देश के कोनों-कोने मे यह बात पहुँच चुकी है की महामारी से डरना नहीं, हर हाल मे लड़ना है | और इसका लोगों के द्वारा जोरदार समर्थन भी मिल रहा है | कारण सिर्फ एक है की सबकी जिंदगी एक साथ खतरें मे आ गयी है, चाहे वह किसी भी श्रेणी का हो | पिछले कई दशकों के इतिहास मे ऐसा पहली बार हुआ है की संसार के सभी लोग इस खतरें को समझ रहें है | अमेरिका मे जिस तरह से केस दिन-प्रतिदिन बढ़ रहें है वह अत्यंत चिंता का विषय विश्व के सभी देशों के लिए है |

देश मे उच्च-अधिकारी, राजनेता, अभिनेता, मीडिया मे कार्यरत लोग एक ही बात को दोहरा रहें है की इस महामारी से डरना नहीं, हर हाल मे लड़ना है | पर जमीनी हकीकत कही इससे जुदा है | देश के बड़े भाग की आबादी के पास आज भी बेसिक जरूरतों की चीजे नहीं है, जिन्हे हम सरल शब्दों मे रोटी कपड़ा और मकान कहतें है | फिर स्वास्थ्य, यातायात, सुरक्षा और रोजगार की स्थिति किसी से भी छिपी नहीं है |

निसन्देह, इन समस्याओं के लिए पूर्व की सरकारें जिम्मेदार है जिन्होंने सही समय पर सही रणनीति न अपनाकर देश को आज ऐसी स्थति मे ला खड़ा किया है की सरकार चलाने वाले नेताओं के पास कई चीजों का अभाव है और कई चीजों के लिए विदेशों पर निर्भरता बनी हुई है | पूर्व की सरकारों ने लूट को पहली प्राथमिकता दी जिससे गरीब और गरीब होता चला गया |

आज की इस महामारी मे महानगरों की स्थिति अत्यंत चिंता जनक है | जिस तरह से कई लोग एक छोटे से घर मे रह रहें है उनके लिए कोरोनावायरस से बचने के लिए, दिए गए सुझाओ को मानना असंभव सा है | सोशल डिस्टेनसिंग और हाथों का बार बार धोना उचित आहार लेना योग करना जैसे नियमित आवश्यक कार्य आज भी सिर्फ बड़े लोगों तक सीमित है | जबकि इसकी आवश्यकता सभी के लिए है |

जहां गरीब आदमी जिंदगी की दिन-प्रतिदिन की समस्याओं से दो-चार हो रहा है उसके लिए महीने के 500 रुपये के क्या मायने है | एक परिवार का खर्च इस महंगाई मे क्या है यह किसी से छिपा नहीं है | कोटे से प्राप्त राशन को भी खाने तक पहुचाने के लिए 500 से अधिक रुपयों की जरूरत होगी | मिडल क्लास आदमी को रोजगार की चिंता है, सैलरी की चिंता है, ईएमआई की चिंता है, बच्चों के स्कूल के फीस की चिंता है | तो ऐसे मे सरकार द्वारा कि गयी घोषणा सिर्फ लोगों की चिंता मे ही बढ़ावा दे रही है |

इतनी ढेरों समस्याओ का सामना करते हुए भी आज तक लोग जिस सिद्दत से आदेशों के पालन मे लगें है वह सच मे कबीले तारीफ है | सभी भूख, और भविष्य को भूल कर लॉक-डाउन मे देश के साथ है | तो ऐसे मे लोग इस बीमारी से डरेंगे नहीं तो क्या करें | इस बीमारी ने 6 दशकों से अधिक समय के कार्यकाल की वास्तविकता को आम जनता के सामने ला दिया है | सिर्फ चुनावी वोट बैंक की राजनीति से देश ने अपने महत्वपूर्ण 6 दशक व्यतीत कर दिए | और लोगों की समस्या जस की तस रही | आज मोदी सरकार, न केवल वर्तमान विषम परिस्थिति से लड़ रही है बल्कि पिछली सरकारों की अक्षमता से भी लड़ रही है | और देश के बचाने मे लगी हुई है | शायद यही वजह है की कई लोग सरकार से असन्तुष्ट भी है | हम सब को पुनः यह सोचना होगा की हमारे पास धैर्य और साहस के साथ लड़ने के अलावा क्या कोई अन्य ऑप्शन है ?

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