कई प्रश्नों के जबाब हमे नहीं मिलते, जबकि कई प्रश्नों का जबाब, प्रश्न मे ही छिपा रहता है | फिर भी प्रश्न करने से न केवल शंका का समाधान होता है बल्कि आपकी बातों को लोगों तक पहुचने का संतोष प्राप्त होता है | कोरोना वायरस नाम मे इतनी दहशत है, शायद जितनी उसकी बीमारी मे नहीं होगी | जनवरी 30 को पहला केस भारत मे आया था | मार्च महीने मे पहला लॉक-डाउन किया गया फिर उसे बढ़ा करके 17 मई तक उसकी अवधि बढ़ा दी गयी है | भारत मे इस बीमारी से संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या अब बढ़कर 42533 हो गयी है जिसमे से 1373 लोगों की मृत्यु हुई है और 11,707 लोग इस बीमारी से ठीक भी हुए है | पर इस बीमारी का खौफ लोगों मे ज्यादा है या यू कहें लोगों को आवश्यकता से अधिक डरा दिया गया है |

कई बातों का जबाब लोगों को नहीं पता है मसलन इस बीमारी की दवा क्या है, यह बीमारी कब ठीक होगी, घरों मे कैद कब तक रहा जाएगा, सोशल डिस्टेनसिंग क्या देश मे संभव है, गरीबी बड़ी है या कोरोनावायरस इत्यादि | इनमे से बहुत बाते आप सबके मन मे जरूर आती होगी | पर जबाब या तो पता नहीं या अधूरा है |

पहले लॉक-डाउन मे जन की बात हुई थी दूसरे लॉक-डाउन मे जन और धन यानि लोगों के जीवन और अर्थव्यवस्था दोनों की बात हुई और तीसरे लॉक-डाउन मे कोई बात नहीं हुई सीधे गृह मंत्रालय से आदेश पारित किया गया | जिसके लागू होने का आज पहला दिन है | इन सारे प्रयासों मे शायद वास्तविक उद्देश्य क्या है यह सब की समझ मे नहीं आ रहा | कभी जन कभी धन फिर धन-धन की बात तो इनमे से जरूरी क्या है | जब केस नाम मात्र के थे तो लॉक-डाउन जब केस इतने अधिक बढ़ गए है तो यह आदेश | सब गोल मटोल जैसा लग रहा है |

कई बातों को आपस मे टटोलने पर आपको ज्ञात होगा की अर्थव्यवस्था अधिक महत्वपूर्ण है किसी और उद्देश्य की अपेक्षा | भारत जैसे देश मे जहां तरह-तरह की समस्याए है वहाँ किसी भी नियम को एक साथ लागू करा पाना असंभव सा लगता है | ये तो बात सबके सामूहिक जीवन पर बन आयी थी अन्यथा नियम टूटते देर न लगती | ऐसा भी नहीं है की सब नियम तोड़ते पर इस महामारी मे भी नियम तो तोड़े ही गए | कही सरकारों ने किए तो कही मजबूरी मे लोगों ने |

आज देश के कोने कोने मे शराब को पाने के लिए लोगों को लाइन मे लगा देख कर कई प्रश्न पूछने की इच्छा हो रही है | जिनमे से प्रमुख है क्या कोरोना वायरस पर शराब भारी है | यदि ऐसा नहीं है तो फिर यह अनुमति क्यों दी गयी | यदि अर्थव्यवस्था जरूरी है तो प्रतिबंध ही क्यों लगाया गया या सिर्फ शराब की ही बिक्री क्यों ? अव्यवस्था, सोशल डिस्टेनसिंग, और मास्क के प्रयोग की जीस तरह से धज्जिया आज उड़ाई गयी है उससे तो यही लगता है की कोरोना वायरस पर शराब कही अधिक भारी है | इसकी पुष्टि करोड़ों रुपये की शराब का एक दिन मे बिकना है | कई जगह तो लोगों को खदेड़ कर भगाया गया | सोशल डिस्टेनसिंग और मास्क की हकीकत टीवी चैनलों मे आ रही है | ऐसा आपको नहीं लगता की इस महामारी मे शराब ही भारी दिख रही है कोरोना वायरस पर | तो कही ऐसा नहीं की कोरोना वायरस से बड़ी बीमारी है शराब जो न केवल लोगों को बर्बाद करती है बल्कि कितने परिवारों को |
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