आशा का दीप

धरती झूमेगी,फिजाएँ लहराएंगी-फिर लौट वह सुबह जल्द आएगी।
शिक्षा-मंदिरों के कपाट खुलेंगे-हम सब आपस में फिर मिलेंगे।।
                       बस आशा का दीप जलाए रखना.....।

गगन-चुंबी इमारतें फिर जगमगाएगी-निशा,आशा की भोर ले आएगी।
अपने-अपनों से गले मिल पायेंगे-हम सब मिलकर फिर उत्सव मनायेंगे।।
                       बस आशा का दीप जलाए रखना.....।


जीवनदायिनी वायु हृदय को प्रफुल्लित बनाएगी-रिम-झिम बरसती बूंदे मन को बहलाएगी।
सगे-संबंधी मिल बैठ फिर बतियायेंगे-हम सब फिर मिलकर राजभोग खायेंगे।।
                        बस आशा का दीप जलाए रखना.....।


चारों तरफ हरी-भरी फसलें लहराएगी-जीत भारत का मस्तक ऊपर उठायेगी।
मंत्री-प्रधानमंत्री फिर इतरायेंगे-डॉक्टर-नर्स व मरीज सब मित्र बन जायेंगे।।
                       बस आशा का दीप जलाए रखना.....।

अध्यापक-विद्यार्थी में वार्तालाप फिर हो पाएगी-सुरसा बनती परेशानी फिर शीश झुकाएगी।
मजदूर फिर निर्माण कार्यो में जुट जायेंगे-आम आदमी रोजी रोटी कमा कर ही घर आयेंगे।।
                      बस आशा का दीप जलाए रखना.....।

कोरोना महामारी एक दिन अवश्य हार जाएगी-ईश्वर में आस्था इसके चंगुल से हमें छुडाएगी।
ज्ञान-विज्ञान मिल कर नई दिशा दिखाएंगे-हम सब अवश्य ही जीत जायेंगे।
             बस आप आशा का दीप जलाए रखना.....।
लेखिका
रजनी बाला
प्रिंसिपल, शाह सतनाम जी कॉलेज ऑफ एजुकेशन सिरसा।

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