आज से तीन दशक पहले के जीवन का अकलन करें तो कई
मायने मे न केवल आज से अलग था बल्कि आधुनिकता की बारिश मे भीगा हुआ भी नहीं था | लोग
आत्म निर्भर थे | और उनके विचार और कार्य आज से बेहतर थे | और इन सब के बीच कई ऐसी
छोटी बातें होती थी जो आपको जीवन पर्यंत चेहरे पर मुस्कान दिलाने के लिए काफी है |
आप कह सकते है कोमल मन यानि बचपन की कई शरारतें बातें ऐसी है जो आपको विषम स्थिति
मे चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए काफी है और जब हम आज के बचपन से तुलना करते है तो
हमे लगता है की इतनी सुविधाओं के बावजूद आकांक्षा कही बड़ी दूर है | जब हम बच्चों से बातें करते है उनकी जरूरतों को
समझने का प्रयास करते है तो उनकी आकांक्षा कई बार आवश्यकता से कही अलग होती है |
आज के तीन दशक पहले की बात है एक 4 साल का बच्चा
अपने बड़े भाई को ध्यान से देख रहा था वजह मात्र इतनी थी की उसके बड़े भाई के हाथ मे
पार्ले-जी बिस्किट था और वह भी उन्हे खाने के लिए इस लिए मिला था की डॉक्टर की सलाह
थी कुछ खाने के बाद दवाई खानी है | चुकी खाना बनने मे समय लगता इस लिए बिस्किट लाया
गया था उनके लिए | कई बार आशा भरी नजरों से देखने के बावजूद जब उसे एक टुकड़ा भी बिस्किट
का नहीं मिला तो वह निराश भाव से घर के दूसरे छोर मे जाकर बैठ गया | इतनी देर मे उसकी
माँ आती है और पूछती है बेटा यहा क्यों बैठो हो | पर उस बच्चे ने कोई जबाब देना उचित
नहीं समझा |
उस दिन के बाद से वह यह जानने मे लग गया की इस अनोखी
चीज यानि बिस्किट को कैसे पाया जा सकता है | कई दिनों के अथक प्रयास के बाद जब उसे
पता चल की उसके पापा बिस्किट घर मे तभी लातें है जबकि कोई बीमार हो और डॉक्टर ने बिस्किट
खाने को बोला हो | अगले कुछ दिनों तक वह बीमार होने का झूठा नाटक करता रहा जिसे घर
के किसी भी सदस्य ने ध्यान नहीं दिया | बच्चे की लालच बढ़ती गयी | समय के साथ कुछ दिनों
के पश्चात वह भूल गया की उसे बिस्किट खाना है |
कुछ महीनों के पश्चात उस छोटे से बच्चे को बुखार
हो गया पापा उसे डॉक्टर के पास दिखाने जाने के लिए बोले तैयार हो जाओ बेटा डॉक्टर को
दिखा कर दवा ले आते है | उस नन्हे से बच्चे के दिमाक मे फिर से मात्र एक बात घूमती
रही की दवा मिले या न मिले पर डॉक्टर कम से कम बिस्किट खाने को जरूर बोल दे | उस बिमारी
मे भी जिस उत्साह और आशा से वह बच्चा डॉक्टर के पास गया वह सच मे काबिले तारीफ था
| जैसे ही डॉक्टर ने तापमान चेक करके दवा देना शुरू किया बच्चे ने बोल चाचा जी बिस्किट
के साथ दवा खाना है न | डॉक्टर ने बच्चे को ध्यान से देखा और बिना कुछ कहे रह गए |
जबकि बच्चे के पिता ने सोचा की जेब मे तो पैसे है नहीं दवा मिल जाए वही बड़ी बात फिर
बिस्किट?
डॉक्टर से दवा के पैसे कुछ दिनों बाद देने की अनुमति
लेकर बच्चे के साथ घर की तरफ बढ़ने लगे और उस बच्चे ने कई बार बिस्किट की मांग अपने
पिता से किया | पिता को लगा की किसी भी तरह से वह आज बिस्किट जरूर लेगा, पर पैसे तो
थे नहीं | एक दुकान से दूसरे दुकान जाने के बाद एक दुकानदार ने बिस्किट इस शर्त पर
दिया की कल इसके पैसे देने है | बच्चे की इच्छा पूरी हुई और घर आतें ही वह बिस्किट
पर टूट पड़ा उसे लगा मानो जीवन की सारी जरूरतें पूरी हो गयी हो | दूसरी तरफ उसके पिता
बार-2 प्रार्थना कर रहे थे हे भगवान इस मुश्किल घड़ी मे मेरे परिवार को कोई बिमारी न
देना |
ऐसी परिस्थिति से अधिकांश लोगों को जिन्होंने 3
दशक पहले जन्म लिया होगा जरूर दो चार होना पड़ा होगा चाहे फिर बिस्किट के लिए ब्रेड
के लिए या फिर किसी और जरूरतों के लिए पर जब हम आज की आधुनिकता मे आते है और देखते
है की बिस्किट या ब्रेड से कब के हम कई मिल आगे निकाल चूके है जहा पिज्जा बर्गर, चाउमीन
ने ले लिया तो चेहरे पर अनायास ही एक विचार के साथ की हम कहा जा रहे है और हम कहा थे
से छोटी सी मुस्कान चेहरे पर जरूर आ जाती है |
drajaykrmishra@gmail.com
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