आधुनिकता की इस दुनियां में जहाँ लोग चाँद तक पहुँच गए है, वैश्विक उत्पाद देश के कोने-कोने में मिल रहें है, सरकारें अपनी उपलब्धियां गिनाते नहीं थकती वही आज भी इन्सान सर ढकने की जमीनी आवश्यकताओं से न केवल सरकार द्वारा वंचित किया जा रहा है बल्कि इनकी समस्याओं को सुनने वाला भी कोई नहीं है | हमारी आपकी तरह इनकी भी सरंचना हाढ़ मांस की ही है फिर भी ये बाध्य है शर्दी, गर्मी, बारिश, धुप, तूफ़ान में जीवन व्यतीत करने के लिये | इनके लिये न नेता आगे आते है न समाज सेवी संगठन, न मीडिया और न ही सरकार | यह मार्मिक स्थिति कही और नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में है | जो उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री जी के निवास से महज 8 किलो मीटर दुरी (पुराना हनुमान मंदिर अलीगंज लखनऊ, सेक्टर एल 226020 के बगल में) पर है |



रोजगार की तलाश में ये लोग विभिन्न जिलों से लखनऊ दो दशक पहले आये और मजदूरी करके अपना पेट पाल रहे है | इनके लिये रहने तक की छाँव नसीब नहीं है | कहने को तो आधार कार्ड, वोटर आईडी राशन कार्ड आदि सरकारी प्रपत्र इनके पास है | परन्तु जिसकी जमीनी जरुरत है “एक छाँव” वो नहीं है | एल.डी.ए. के खाली जमीन पर ये लोग दशको से रह रहे थे और एल.डी.ए. ने यह जमीन बेच दी और इनसे यह जमीन खाली करवा दी | आज ये सब लोग बाध्य है न केवल स्वयं बल्कि मासूम बच्चे भी इस भीषण गर्मी में अपना जीवन बिताने को |



इन लोगों से जैसे ही आप मिलने जाते हो इन्हें लगता है की शायद कोई ईश्वर जमीन पर आ गया है और उनकी सारी मुशिबतों का समापन कर देगा | मानवता की पीड़ा को यदि आप नजदीक से देख और समझ चुके है तो जरुर इनकी बात को सरकार तक जरुर पहुचाएं | कम से कम शोसल मीडिया की शक्ति से ही इनकी समस्याओं का समाधान तो हो सके | किसी को भी इनकी समस्याये झूठी लगे तो उस पर विश्वास करने से पहले एकबार इस नम्बर (8726708650) पर जरुर बात करें | आपको सच्चाई अवश्य पता चल जाएगी |


एक माँ अपने बच्चे को शायद यही झूठी दिलासा दिलाने  का प्रयास कर रही है की कोई न कोई तो जरुर आयेगी मेरा आशियाँ बचाने को |


जमीन पर बैठे बच्चे शायद यही सोच कर तसल्ली कर ले रहे है की क्या हुआ दिन भर कड़ी धुप में रहना पड़ता है कम से कम इस सड़क पर बैठने से तो अभी कोई नहीं रोक रहा |


घर और घर की ममता क्या होती है इन बच्चो से बेहतर कोई नहीं जान सकता | सब कुछ उजड़ जाने के बाद भी खुश है अपने अधूरे सपने और जिंदगी की दिन प्रतिदिन के संघर्ष में |



क्या इसे छाँव कहेगे ? देश की राजधानी से महज 8 किलोमीटर पर यह स्थिति है तो अन्य जनपद के लोगों के बारे में क्या ?


ये लोग सोच रहें है की पता नहीं कब सरकारी अफसर आ जाये और बचे हुए छाँव को जला दे | जिंदगी में संघर्ष क्या होता है शायद इनसे बेहतर कोई समझता हो |


तो क्या हुआ एल.डी.ए. ने घर तोड़ दिया | जिंदगी बिताने के लिये फुटपाथ भी काफी है | शायद ये लोग यही कहना चाह रहे |



प्रधान मंत्री जी की उज्ज्वला योजना शायद कई दशकों पश्चात् भी इन लोगों तक पहुच पायेगी | जिनकी समस्याएं सरकार तक चाँद किलोमीटर दूर होते हुए भी नहीं पहुच पा रही है |


सरकार और कोर्ट आधार में प्राइवेशी के लिये सजग है किन्तु निजी जिंदगी में इन जैसे लोगो के प्राइवेशी के कोई मायने जिन्हें अपने जन के लिये चार दिवारी नहीं नसीब है | छप्पर तो एल.डी.ए. के अधिकारीयों ने ढहा दिया |


 निःशब्द है ये लोग जिनसे बात करने से अधिक इनकी ऑंखे और परिस्थियाँ सब बयां कर देती है |


हमसे आप से ये सब यही कहना चाह रहें है की सरकार तक इनकी आवाज अवश्य पहुचाये की इन्हें भी रहने को टुटा फूटा ही कोई एक घर तो मिल पाए | प्रधानमंत्री आवास योजना ना सही तो कम से कम ऐसी जमीन मिल सके जहा छप्पर डाल करके ये रह सकें | कम से कम यह सुकून तो जरुर मिलेगा की एल.डी. ए. जैसे अफसर तो इनका आशियाना तोड़ने तो नहीं आयेगे | विचार कीजिये और सहयोग भी | कृपया अपना अमूल्य कमेन्ट इस विषय में जरुर करें |

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