकते है |
लॉक-डाउन की अवधि में सबसे अधिक दर्द इन संस्थानों में पढ़ाने वाले लोगो ने महसूस किया है, जहाँ अनेको लोगो को वेतन या तो नहीं मिल रहा है या फिर कम मिल रहा है | बहुत ढेर सारे लोगों की नौकरी भी इस क्षेत्र में गयी है | उपर से इन संस्थानों में से कुछ संस्थानों के मालिक, सिर्फ इनके वेतन के भुगतान के नाम पर स्कूल फीस देने का दबाव, अभिभावकों पर बना रहे है | ऐसे में यह सवाल उठना लाजिम है, कि दशकों से चल रहें ये संस्थान, जहाँ मोटी फीस आधुनिक शिक्षा के नाम पर ली जाती रही है, क्या कुछ महीनों का वेतन अपने अध्यापको को देने में असमर्थ है | कभी जिलाधिकारी, कभी राज्य सरकार के निर्णय इस विषय में सामने आ रहे है | पर कही न कही लोगो में असंतुष्टि सामने दिख रही है | विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्म, सामाजिक संगठन, लिखित पत्रों के माध्यम से भारी संख्या में लोग यह मांग कर रहे है की लॉक-डाउन अवधि की स्कूल फीस पुर्णतः माफ़ हो और जब तक बच्चे स्कूल जाकर पूर्व की तरह शिक्षा न प्राप्त करने लगे तब तक फीस में व्यापक कमी की जाये | वही दूसरी तरफ स्कूलों के मालिक, अभिभावकों की इस मांग से सहमत नही है | कुछ निजी स्कूल के मालिको (जिनकी संख्या नाममात्र है) ने पुर्णतः फीस माफ़ी कर न केवल लोगो को चौकाया है, बल्कि लोग उनके प्रति आकर्षित हो रहे है | कई राज्यों के अभिभावकों के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की गयी थी | जिस पर माननीय सुप्रीम कोर्ट का कहना है की राज्य के हाई-कोर्ट में इस विषय पर अर्जी डाली जाये | कोर्ट का यह भी कहना है की हर जगह की स्थिति अलग-अलग है, इसलिए इस विषय पर निर्णय नही दिया जा सकता | तो ऐसे में प्रश्न यह लोगो के जेहन में आता है की, क्या कोर्ट से इस समस्या का समाधान हो सकता है ? क्योंकि जहाँ सुप्रीम कोर्ट अपने को अलग कर ले वहा हाई-कोर्ट निणर्य कैसे देना चाहेगा |
सीएम्आई की एक रिपोर्ट के अनुसार लगभग 12 करोड़ से अधिक लोग बेरोजगार हुए | छोटे व्यापारी और मजदूरो के कार्यो में 91 प्रतिशत, वेतन के रूप में आय अर्जित करने वाले कुल लोगो में 17.8 प्रतिशत, उधमियो में 18 प्रतिशत की कमी रही है | पहली बार ऐसा हुआ है की शहरी क्षेत्र के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्र के लोग भी बेरोजगारी से बुरी तरह प्रभावित हुए है | पर्यटन क्षेत्र में कार्यरत लाखो लोग आज भी बेरोजगार बैठे है | मीडिया, उत्पादन, सेवा, सहित अनेको क्षेत्रो में लोगो की नौकरियां चली गयी है और जिनकी नौकरियां है भी उनके वेतन में भारी कटौती की गयी है | स्वरोजगार करने वाले लोगो के आय की अनिश्चितता ने लोगो को काफी असुरक्षित किया है | अधिकांश लोगो की आय प्रभावित हुई है, जबकि जिनके पास पैसा है, वो आवश्यक सेवाओं के अन्यत्र कही भी खर्च नहीं कर रहे है | अनेक लोगो का जीवन अभी भी सामान्य स्थिति में नहीं आ सका है | ऐसे में स्कूल में पढ़ रहें बच्चों के फीस की माफ़ी की बात अभिभावकों द्वारा करना प्रथम दृष्टि में आपको कही से भी गलत नहीं लगेगा | जबकि अभिभावकों और स्कूल प्रशासन दोनों के साथ अपनी - अपनी समस्याए है | जब देश में राष्ट्रीय आपदा कानून लागू है, तो शिक्षा क्षेत्र इससे अलग कैसे है, यह समझ से परे है | 1 रूपये की टॉफी के मूल्य की अधिकतम सीमा का निर्धारण करने के लिए नियंत्रक है, पर शिक्षा क्षेत्र में फीस को नियंत्रित करने के लिए कोई भी नियामक न होना सीधे सिस्टम पर प्रश्न खड़ा करता है | इस विषम परिस्थिति में मुख्य प्रश्न यह है की इस समस्या का समाधान कैसे हो ?
निजी स्कूल अध्यापकों के वेतन की आड़ में अभिभावकों को फीस भुगतान करने के लिए लगातार फ़ोन कर दबाव बना रहें है | जबकि स्कूल न खुलने से उनके अनेको नियमित खर्चो में कमी आयी है | व्हाट्सएप्प या ज़ूम जैसे विडियो मीटिंग एप्प के माध्यम से पढ़ाई कराने का कोई अन्य खर्च भी नहीं है | ऑनलाइन पढ़ाई का स्तर कितना उपयुक्त एवं प्रभावशाली है आप स्वयं अपने बच्चे के साथ बैठकर महसूस कर सकते है | अभिभावकों को बच्चो की ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था के लिए बड़े खर्च करने पड़े है | जिस खर्च में स्कूल की 5 से 7 महीनो की फीस का भुगतान आसानी से हो सकता था | उस लागत को समझने वाला कोई नहीं है | यदि किसी के पढ़ने वाले दो बच्चे है, तो ऑनलाइन शिक्षा दिलाना उनके लिए बड़ी चुनौती भरा कार्य है | दो-दो कम्पुटर या मोबाइल, एक प्रिंटर, मासिक इन्टरनेट चार्जेज का भार सीधे अभिभावकों पर पड़ रहा है | ये लागत मांगी जा रही फीस से अलग है | निजी संस्थानों की अपनी समस्या हो सकती है, पर जिस तरह से कोरोना वायरस तेजी से पाँव पसार रहा है और इस वर्ष के अंत तक स्थिति सामान्य होती नजर नहीं आ रही है, ऐसे में एक समाधान पर दोनों पक्षों का पहुचना बेहद जरुरी है, अन्यथा की परिस्थति में सभी का नुकसान होना स्वाभाविक है |
सर्व-प्रथम दोनों पक्षों को, तात्कालिक रूप से एक बैठक करके (ऑनलाइन माध्यम से), पारदर्शिता पूर्ण संवाद करके, इस समस्या का त्वरित समाधान निकाला जा सकता है | जिससे दोनों पक्षों की समस्या का संज्ञान लेते हुए एक दुसरे के लिए समाधान प्रस्तुत कर सकें | राज्य-सरकारें और शिक्षा विभाग भी इस विषय में अहम रोल अदा कर सकती है, बशर्ते दोनों पक्षों की जरुरतो का आकलन करके निर्णय लिया जाये | देश में सर्वाधिक अव्यवस्था शिक्षा क्षेत्र के नियंत्रण में रही है | जहाँ आधुनिक शिक्षा के नाम पर फीस को नियंत्रित न किया जाना अनेकों समस्याओं को जन्म दे रहा है | देश में सामान शिक्षा, सामान फीस और सामान पाठ्यक्रम की अनिवार्यता को तत्काल प्रभाव से लागू किया जाये | जिससे सभी स्तर के लोगो को सामान अवसर प्राप्त हो सकें और स्वस्थ्य प्रतियोगिता की शुरुआत भी | केंद्र सरकार का इस विषय में मौन रहना भी लोगो को सही नहीं लग रहा, यह भी ऐसे समय में जब की पुरे देश में महामारी तेजी से फ़ैल रही है और अधिकांश शक्तियां केंद्र सरकार में आपदा नियम के तहत निहित हो गयी है | शिक्षा के क्षेत्र में अनेको लोग सुधार हेतु कार्यरत है, उनमे से पी.आई.एल. मैन के नाम से प्रसिद्द श्री अश्वनी उपध्याय की यह मांग "एक देश, सामान फीस, एक पाठ्यक्रम, एक शिक्षा" जिसे उन्होंने कोर्ट में भी रखा है समय के हिसाब से लागु किया जाना उपयुक्त है |
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