कभी क्षेत्रवाद का बोलबाला था, फिर
जातिवाद का बोलबाला हुआ और अब धर्मवाद का बोलबाला है | राजनीति के सारे समीकरणों,
आकलनों, इतिहास के प्रमाणों से बाहर जाकर राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने के पीछे कई कारण
रहें है पर उन सबमे अति महत्वपूर्ण योगदान धर्मवाद का रहा है | अपनी सफलता को और
अधिक बढ़ाने के लिए राज्यों के अलग अलग चुनावों में भी धर्मवाद को बढ़ावा दिया गया |
परिणामस्वरूप अधिकांश राज्यों में सफलता भी प्राप्त हुई है | किन्तु जमीनी हकीकत
यह है की आज देश अपने सबसे विषम परिस्थिति से गुजर रहा है, जहाँ एक तबका अपने को
असुरक्षित महसूस कर रहा है तो दूसरा तबका सुरक्षित महसूस होते हुए भी भविष्य में
झूठी आशंकाओं से वर्तमान में लड़ रहा है | इस असुरक्षा, धर्मवाद, बटवारे की राजनीति
को बढ़ावा देने में जिओ मोबाईल ने आग में घी डालने जैसा काम किया है | देश में
बेरोजगारों की संख्या अपने चरम सीमा पर है, जिन्हें जियो मोबाईल ने देश की राजनीति
में अपनी अधूरी जानकारी को बिखेरने का अभूतपूर्ण मौका दे दिया हैं | आज देश का
मुख्य मुद्दा, तीन तलाक, मंदिर, मस्जिद, ताजमहल, टीपू सुल्तान, अकबर, हिन्दू
मुसलमान, शाकाहारी, मांसाहारी, रोहिंग्या मुसलमानों, तक सिमट कर रह गया है |
वास्तविक मुद्दे कही गुम हो गये है जिनसे राजनैतिक पार्टियों को तो कोई लेना देना
नहीं है और आम जनता को उन्होंने ऐसे चक्रव्यूह में उलझा दिया है की उससे बाहर आना
तो दूर जनता उसके बारें में सोच भी नहीं रही है |
आज डिजिटल इंडिया का दौर चल रहा है
जहाँ देश के कोने-कोने की ही नहीं बल्कि विदेशों के कोने-कोने की ख़बरें पल भर में
हर जगह पहुँच रही है | शायद सरकार भी यही चाहती है की इन्ही मुद्दों में आप उलझे
रहो जिससे कम से कम आप सरकार से कोई प्रश्न तो नहीं करेंगे | मीडिया को आज बड़े
कार्पोरेट घराने नियंत्रित कर रहें है समाचार दिखाया नहीं जा रहा बल्कि वो क्या
दिखाना चाहते या बताना चाहते है उसे जबरजस्ती दिमाक में ठूसा जा रहा है | कुछ लोग
सपनों को बेचने में दक्ष होतें है और बहुत सारे लोग आलसी होने की वजह से सपनों के लाभ
के आकलन में आनन्द पाते है | जिसका लाभ किसको कितना मिलता है कहने की जरूरत नहीं है
| आज देश में एक बड़ी अजीब बात देखी जा रही है यदि आप अपने विचार को तार्किक और
वास्तविकता के साथ रखते है जो निसंदेह वर्तमान सरकार के नीतियों के खिलाफ भी हो
सकता है तो आपको सरकार से पहले मीडिया ही आपको देशद्रोही बना देगी | क्या यही
अभिव्यक्ति की आजादी है ?
आज से दशकों पहले
हम सब जब भीड़-भाड़ वाली जगह या समाज में लोगों के बीच होतें थे तो अपने आप को
सुरक्षित महसूस करते थे पर आज हम धर्म के नाम पर अन्दर से इतने कमजोर बना दिये गएँ
है की घर से बाहर जाने में भी कई बार सोचना पड़ता है | लोग वही है किन्तु विचार,
भावनाये और एहसास राजनेताओं ने दूषित कर दिये है | बेरोजगारी, स्वास्थ्य, सुरक्षा,
धर्मवाद, उत्पादन, सेवाओ, विकास, की स्थिति का आकलन आज प्रत्येक आदमी कर रहा है |
अक्सर लोगों से सुनने में आता है की कई दशकों तक कांग्रेस ने विकास नहीं किया तो
आप लोग चुप क्यों थे ?. भाई साहब कांग्रेस ने विकास नहीं किया तो क्या आपको यह
लायसेंस मिल गया है की आप भी दशकों तक शासन करने के पश्चात् परिणाम देंगे |
उत्पादन के उद्योग बंद हो रहें है नए लग नहीं रहें है | भारतीय कम्पनियों को खुले
आम प्रताणित किया जा रहा है | एप्पल जैसी कम्पनियां अपने शर्तो पर देश में कार्य
करने हेतु आ रही है | प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री पूजा पाठ में व्यस्त है | क्या
यही विकास का चित्र है | बच्चियों, महिलायों से खुले आम बलात्कार हो रहा है और हम
जापान के साथ मिलकर बुलेट ट्रेन के उद्घाटन में व्यस्त है | देश में पटरियों का
बुरा हाल है दुर्घटनाओं में अनेको लोगों की जिंदगी चली गयी | शायद विकास के यही
मायने है | आज भी पुलिस प्रशासन अपने मन की कर रहें है फिर सरकारी नियंत्रण के
क्या मायने | सरकार लोगो को निशक्त बना रही है | कृषि ऋण माफ़ करके लोगों में लालच
का निर्माण कर रही है | जरूरत कृषि सम्बन्धी आवश्यकतों की पूर्ति की है पर सरकार
के पास न नीति है और न ही उसको क्रियान्वित करने की शक्ति भी | शिक्षा प्रत्येक
राज्य में परिवर्तित है, सरकार के पास उच्च शिक्षित लोगो के लिए भी रोजगार नहीं है
| विमुद्रीकरण तत्पश्चात जी.एस.टी. का प्रभाव सबसे अधिक आम जनता पर पड़ रहा है | आज
रियल स्टेट का सेक्टर थम सा गया है | भारी भरकम जी.एस.टी. ने ऐसा प्रभाव डाला है
की आम आदमी न हँस पा रहा है और न ही रो पा रहा |
ऐसी अवधारणा है की
जब आप समाज देश के लिए अनुकरणीय हो जाये तो हर तबके का ध्यान रखते हुए कार्य करना
चाहिये | क्योकि आपकी हर छोटी बड़ी क्रियाकलापो से आम जनता पर प्रभाव पड़ता है | आप
धार्मिक है अच्छी बात है पर अन्य धर्मो का भी आपको उतना ही ध्यान रखना चाहिए जितना
अपने धर्म का | कुछ विद्वानों का मानना है की देश असंगठित क्षेत्र से संगठित में
परिवर्तित हो रहा है तो थोडा समस्या तो झेलनी पड़ेगी | पर साहब जरा यह भी बताएयेगा
की इस परिवर्तन में जिन लोगों के आशियाँ उजड़ जा रहे है उनका क्या दोष है | हिन्दू
आरंक्षण में विभक्त है हिन्दू मुस्लिम धर्म में | देश विकास को खोज रहा है | नेता
मंदिर में व्यस्त है | पिस रही है तो सिर्फ जनता, जनता और जनता | जिसका न कोई माई –
बाप पहले था न अब है और आगे का तो ........आप स्वयं अनुमान लगा सकते है |
नीतियाँ और कार्य
किताबों तक ढेरों मिल जायेगी, पाकिस्तान, चाइना, देश की सर्वोच्च प्राथमिकता तो
होगी | पर जनता नहीं ? क्योकिं जनता होती ही है मरने के लिए और राजनेता होते है
राजनीति करने के लिए | गोरखपुर में बच्चें दशकों से मरते चले आ रहें है कई सरकारे
आयी और गयी पर उनकी याद सिर्फ राजनीति के लिए होती है | वर्तमान राजनीतिक
परिस्थिति को देखकर ऐसा लग रहा है की एक नहीं लाखों भारत का जन्म इस भारत में हो
चूका है जो जाति, धर्म, क्षेत्र, विकास, पहचान, वर्ग, समूह, और न जिन किन – किन मुद्दों
के रूप में तेजी से आगे बढ़ रहा है, जिसकी युवा अवस्था इतनी खतरनाक होगी, जिसे कोई
न रोक पायेगा न उस पर राजनीति ही कर पायेगा |
कुछ लोग मेरे विचारों
से सहमत नहीं होंगे और उनके पास ढेरों कारण होंगे बताने को की देश में विकास हो
रहा है बस थोडा प्रतीक्षा कीजिये | ऐसे प्रत्येक लोगों से मेरा यही निवेदन है की
एक बार अपना और अपने अस-पास, सगे सम्बन्धियों का मुल्यांकन अवश्य करिये की क्या
मुलभुत आवश्यकताओं की पूर्ति हो रही है जिसकी नितांत आवश्यकता है ?
आप पाने विचार जरुर
साझा कीजिये जिससे वास्तविक स्थिति की प्रमाणिकता स्वतः हो जाएगी |
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