आज विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस है जिसके जरिये दुनियां भर में इस बात को प्रचारित और प्रसारित किया जा रहा है कि बुजुर्गो के साथ अच्छा व्यवहार करें । भारत की कुल आबादी का तकरीबन 6 प्रतिशत लोग बुजुर्ग है । यानी कि कुल बुजुर्गो की संख्या 8 करोड़ से अधिक है । बढती आधुनिक सुविधाएं, अनिश्चितता, भागम-भाग, अव्यवस्थित जीवन शैली ने अनेको समस्यायों को जन्म दिया है आज अधिकांश लोग एकल परिवार में विश्वास करते है जो समाज के लिए चिंता का विषय है । आधुनिकता के मांग की पूर्ति करने में कई लोग इतने व्यस्त हो जाते है कि अपने माँ बाप के बारे मे भी सोचने और कुछ करने का समय नही रहता । समस्या और अधिक बढ़ जाती है जब व्यक्ति अपने माँ बाप को बोझ समझने लगे यानी कि ऐसी जिम्मेदारी जिससे उन्हें कोई लाभ नजर न आता है । आज देश के अनेको वृद्धा आश्रम भरे पड़े है यह बुजुर्गो के प्रति समाज की सच्चाई को बयां कर रहे है ।

कोरोना वायरस की इस महामारी की वजह से लोगो को लॉक-डाउन में रहना पड़ा है । बुजुर्गो को घरो में रहने की सलाह दी गयी है ऐसे में इनको अनेको चुनौतियों ने आ घेरा है जहां इनकी सुनने वाला कोई नही है । इन बुजुर्गो की अनेको जरूरते होती है जिनके लिए इन्हें अपनो पर निर्भर रहना पड़ता है पर इस अवधि में इनकी सुनने वालों की कमी है । बुजुर्गो के प्रति दुर्व्यवहार की घटना इस लॉक-डाउन में बढ़ी है । विभिन्न रिपोर्ट्स और समाचार पत्रों से वास्तविकता सामने आयी भी है ।

बुजुर्गो को गाली देना, मारना, उनकी जरुरतो को पूरा न करना और उन्हें अनदेखा करने समेत अनेको ऐसी बाते है जो इनके प्रति की जा रही है । कई लोग जबरन इनकी सम्पत्ति अपने नाम कराने, कई लोग जबरन घरेलू काम कराने, कई लोग इनको जबरन वृद्धा आश्रम में छोड़ने जैसे संगीन अपराध भी इनके प्रति कर रहे है ।

इनके प्रति शारीरिक शोषण, मनोवैज्ञानिक/भावनात्मक शोषण, यौन शोषण, आर्थिक शोषण, इन्हें अनदेखा और परित्याग करना इनके प्रति घोर दुर्व्यवहार की श्रेणी में आता है । पर करने वाले व्यक्ति इस पर जरा भी विचार नही करते और यह तब अधिक पीड़ा देने वाला होता है जब अपने खून से जन्मे बच्चे ऐसा कर रहें हो । देश मे इनके प्रति अनेको नियम कानून है जिसके अनुसार प्रत्येक बच्चे को अपने माँ बाप की देखभाल करना और जरूरी चीजें मुहैया कराना प्राथमिक जिम्मेदारी है । लाखो में एक लोग होते है जो इन नियमों का लाभ उठा पाते है । कई बुजुर्ग लोग हर परिस्थिति को झेलने को तैयार रहते है पर अपने बच्चों के प्रति कुछ कहना करना नही चाहते ।

इस लॉक-डाउन की अवधि में जहां अनेको समस्याएं ये बुजुर्ग लोग झेल रहे है इनमे से कुछ लोगो को थोड़ी खुशियों को नजदीक से देखने का मौका मिला है की उनके बच्चे जो आधुनिक और विकास के नाम पर विदेश चले गए थे इस महामारी की वजह से घर आने को मजबूर हुए है । कई कई लोग ऐसे भी है कि एक से दो दशक पश्चात अपनो से मिले है ।

पर वास्तविक मुद्दा इन सबसे अलग है वह यह है कि इस तरह की समस्या का जिम्मेदार कौन है और वो कौन से तरीके है जिसे अपनाकर हम इस परिस्थिति से बाहर आ सकते है । क्योंकि आधुनिकता के विकास के साथ साथ इस तरह की समस्याओं ने बड़ा रूप लेना शुरू कर दिया है । आज की युवा पीढ़ी कल की बुजुर्ग की श्रेणी में आनी है ऐसे में शुरुआत हम सब को अभी से करनी होगी । अनेको दर्द भरी कहानियां बुजुर्गो की है । यह और चिंताजनक है कि इन कहानियों में कमी नही आ रही है । लोगों में बुजुर्गो और उनके प्रति जिम्मेदारियों को पूरा करने की बाध्यता को प्रचारित प्रसारित करने की जरूरत है । नई पीढ़ी के बच्चों में अच्छे संस्कार को विकसित करने की जरूरत है । युवा पीढ़ी को स्वयं के बुजुर्ग उम्र में जाने के समय की अर्थिक प्लानिंग अभी से करने की जरूरत है । इन सबके अतिरिक्त सरकार को इनके लिए बेहतर और सशक्त नियम और सामाजिक योजना बनाने की जरूरत है तभी इस तरह की समस्याओं पर विजय पायी जा सकती है । अन्यथा की परिस्थिति में इनकी आवाज कही दब सी रह जा रही है ।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में करीबन 1 लाख लोग ऐसे है जिन्हें वृद्धा पेन्शन दी जा रही है जिसकी राशि मात्र 500 रुपये प्रतिमाह है ऐसे में यह विचार स्वतः ही सभी के मन मे आएगा कि इतने पैसो में इनका क्या होगा । सरकार को इनके लिए अलग से रहने खाने और स्वास्थ्य सुविधाओं को प्रदान करने की जरूरत है जिससे इनकी निर्भरता अपनो पर न रहे और मीठी मुस्कान के साथ अपना जीवन व्यतीत कर सके ।

इस तरह के दिवस वर्ष में एक बार मनाने का उद्देश्य यह कतई नही हैं कि आप अपनी सारी सम्वेदना सोशल मीडिया पर उमड़ दे बल्कि जरूरत है अपने बुजुर्गों के साथ बैठने की उनसे बात करने की उनकी जरुरतो को पूरा करने की । जिस आप धापी में हम सब भाग रहें है जिसका अंत इतना है कि मिलने वाला कुछ नही, वो लोग इस रास्ते से गुजर चुके है उनके अनुभव और ज्ञान से हम अपना अपनो का जीवन बेहतर बना सकते है । जिससे वास्तविक खुशियां प्राप्त होगी और समाज को नयी दिशा मिलेगी । बुजुर्गो का ध्यान रखें आखिर एक दिन आप भी बुजुर्ग होंगे ।

डॉ अजय कुमार मिश्रा (लखनऊ)
drajaykrmishra@gmail.com

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