देश में
चुनावी माहौल
अपने चरम
सीमा पर
है | आरोप
– प्रत्यारोप ने सभी
सीमाये लाँघ
रखी है
| नेताओं ने, लोगों को
आकर्षित करने
वाले लोक
लुभावन घोषणाओं
की झड़ी
सी लगा
रखी है
| देश की यह
17वी
लोक सभा
चुनाव होने
जा रहा
है | चुनाव
आयोग ने
इसे “देश का महा त्यौहार” नाम दिया
है | लोगों
से लगातार अपील
भी किया
जा रहा
है की
इस चुनाव
में बढ़
चढ़ कर
हिस्सा जरुर
लेवे | 543
लोक सभा
सीट पर
चुनाव
होने
जा
रहें
है
| 272 लोक सभा
सीट
पर
चुनाव
जीतने
वाली
पार्टी
पूर्ण
बहुमत
प्राप्त
कर
सरकार
बनाएगी
| भारतीय जनता
पार्टी
और
कांग्रेस
के
अलावा
थर्ड
फ्रंट
के
रूप
में
महा-गठबंधन
जनता
के
सामने
एक नए विकल्प के रूप में प्रस्तुत हुआ
है
| आम जनता के
पास
बेहतर
आप्शन
उपलब्ध
है,
देश
के
नेतृत्व
को
जिम्मेदार
लोगों
के
हांथो
में
सौपने
के
लिये
| सभी पार्टिया
और
उनके
नेता
अपनी
– अपनी सफलता के
बड़े
बड़े
दावे
कर
रहें
है
| सभी अपने को पूर्ण ईमानदार बता रहें है जबकि “कोई भी शत प्रतिशत सही नहीं हो सकता, और कोई भी शत प्रतिशत गलत नहीं हो सकता”
17वी
लोक
सभा
चुनाव
के
अपने
कई
मुद्दे
है
जो
जाति,
धर्म,
क्षेत्र
सहित
कई
आधारों
पर
विभाजित
है
| उत्तर प्रदेश,
बिहार
जैसे
प्रदेशों
के
मुद्दे
प्रत्येक
लोक
सभा
सीट
पर
अलग
दीखते
है
| चुनावी समर में आज देश
के
मुख्य
मुद्दों
में
निम्नाकित प्रदर्शित किये जा रहें है
:-
1. राष्ट्रीय
सुरक्षा :
हाल
ही
में
भारत
पाकिस्तान
के
आपसी
सम्बन्धो
के
चलते
युद्ध
जैसे
हालत
बनने
और
भारत
सरकार
के
द्वारा
आतंकवाद
पर
सर्जिकल
स्ट्राइक
करने
का
मुद्दा
सबसे
बड़ा
मुद्दा
है
| सरकार यह प्रमाणित
कर
रही
है
की
देश
की
सुरक्षा
से
कोई
समझौता
नहीं
होगा
| सरकार के प्रयास
भी
इस
दिशा
में
सराहनीय
है
| जबकि विरोधी
पार्टियाँ
शांति
समझौते
से
देश
की
सुरक्षा
सुनिश्चित
करना
चाह
रही
है
जो
दशको
से
आज
तक
नहीं
हो
पाया
|
2. लोकतान्त्रिक
समस्या :
वर्तमान
सरकार
पर
विरोधी
पार्टियों
का
आरोप
है
की
सरकार
लोकतान्त्रिक
संस्थाओ
और
प्रक्रियाओं
को
नष्ट
कर
रही
है
जो
देश
के
लिये
बेहद
गंभीर
समस्या
है
|
3. नागरिकता
संशोधन विधेयक
2016
: 2016 को
लोकसभा
में
‘नागरिकता
अधिनियम’ 1955 में
बदलाव
के
लिए
लाया
गया
है
।
केंद्र
सरकार
ने
इस
विधेयक
के
जरिए
अफगानिस्तान, बांग्लादेश
और
पाकिस्तान
के
हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैन, पारसियों
और
ईसाइयों
को
बिना
वैध
दस्तावेज
के
भारतीय
नागरिकता
देने
का
प्रस्ताव
रखा
है
।
इसके
लिए
उनके
निवास
काल
को
11 वर्ष से
घटाकर
छह
वर्ष
कर
दिया
गया
है।
यानी
अब
ये
शरणार्थी
6 साल बाद
ही
भारतीय
नागरिकता
के
लिए
आवेदन
कर
सकते
हैं।
इस
बिल
के
तहत
सरकार
अवैध
प्रवासियों
की
परिभाषा
बदलने
के
प्रयास
में
है
।
जिसका
विरोधी
पार्टिया
जम
कर
विरोध
कर
रही
है
|
4. बेरोजगारी
: एन.डी.ए.
सरकार
में
बेरोजगारी
तेजी
से
बढ़ी
है
| कई एजेंसियों
ने
भी
इस
बात
की
पुष्टि
की
है
| सरकार की कुछ
नीतियाँ
जो
देश
को
लम्बे
समय
में
सशक्त
बनाएगी,
किन्तु
अल्पकाल
में
बेरोजगारी
जैसे
मुद्दे
को
जन्म
दिया
है
| विपक्षीय पार्टिया
सरकार
पर
आरोप
लगा
रही
है
की
सरकार
देश
चलाने
में
अक्षम
है
|
5. अन्य
: जाति,
धर्म,
राष्ट्रवाद,
देश
भक्त,
टुकड़े-2
गैंग,
अर्बन
नक्सल,
अवार्ड
वापसी
गैंग,
पकिस्तान
प्रेमी,
देश
द्रोही
जैसे
मुद्दे
भी
इस
चुनाव
के
अहम्
हिस्सों
में
है
|
17वी
लोक सभा
चुनाव पिछले
चुनाव से
अलग कैसे?
विगत में 16
बार
लोक
सभा
चुनाव
हो
चुके
है
परन्तु
17वी लोक
सभा
चुनाव
उन
सब
चुनावों
से
विल्कुल
अलग
है
| इस चुनाव
में
वोटो
का
ध्रुवीकरण
किया
जा
रहा
है
| इस कार्य
में
सत्ता
पक्ष,
विपक्ष
दोनों
का
बराबर
योगदान
है
| जातिवाद क्षेत्रवाद
के
आधार
पर
टिकट
बाटना
इसका
जीवंत
उदहारण
है
| परस्पर घोर
विरोधी
प्रटियों
का
आपस
में
जुड़ना
और
चुनाव
लड़ना
भी
वोटों
के
ध्रुवीकरण
को
दिखाता
है
| सोशल मीडिया
जैसे
व्हात्सप्प,
फेसबुक,
ट्विटर,
विभिन
समाचार
माध्यमों
पर
प्रायोजित
समाचारों
का
भण्डार
सा
लगा
हुआ
है
| नेताओं से
ज्यादा
इस
चुनाव
में
आम
जनता
आपसी
बहस
और
सच्चे
झूठे
के
विवाद
से ग्रस्त है
| महिलाओं की
याद
नेताओं
और
पार्टियों
को
चुनाव
के
बाद
ही
आती
है
यही
कारण
है
की
इस
बार
की
लोक
सभा
चुनाव
में
विभिन्न
पार्टियों
ने
महिला
उम्मीदवारों
को
टिकट
देने
में कम तहरीज
दी
है
| यदि यह कहा
जाय
की
इस
बार
का
चुनाव
विकास
के
मुद्दों
के
बजाय
विवाद
के
मुद्दे
पे
लड़ा
जा
रहा
है
तो
यह
कहना
अतिश्योक्ति
नहीं
होगा
|
जीतेगा
कौन ?
वर्ष
2014 की
16वी लोक
सभा
चुनाव
में
कुल
3870 करोड़ रूपये
खर्च
होने
का
अनुमान
है
| जबकि 2019
के
17वी लोक
सभा
चुनाव
में
2014 की
अपेक्षा
20गुना अधिक
(77400 करोड़)
चुनाव
खर्च
होने
का
अनुमान
है
| इसके अतिरिक्त
चुनाव
लड़ने
वाली
पार्टियों
द्वारा
लगभग
50 हजार
करोड़
रूपये
खर्च
होना
अनुमानित
है
| कुल अनुमानित
खर्च
127400 करोड़
रूपये
से
अधिक
है
| सत्ता के इस
महा
संग्राम
में
सत्ता
पाना तो किसी
एक
चुनावी
पार्टी
का
तय
है,
किन्तु
हार
आम
जनता
की
ही
होगी
| जो आर्थिक
भार
के
साथ-साथ
आज
भी
जमीनी
मुद्दों
के
लिये
संघर्ष
कर
रही
है
| दुर्भाग्यपूर्ण तब
अधिक
है
जबकि
वो
मुद्दे
ही
गायब
कर
दिये
जाये
| आम आदमी के
मुद्दों
की
अपेक्षा
इस
चुनाव
में
वोट
बैंक
के
मुद्दे
सर्वोपरी
है
| किसी एक पार्टी
ने
जनता
हित
के
कार्य
किया
तो
है
पर
चुनावी
रण
में
वो
खुद
के
मुद्दों
को भूल कर
ध्रुवीकरण
के
मुद्दे
पर
चुनाव
में
शामिल
है
| तो क्या यह माना जाये कि अबकी बार ध्रुवीकरण
की सरकार ?
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