इस सदी की सबसे बड़ी समस्या यह है कि हम
जाने-अन्जाने में रिश्तों की अहमियत न केवल भूलते चले जा रहे है बल्कि असम्वेदनशील
होते जा रहे है | कई रिश्तों में परिवर्तन को अधिकांश लोगों ने स्वीकार भी कर लिया
है, परन्तु एक परिवर्तन जिसने सभी रिश्तों की अहमियत को कम किया है वह है “स्वयं
की आकांक्षा” और “उसकी पूर्ति का सर्वोपरि होना” | ऐसी ही दुखद कहानी है एक ऐसी
बूढ़ी माँ की जिसे दर्द तो असहनीय है किन्तु अन्याय अपने ही बच्चो के द्वारा किये
जाने से न केवल शांत है बल्कि ईश्वर से न्याय की मांग के बजाय अपनी मौत का इन्तजार
कर रही है |
जब मै लखनऊ आया तो एक दो जगह मकान में
किराये पर रहने के उपरांत एक ऐसे व्यक्ति के मकान में गया जहाँ मकान मालिक उनकी
पत्नी और दो बच्चों के साथ रहते थे | उनके यहाँ किराये पर रहते हुए 3 वर्षो के
दौरान मैंने जाना की बड़ा बेटा छोटा – मोटा व्यवसाय करता है जबकि छोटे बेटे ने
वकालत की पढ़ाई की है और उसी की प्रैक्टिस कर रहा है | समय का पहिया अपनी ही रफ्तार
से चलता है | कुछ समय पश्चात मुझे पता चला की मकान मालिक की आकस्मिक मौत हो गयी |
मै उनके घर मिलने गया तो ज्ञात हुआ की 2 माह पूर्व उनकी मौत हो गयी | मैंने उनकी
पत्नी के बारें में जानना चाहा तो उनके बड़े बेटे ने बताया की वह गाँव गयी है और
वही रह रही है |
अच्छा मकान, सुख सुविधाएँ और वर्षो से
उस महिला का अपने पति के साथ रहना, फिर उनके पति की मृत्यु के पश्चात् गाँव चले
जाना मुझे थोडा अजीब लगा किन्तु फिर मन में विचार आया की हो सकता है की दुःख की
वजह से गाँव जाना उचित समझा हो | जहाँ उनके अपने लोग रह रहें हो | वर्ष दर वर्ष
समय व्यतीत होता चला गया उस कालोनी को छोड़े हुए मुझे भी वर्षो हो गये | हालाँकि मै
उधर जब भी जाता था उस महिला के बारे में पता करता था, किन्तु सभी लोग यही कहते थे
की वो तो गाँव में है |
आज मै पुनः उसी कालोनी में उनकी खबर
लेने जैसे ही उनके घर पंहुचा वो महिला बाहर कुर्शी पर बैठी थी | मुझे दूर से देखते
ही मेरे पास आ गयी और आप बीती सुनाने लगी | उनकी आप बीती कुछ इस तरह थी –
“बेटा जब तक मेरे पति जिन्दा थे तब तक मेरी
इज्जत मेरे बेटे और बहु दोनों करते थे | उनकी मृत्यु के उपरांत मुझे इन लोगों ने
जबरजस्ती गाँव भेज दिया और मै वर्षो से वही रह रही थी | गाँव की कुछ जमीन मेरे
जेठने बेचीं | जिसमे मेरे हिस्से के 5 लाख रूपये मिले थे | मेरे इन दोनों बच्चो को
जब इसकी खबर लगी तो मुझे यहाँ लिवा लाने को गए | मैंने उनसे कहा बेटा मेरे पेट में
पथरी हो गयी है, मै पहले अपना इलाज करवाउंगी फिर मै तुम लोगों के साथ चलूंगी |
बेटों ने कहा आप लखनऊ चलिये आपका इलाज हम करवा देगे और मुझे लखनऊ ले आये पथरी का
आपरेशन कराने के बहाने सारे पैसे मुझसे ले लिये और सरकारी हस्पताल में मेरा इलाज
करवाया | डाक्टर ने मुझे एक हप्ते आराम करने के लिये बोला था किन्तु आपरेशन के
अगले दिन से मुझे काम करना पड़ता है और मेरे सारे पैसे इन लोगों ने ले लिये है | मेरे
खाने तक का सही इंतजाम नहीं है, मै हाल में सोती हूँ और जल्दी फिर से गाँव चली
जाउंगी | तुम कैसे हो बेटा”
मैंने उनकी सारी बातें सुनी और जैसे ही
कुछ बोलना चाहा उनका बड़ा बेटा घर से बाहर निकला और बोला अरे अंदर चलो जब देखो
बक-बक करती रहती हो | गाँव जाकरके बक बक करना | मुझे बड़ा अजीब लगा की वो लड़का, जब
उसके पिता जी जिन्दा थे तो अपनी माँ को बड़ा इज्जत दिया करता था, जबकि उनकी मृत्यु
के बाद ....... छोटे बेटे को उसके पिता की मृत्यु की वजह से उनके स्थान पर जाब लग
गयी | फिर भी वह अपने माँ के लिये कुछ करने के बजाय बची खुची धनराशी उनसे लेने में
प्रयासरत था |
काफी विचार करने के पश्चात् मेरे मन
मष्तिष्क में यह प्रश्न बार बार खड़ा है की इन सब में दोष किसका है ? बेटों का ?
माँ का ? समाज का ? या माँ की ममता का जो सबकुछ जानते हुए भी इस लिये चुप है की
लाख गलती कर रहे हो पर है ये दोनों मेरे बच्चे ही तो?
वास्तव में बूढ़ी आंखे अब सिर्फ इस लिये
जिन्दा है की आसानी से मौत आ जाये और इस जिंदगी से छुटकारा मिल सकें !
हमारे समाज में आप, हम, सब रोज ऐसी
किसी घटना से रूबरू हो रहें होगे | इस घटना को आपसे साझा करने का उद्देश्य मात्र
यह है रिश्तों की अहमियत करना न केवल हम सब प्राथमिकता दे बल्कि बच्चों को भी इसके
महत्व को समझाये | क्योकि हम हर जगह तो नहीं हो सकते परन्तु हमारे संस्कार अपने
बच्चों के माध्यम से कई जगह हो सकता है जो सही मायने में अपनेपन और रिश्तों को कही
न कही सच्चे ढंग से निभा रहा होगा |
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