हिन्दी पत्रकारिता दिवस – आधारभूत बदलाव की जरूरत
आज एक बार हम सब फिर से हिन्दी पत्रकारिता दिवस
मना रहे है | समय और सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के साथ-साथ आज हिन्दी समाचार
पत्रों, समाचार चैनलों, सोशल मीडिया, विभिन्न समाचार वेबसाईट ने लोगों के जीवन मे
सूचना और समाचार की भरमार कर दी है | मोबाइल पर पल-पल नवीनतम हिन्दी समाचार
प्राप्त हो रहे है | ढेरों ऐसे पब्लिक प्लेटफॉर्म है जहां पर कोई भी समाचार डाल
सकता है | अनेकों माध्यम लोगों के लिए आज उपलब्ध है हिन्दी समाचार को पढ़ने का | पर
लगभग दो सौ वर्ष पहले स्थिति हिन्दी पत्रकारिता की आज जैसी होने की कोई कल्पना भी
नहीं कर सकता था |
उत्तर प्रदेश के कानपुर के निवासी पेशे से वकील
पंडित जुगल किशोर शुक्ला ने 1826 मे पहली बार “उदन्त मार्तण्ड” अखबार का शुभारंभ
कोलकाता के बड़ाबाजार मार्केट से किया था तो उन्होंने कभी भी नहीं सोचा होगा की
भविष्य मे अखबार और समाचार के कितने स्वरूप लोगों के सामने होगे | बहुत ही साहसिक
कदम उठा करके श्री शुक्ला ने साप्ताहिक अखबार का शुभारंभ किया था जिसके पहले
प्रकाशन की कुल 500 प्रतियां प्रकाशित की गयी थी | अनेकों समस्याओं से उन्हे दो
चार होना पड़ा, मसलन प्रकाशित अखबार को हिन्दी भाषीय लोगों तक पहुचाना, प्रकाशन की
बड़ी लागत का होना ऐसे मे शुक्ला जी ने
अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते हुए कई दफा अंग्रेज सरकार को पत्र लिखा की डाक के
खर्चों मे कुछ छूट दी जाए जिससे प्रकाशित अखबार हिन्दी भाषीय लोगों तक पहुचाया जा
सके | अंग्रेजी सरकार को बड़ा डर सता रहा था नतीजन कोई छूट देने के बजाय सरकारी
विभागों मे उसके खरीद पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया था |
देश के पहले अखबार का गौरव “उदन्त मार्तण्ड” को
प्राप्त है जो प्रत्येक सप्ताह मंगलवार को आता था | विभिन्न कठिनाइयों और पूंजी की
कमी होने से यह अखबार 4 दिसंबर 1827 को प्रकाशित होना बंद हो गया | पेशे से वकील
शुक्ला जी ने एक नई शुरुआत हिन्दी भाषा के लिए कर दी थी जिसके कई स्वरूप तब से अब
तक परिवर्तित रूप मे सामने आए है और यह हिन्दी भाषा का ही कमाल है की देश की आजादी
मे कई हिन्दी समाचार पत्रों ने प्रमुख भूमिका अदा की | आज विश्व के बड़े बहु-भाग पर
हिन्दी न केवल पढ़ी जाती है बल्कि अच्छी तरह से समझी भी जाती है |
आज के आधुनिकतम युग मे जहां पर इंटरनेट ने
विश्व को सीमित कर दिया है वही हिन्दी पत्रकारिता मे भी अनेकों लोगों का होना कई
अन्य पहलुओं के बारे मे सोचने को विवश करता है जैसे आजकल पेड समाचार का बोलबाला है, फेक न्यूज जानबूझकर
प्रकाशित प्रसारित कराई जाती है | लोग मीडिया का नाम आते ही सभी बातों को सच मान
लेते है पर कई ऐसे संगठन, लोग पत्रकारिता मे है जिनकी न्यूज पर भरोसा नही किया जा
सकता है | कई बार हम सब ने देखा है की गलत न्यूज कि वजह से कई कई लोगों की जान भी
चली जाती है यानि की आधुनिक पत्रकारिता जिस तरह से विकसित हुई है उसी तरह से
चुनौतियों और समस्याओं ने लोगों को मुशीबत मे भी डाल दिया है |
आज के लोग किसी समाचार को जज नहीं कर रहे यानि
के खबर की सच्चाई को नहीं माप रहें बल्कि तेजी से एक दूसरे को फॉरवर्ड करते चले जा
रहें है यह चिंता का विषय है ऐसे मे अनुशासित और निष्पक्ष पत्रकारिता की जरूरत
अधिक महसूस हो रही है | ऐसी पत्रकारिता जिसकी किसी राजनैतिक दल से साठ – गाठ न हो,
ऐसी पत्रकारिता जो लाभ के लिए न हो, ऐसी पत्रकारिता जो बिकाऊ न हो, ऐसी पत्रकारिता
जो सरकार के अच्छे कार्यों की तारीफ करे तो बुरे कार्यों की आलोचना भी करें, ऐसी
पत्रकारिता जो आम लोगों के मुद्दों को उठाए, ऐसी पत्रकारिता जो जन हित और राष्ट्रहित
मे हो, की जरूरत है | कहने को तो अनेकों लोग संगठन है पर उनमे से गिने चुने लोग
संगठन ही पत्रकारिता के वजूद को जिंदा रख पाए है और आवश्यक नैतिक मूल्यों को ले कर
चल रहे है | कई बड़े निजी घरानों ने इस क्षेत्र मे मात्र इसलिए प्रवेश किया है की
अपनी शक्ति का परिचय देकर लाभ लिया जा सके |
पत्रकारिता का आधार पत्रकार होता है और पत्रकार
की बौद्धिक क्षमता पर निर्भर करता है की वह समाज और आम लोगों के मुद्दे को कितनी
अहमियत देता है | आज आपको हर गली चौराहे मे पत्रकार मिल जायेगे जिनमे से कई लोगों
को यह तक नहीं पता होता की इसका शाब्दिक अर्थ क्या है पत्रकारिता का उद्देश्य क्या
है ? फिर वो लोग लोगों की समस्याओ को कैसे उठा पायेगे | अधिकांश लोग पोपुलर होने
के लिए या अच्छा पैसा कमाने के लिए इस क्षेत्र मे आते है जबकी जिस जज्बे जुनून की
जरूरत पत्रकारिता मे है ऐसे लोगों की कमी अधिक है | योग्य पत्रकार न केवल खबरों की
परख करता है बल्कि वह यह भी जानता है की
उसे कब कहाँ क्या प्रकाशित करना है |
आज भी कई ऐसे पत्रकारिता के संस्थान और लोग है
जो वसूलो पर कार्य करते है पर दुखद यह है की ऐसे संस्थान / पत्रकारों की स्थिति
दयनीय है क्योंकि मुश्किल से उनकी जरूरते पूरी हो पा रही है | ऐसे मे इस
पत्रकारिता दिवस हम सब को मिलकर यह सोचना होगा की हम किस दिशा मे जा रहे है क्या
हम अपने निजी लालच मे समाज को गुमराह कर रहें है जिसका परिणाम अप्रत्यक्ष रूप से
हम सभी पर पड़ने वाला है | विभिन्न सरकारी एजेंसियों को भी नये मानकों के आधार पर पत्रकारिता
का लायसेंस देना चाहिये जिससे सामाजिक
संतुलन पत्रकारिता मे बना रहें और सच्चे निष्पक्ष पत्रकारों के लिए अलग से अनुदान
की व्यवस्था हो जिससे वो खुलकर सामाजिक मुद्दों को सामने ला सके | देश के चौथे
स्तम्भ के योगदान की अब अत्यधिक जरूरत है | यदि हम अब भी मुख्य बातों पर वापस नहीं
आयें तो हम हिन्दी पत्रकारिता दिवस तो मनाते रहेगे पर अपने जमीनी आधार और विश्वास
को लोगों मे खो देगे |
डॉ. अजय कुमार मिश्रा (लखनऊ)
drajaykrmishra@gmail.com
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