स्वरचित एक रचना:
प्रकृति का यह एक नया रूप है
शायद प्रतिशोधी उसका यह स्वरूप है,
हे मानव! इसका जिम्मेदार तू ही है
तूने वातावरण को प्रदूषित किया,
फैक्ट्री, घर और वाहनों से
धुआं के बड़े बड़े अंबार बनाए।
आज,प्रकृति के सामने तू असहाय है
सम्पूर्ण संसार उसके वश में है,
तेरी सभी गतिविधियां पर रोक है
और तू डरा, सहमा, दुबका सा
घर के एक कोने में बैठा,
चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता।
परंतु प्रकृति अपनी स्वतंत्रता का जश्न मना रही है,
आज वायु स्वच्छ और वातावरण स्वच्छंद है।
क्या, तुझे विश्वास नहीं हो रहा है,
तो ज़रा बाहर आ या छत पर जा
या फिर खिड़की से देख
उस खुले आसमान को
जो आज चमकदार नीला है,
ध्यान से सुन कोयल की उस कूक को
जो इस वातावरण में मदमस्त हो रही है;
देख, झूमते और लहराते पेड़ पोधो को
जो नृत्य करते प्रतीत हो रहे है,
निर्भीक तैरती मछलियों को
और सड़कों पर घूमते हिरण को
जो अपनी आज़ादी का आनंद ले रहे है।
तूने जंगल जलाए, वृक्ष काटे,
पहाड़ तोड़े, नदियों में रसायन मिलाए,
और प्रकृति कभी भूस्खलन, कभी हिमपात,
कभी बाढ़,कभी ग्लोबल वार्मिग
पता नहीं और कितने रूप में,
अपने प्रकोप को दिखाती भी रही
परंतु है मनुष्य! न तूने समझा, न महसूस किया
उस दर्द को जो पृथ्वी अपने वक्षस्थल पर
इतने समय तक सहन करती रही।
अंत: आज तू अपनी ही चार दिवारी में
एक परिंदे कि तरह कैद है
जो सिर्फ पंख फड़फड़ा सकता है,
तू आज भयभीत है,
बैचैन और विचलित है,
तेरी रातों की नींद गायब है,
जिसका कारण वो अदृश्य जीव है,
जिसे ना तू छू सकता
ना ही देख सकता है।
है मनुष्य! तनिक सोच ।
तेरा यही अस्तित्व है, यही हैसियत।
तूने दावा और आह्वान किया
जन्म और मृत्यु पर विजय पाने का,
पूरे संसार को मुट्ठी में लेने का,
फिर आज क्यों तू असहाय है?
कहां है तेरे दावे ,और खोखला अहंकार?
इसलिए है मानव। अब तेरे लिए संभलना
और संभलना ही एक मात्र उपाय है,
अन्यथा प्रकृति का अति विकराल रूप
संभवत: देखना निश्चित है।
---------
शगुफ्ता नाज़
मुजफ्फरपुर, बिहार ।
Shaguftanaaz86@gmail.com
Bahut sundar rachna
जवाब देंहटाएंDhanyawad
हटाएंDhanyawad
हटाएंएक टिप्पणी भेजें
If you have any doubts, please let me know