एक अंधी स्त्री न्यूयॉर्क के एक रास्ते पर रास्ता पार करने के लिए खड़ी थी। प्रतीक्षा कर रही थी कि कोई आ जाए और राह पार करवा दे। तभी किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा। और जिसने कंधे पर हाथ रखा उसने कहा, क्या हम दोनों साथ- साथ रास्ता पार कर सकते हैं? उस स्त्री ने कहा, मैं प्रतीक्षा ही कर रही थी। आओ।
दोनों ने हाथ में हाथ डाला और पार हुए। जब उस तरफ पहुंच गए तो स्त्री ने कहा, बहुत-बहुत धन्यवाद कि आपने मुझे रास्ता पार करवाया। वह आदमी घबड़ाया। उसने कहा, क्या मतलब? धन्यवाद तो मुझे देना चाहिए। मैं अंधा हूं रास्ता तो तुमने मुझे पार करवाया। तब तो दोनों घबड़ा गए, पसीना आ गया। रास्ता तो पार हो गए थे, लेकिन तब पता चला, दोनों अंधे थे।
अंधों को पता भी कैसे चले कि हम किसी अंधे के पीछे चल रहे हैं? कतारें लगी हैं। क्यू लगे हुए हैं। तुम अपने आगे वाले को पकड़े हो, आगे वाला अपने आगेवाले को पकड़े हुए है। सबसे आगे कोई महाअंधा महात्मा की तरह चल रहा है। चले जा रहे हैं। न तुम्हें पता है, न तुम्हारे आगेवाले को पता है।
मुल्ला नसरुद्दीन नमाज पढ़ने गया था। होगा ईद का उत्सव या कोई धार्मिक त्यौहार। हजारों लोग नमाज पढ़ रहे थे। उसकी कमीज उसके पाजामा में उलझी थी। तो पीछे वाले आदमी को जरा अच्छा नहीं लगा तो उसने झटका देकर कमीज को ठीक कर दिया। उसने सोचा कि मामला कुछ है। उसने सामनेवाले आदमी: को...। उसकी कमीज में झटका दिया। उस आदमी ने पूछा, क्या बात है? झटका क्यों देते हो? उसने कहा, भाई मेरे पीछेवाले से पूछो। मैं तो समझा कि रिवाज होगा। इस मस्जिद में पहले कभी आया नहीं।
हम कर रहे हैं एक-दूसरे का अनुकरण। रस तो पाया कहां है? रस से तो तुम्हारी पहचान कहां हुई है? रस मिले तो प्रभु मिले। रस पा लिया तो सब पा लिया !!


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