प्रेम इतना गहरा है , जितनी मृत्यु
इसे थोडा़ समझ लें , ......
जिन-जिन चीजों में मृत्यु से फर्क पड़ जाये ,
वह प्रेम नहीं है ।
जिस-जिस को मृत्यु छीन ले , मिटा दे ,
वह सब पार्थिव है ।
और प्रेम अपार्थिव है ।
जिन-जिन चीजों में मृत्यु से फर्क पड़ जाये ,
वह प्रेम नहीं है ।
जिस-जिस को मृत्यु छीन ले , मिटा दे ,
वह सब पार्थिव है ।
और प्रेम अपार्थिव है ।
सूफी कहते हैं कि प्रेम को मृत्यु नहीं मार सकती ।
बस एक चीज को मृत्यु नहीं मार सकती , वह प्रेम है ।
इसलिए वे कहते हैं , प्रेम परमात्मा तक ले जायेगा ।
धन नहीं ले जाएगा , क्योंकि मृत्यु धन को छीन लेगी ।
बुद्धि नहीं ले जायेगी , क्योंकि बुद्धि मृत्यु के इसी तरफ
पडी़ रह जायेगी । पद-सम्मान नहीं ले जायेगा , क्योंकि
मृत्यु सबको पोंछ डालती है । सिर्फ प्रेम ले जायेगा ,
क्योंकि प्रेम को मृत्यु नहीं पोंछ सकती ।
प्रेम मृत्यु से बडा़ है । प्रेम अमृत है ।
बस एक चीज को मृत्यु नहीं मार सकती , वह प्रेम है ।
इसलिए वे कहते हैं , प्रेम परमात्मा तक ले जायेगा ।
धन नहीं ले जाएगा , क्योंकि मृत्यु धन को छीन लेगी ।
बुद्धि नहीं ले जायेगी , क्योंकि बुद्धि मृत्यु के इसी तरफ
पडी़ रह जायेगी । पद-सम्मान नहीं ले जायेगा , क्योंकि
मृत्यु सबको पोंछ डालती है । सिर्फ प्रेम ले जायेगा ,
क्योंकि प्रेम को मृत्यु नहीं पोंछ सकती ।
प्रेम मृत्यु से बडा़ है । प्रेम अमृत है ।
तुम्हारा प्रेम ...... ,
आज पत्नी सुंदर है , आज प्रेयसी के पास रूप है
तो तुम्हारा प्रेम है । कल प्रेयसी बूढी़ हो जायेगी ,
तुम्हारा प्रेम खो जायेगा ।
मृत्यु तो बहुत दूर है , बुढा़पा भी दूर है ।
कल प्रेयसी बीमार पड़ जाये , अपंग हो जाये ,
कुरूप हो जाए , लंगडी़ हो जाये , अंधी हो जाये ,
प्रेम खो जायेगा ।
आज पत्नी सुंदर है , आज प्रेयसी के पास रूप है
तो तुम्हारा प्रेम है । कल प्रेयसी बूढी़ हो जायेगी ,
तुम्हारा प्रेम खो जायेगा ।
मृत्यु तो बहुत दूर है , बुढा़पा भी दूर है ।
कल प्रेयसी बीमार पड़ जाये , अपंग हो जाये ,
कुरूप हो जाए , लंगडी़ हो जाये , अंधी हो जाये ,
प्रेम खो जायेगा ।
मैंने सुना है , एक नवविवाहित जोडा़ हनीमून पर था ।
दूसरे या तीसरे दिन पत्नी ने पूछा कि तुम मुझे सदा ही
प्रेम करोगे ? अगर मैं कुरूप हो जाऊं तब भी ?
बूढी़ हो जाऊं तब भी ? यह रूप , यह सौंदर्य न रह जाये ,
तब भी ? उस युवक ने कहा कि देख ,
मैंने कसम खाई है , सुख-दुख में साथ देने की
मगर इसकी तो कोई चर्चा ही चर्च में न उठी थी ।
पादरी ने कहा था , ' सुख-दुख में साथ देना । '
सुख-दुख में साथ दूंगा , बाकी यह बात मत उठाना ।
इसकी तो कोई चर्चा ही नहीं उठी थी ।
दूसरे या तीसरे दिन पत्नी ने पूछा कि तुम मुझे सदा ही
प्रेम करोगे ? अगर मैं कुरूप हो जाऊं तब भी ?
बूढी़ हो जाऊं तब भी ? यह रूप , यह सौंदर्य न रह जाये ,
तब भी ? उस युवक ने कहा कि देख ,
मैंने कसम खाई है , सुख-दुख में साथ देने की
मगर इसकी तो कोई चर्चा ही चर्च में न उठी थी ।
पादरी ने कहा था , ' सुख-दुख में साथ देना । '
सुख-दुख में साथ दूंगा , बाकी यह बात मत उठाना ।
इसकी तो कोई चर्चा ही नहीं उठी थी ।
थोडा़ मन में सोचना , कि जिसे तुम प्रेम करते हो ,
उसे कुरूप अवस्था में भी प्रेम कर पाओगे ?
तुम्हारे भीतर सोचकर ही डावांडोल होने लगेगा भाव ।
नहीं यह संभव नहीं हो सकता ।
क्योंकि प्रेम तुमने आकृति को किया है ,
शरीर को किया है ; प्रेम तुमने व्यक्ति को तो किया
ही नहीं । जब आकार बदल जायेगा तो जिसे तुमने
प्रेम किया था वह बचा ही नहीं ।
यह दूसरा ही व्यक्ति है ।
उसे कुरूप अवस्था में भी प्रेम कर पाओगे ?
तुम्हारे भीतर सोचकर ही डावांडोल होने लगेगा भाव ।
नहीं यह संभव नहीं हो सकता ।
क्योंकि प्रेम तुमने आकृति को किया है ,
शरीर को किया है ; प्रेम तुमने व्यक्ति को तो किया
ही नहीं । जब आकार बदल जायेगा तो जिसे तुमने
प्रेम किया था वह बचा ही नहीं ।
यह दूसरा ही व्यक्ति है ।
सूफी कहते हैं , दो तरह के प्रेम हैं ,
एक प्रेम लौकिक , एक प्रेम अलौकिक प्रेम की तरफ
इशारा है । अलौकिक की पहचान यही है कि
मृत्यु के पार भी अलौकिक प्रेम चलता रहेगा ।
उसका कोई अंत नहीं है । l
एक प्रेम लौकिक , एक प्रेम अलौकिक प्रेम की तरफ
इशारा है । अलौकिक की पहचान यही है कि
मृत्यु के पार भी अलौकिक प्रेम चलता रहेगा ।
उसका कोई अंत नहीं है । l
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