हाल ही मे मुम्बई के पालघर मे हुई मोब लिन्चिंग ने पुनः सभी
को हृदय से द्रवित किया है | ऐसे मे इस तरह की घटनाओ को रोकने के लिए कठोर नियमों
की जरूरत है | यदि अभी ऐसा नहीं हुआ तो भविष्य मे और समस्याएं हो सकती है | सरकार
की कई नीतीय ऐसी होती है जिसका विपक्ष सहयोग करता है, जबकि
कई ऐसी होती है जिसकी आलोचना करता है और उनमे कमियाँ निकलता है | सत्ता सिर्फ पक्ष
से ही नही बल्कि विपक्ष से भी चलता है | अच्छे शासन के लिए यह जरूरी है की मजबूत
सत्ताधारी पार्टी के साथ-साथ मजबूत विपक्ष भी होना चाहिए | सरकार को विपक्ष की
बातों और बयान की आलोचना करने के बजाय उसको समझकर अपनी नीति और नियमों का व्यापक
विकेंद्रीयकरण करना चाहिये | विगत कुछ समय से यह मीडिया और कई जगहों पर सामने आ
रहा है की आप यदि सत्ताधारी पार्टी के नीति नियमों के सहयोगी नहीं है और आलोचना
करने वाले है तो आप एक तरह का अपराध कर रहें है |
किसी समाज देश के लिए यह अति आवश्यक है की खुली आलोचना को
सुना जाये, अमल किया जाये और व्यवहार मे लाया जाये | आप इसे छोटी सोच भी कह सकते
है और बड़ी सोच भी पर कुछ भी कहने से पहले इस तरह की परिस्थितियों का स्वयं
मूल्यांकन करना चाहिये | क्योंकि कोई भी पूर्णरूप से सही और गलत नहीं होता | दोनों
के अपने-अपने तर्क है | हाल ही मे कई बार मोब लिन्चिंग अलग-अलग समुदाय के लिए पीड़ा
का विषय रहा है | दिल्ली मुम्बई उत्तर प्रदेश बिहार, वेस्ट बंगाल समेत कई राज्यों
मे ऐसी घटनाए होती रही है जिससे असीम पीड़ा का अनुभव हो रहा है | पर इसके पीछे का
कारण क्या है ? भीड़ इतनी उग्र कैसे हो रही है ? क्या कुछ लोगों मे असुरक्षा की
भावना ने जन्म ले लिया है ? इन जैसे ढेरों प्रश्न सभी के दिमाक मे अवश्य घूमते
होंगे |
किसी भी नियमों का विरोध करना गलत कैसे हुआ ? क्या विरोध करने
का तरीका गलत होता है ? निर्दोष लोगों की हत्या से किसी को क्या हाशिल हुआ ? देश
मे शांति और अशान्ति के प्रतिशत मे कमी वृद्धि के पीछे कारण क्या है ? क्या लोगों
की जरूरतों और सुरक्षा से अधिक कुछ और है ? किसी एक समूह की गलती किसी सम्पूर्ण
समुदाय की कैसे हो सकती है | हर धर्म, मजहब, जाति मे अच्छे बुरे लोग है तो ऐसे मे
आपसी एकता का क्या ? कौन उन्हे तोड़ने के लिए बढ़ावा दे रहा है ? विवाद के पीछे कारण
क्या है ?
कोई भी पार्टी सत्ता मे आती है तो देश / राज्य का प्रत्येक
नागरिक उनके लिए बराबर महत्व रखता है चाहें उसने उनके पक्ष मे वोट दिया हो या फिर
न दिया हो | लोगों की सुरक्षा, विकास और सामाजिक महत्व की चीजों पर सबका समान
अधिकार है | आलोचना न केवल आपके नियमों मे कमियों को दूर करती है बल्कि बेहतर
कार्य करने के लिए प्रेरित करती है | कबीर दास जी का सम्मान सभी करते है फिर उनकी
बातों को अमल मे क्यों नहीं लाते – “निंदक नियरे राखिए, ऑंगन
कुटी छवाय, बिन
पानी, साबुन
बिना, निर्मल
करे सुभाय।“ (जो
हमारी निंदा करता है, उसे
अपने अधिकाधिक पास ही रखना चाहिए । वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बता कर
हमारे स्वभाव को साफ़ करता है)
कुछ हद तक लोगों की समस्याओं और समुदाय की आपसी दूरियों को कम
करने मे मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है परंतु कुछ मीडिया का व्यवहार
अत्यंत चिंता जनक है | एक अच्छे प्रशासक की सबसे अच्छी बात होती है की वो दोनों को
समान महत्व देता है | अब जरूरत है तो यह समझने की कि देश समाज के लिए दोनों
समानरूप से आवश्यक है और आलोचनाओं का होना और उसे स्वीकार करना एक स्वस्थ नेतृत्व
की मजबूत इच्छा शक्ति को प्रदर्शित करता है | क्योंकि सत्ता सिर्फ पक्ष से नहीं
विपक्ष से भी चलता है | पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी जी ने
अनेकों ऐसे उदाहरण प्रस्तुत किए है जिससे यह स्पष्ट होता है की आलोचनाओ और विपक्ष
को उन्होंने कैसे स्वकीर कर देश के सभी तबकों को एक साथ जोड़ने मे सफल रहें है |
क्या हम यह सुनिश्चित कर सकते है की दिल्ली और मुम्बई जैसी घटनाए पुनः नहीं होगी ?
कम से कम उस प्रदेश की सरकार को यह वादा आम नागरिकों से कर सकती है ?
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