हम, आप, सभी खुशियों की तलाश में है और हम सब
की ख़ुशी के मायने भी अलग-अलग है | मै भी उन करोड़ो लोगों में से एक हूँ जो खुशियों
की तलाश में निरंतर चल रहा हूँ | मेरी ख़ुशी के मायने थोड़ा अलग है मुझे महंगे कपड़े,
अच्छा घर, आधुनिक चीजे और महंगी वस्तुएं कभी ख़ुशी नहीं दे पाये | ऐसा इसलिए नहीं
की ऐसी सारी चीजे दिखावा है बल्कि ऐसा इसलिए है की इनमे मेरी दिलचस्पी नहीं है |
मुझे किस बात से ख़ुशी मिलती है आजके पहले शायद मुझे भी नहीं पता था की खुशियों के वास्तिवक
मायने क्या है | जीवन में अनेकों उतार-चड़ाव, लगाव, प्रेम, ममता, पारिवारिक सुख,
सरंक्षण इत्यादि समस्त बातों से मै अति गहरी तरह परिचित हूँ | अधिक खर्च करने के
पश्चात् भी सौ में से निन्यानवे बार खुशियों का एहसास अभी तक नहीं हो पाया था |
किताबों में अनेको बार मैंने पढ़ रखा था और अनेकों लोगों से सुन भी रखा था की “मनुष्य
वही है जो मनुष्य के लिए मरे” पर इस शब्द से भी खुशियों का ठिकाना नहीं मिलता | तो
खुशियाँ आखिर मिलती कहाँ है ?.
कल शाम की एक वास्तविक घटना मेरे साथ घटी जिसके
पश्चात् मुझे यह पता तो चल गया की खुशियाँ कहाँ मिलती है पर उन्हें पाने के लिए न
केवल मुझे बल्कि हम सब को तटस्थ रहना चाहियें जिससे हम खुशियों का खुशियों की तरह
ख़ुशी ख़ुशी आनंद उठा सकें |
अक्सर आफ़िस से आने के पश्चात् मै अपने बड़े बेटे
के साथ क्रिकेट खेलने जाता हूँ | कल भी शाम को मै जैसे ही आफ़िस से आया बेटे ने कहा
पापा आप रेडी हो जाओ हम पार्क में क्रिकेट खेलने चलते है | उसकी बात सुनकर मेरी
श्रीमती जी ने भी कहाँ हम भी चलतें है यानि की मै मेरा बड़ा बेटा, छोटा बेटा और
श्रीमती जी पार्क में गये | श्रीमती जी छोटे बेटे को गोद में लेकर पार्क में चहल
कदमी करने लगी और मेरा बडे बेटे ने बैटिंग की कमान सम्हाली और मुझे बाल्लिंग करने
के लिए बाल थमा दी | थोड़ी देर उसके खेलने के पश्चात् दो बच्चे आये और बोले अंकल हम
भी खेले ? उन दोनों ने प्रश्न भारी निगाह से मेरी तरफ देखते हुए कहा | मैंने कहाँ
हां क्यों नहीं | एक लोग विकेट के पीछे खड़े हो जाओं और दुसरे आफ साइड पर | मै
बालिंग करने लगा | कुछ देर बाद मेरा बेटा आउट हो गया | नन्हे क़दमों से लगभग उन
दोनों में से एक पांच साल का बच्चा बैटिंग करने लगा | उसके आउट हो जाने के पश्चात्
उसका बड़ा भाई जो लगभग सात वर्ष का था उसने बैटिंग शुरू किया और कुछ देर बाद वह भी
आउट हो गया | तीनों बच्चों के आउट हो जाने पर मेरी बारी आयी और मै तेजी से शॉट लगा
रहा था जिससे बाल दूर – 2 तक जा रही थी और वो दोनों बच्चे बिना किसी आपसी सीमा
निर्धारण के बाल – ला लाकर मेरे बेटे को दे रहे थे और वो बाल्लिंग कर रहा था | काफी
समय व्यतीत हो जाने के पश्चात् अँधेरा हो गया था क्रिकेट बाल भी दिखाई नहीं पड़ रही
थी तो मैंने यह डिसाइड किया की आज का मैच बंद किया जाय जबकि मेरे बेटे समेत वो
दोनों बच्चे अभी भी खेलना चाह रहें थे |
जैसे ही हम चारों लोग आगे बढ़ने लगे तो मै उन
दोनों बच्चों से उनका नाम पूछने लगा तो बड़े बच्चे ने अपना नाम “प्रधान” और छोटे
बच्चे ने अपना नाम “सुरज” बतया और बोले की एक चौथी कक्षा में है दूसरा अभी दूसरी
कक्षा में | हम लोग आगे बढ़ रहे थे की अपनी श्रीमती और छोटे बच्चे को लेकर घर
पंहुचा जाए इतने में छोटे बच्चे की चीख निकली मैंने पूछा क्या हुआ बेटा ? तो उसने
जबाब दिया अंकल पैर में काटें घुस गये है | मै रुका और अपने मोबाईल की लाईट आन कर
उसके पैर से काटें निकालें | तब मैंने महसूस किया की दोनों बच्चों ने अपने पैरों
में कुछ भी नहीं पहना हुआ है |
मैंने उन दोनों से पूछा बेटा पैर में कम से कम
स्लीपर क्यों नहीं पहना है ? यहाँ पर इधर उधर ढेरों झाडियाँ और काटें है पैर में
चोट लग जाएगी तो | तब “प्रधान” ने बोला अंकल हम पास ही झोपड़ी में रहते है बमुश्किल
हम लोगों को दो समय खाना मिलता हैं और हम सरकारी स्कुल में पढ़ने जातें है | हमारें
पास पैसे नहीं है यहाँ तक की हम दोनों स्कुल भी नंगे पाँव जातें है | उसकी बात
सुनकर मुझे बड़ा अजीब लगा की उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के मुख्य शहर से मात्र
10 किलोमीटर दूर इस स्थान पर गरीबों की सुध लेने वाला कोई नहीं है | ढेरों सुविधाएँ,
योजनायें, लाभ वितरण, कागजो पर जरुर होतें होंगे पर वास्तविकता आम जनता से कितनी
दूर है यह कहने से अधिक महसूस करने की आवश्यकता है | पार्क के बगल में सैकड़ो झोपड़
पट्टियाँ है जिसमे कई लोग रह रहें है जहाँ के लोगों को न डेंगू से डर लगता है न
लोग यहाँ बीमार होतें है न ही इन्हें खुला पानी पीने से नुकशान होता है और न ही
इनके पास जमीनी सुविधाएँ है |
मेरे दिमाक में ढेरों प्रश्न एक साथ चलने लगें
| तभी मेरी श्रीमती जी सामने सी आयी और बोली बहुत देर कर दी आपने चलिए घर चलते है
| मैंने उनसे और अपने बड़े बेटे से कहा तुम लोग पास हनुमान जी के मंदिर में दर्शन
करों मै इन दोनों बच्चों को इनके घर छोड़ कर आता हूँ | मेरी श्रीमती जी ने कहाँ अरे
ये तो रोज खेलने आतें होंगे चले जायेगे आप घर चलिये | मैंने उनसे दो शब्दों में
कहा अरे यार तुम चालों न मंदिर भगवान् के दर्शन करों मै दो मिनट में आता हूँ |
उन दोनों बच्चों को अपनी स्कूटी पे बैठाकर मै
सीधे दुकान पर गया और उन दोनों के लिए स्लीपर ख़रीदा | उन दोनों बच्चों के चेहरे की
ख़ुशी और प्रशन्नता देखकर मुझे जो सुकून मिला वो निश्चित रूप से करोड़ों रूपये की
आधुनिक चीज को पाकर नहीं मिलता | शायद जीवन इसी का नाम है की आप अपने छोटे से प्रयास
से किसी जरूरतमंद को कितनी ख़ुशी दे सकतें है | ईश्वर भी उसकी प्रार्थना करने के
बजाय यह जरुर हम सब से उम्मीद करता होगा की जरूरत मंद लोगों तक छोटा ही सही पर अपना
सहयोग हम सब जरुर नियमित रूप से देते रहें | उन दोनों बच्चों को उनके घर पर जैसे
ही मैंने पहुचायां उसके माँ – बाप आस पड़ोस के लोगों के आँखों में जो चमक और
कृतज्ञता दिख रही थी उसे देखकर ऐसा लग रहा था मानवता और समाज को बचाने के लिए हम
सब को धर्म, जाति, मजहब से ऊपर उठ कर सभी का सहयोग अवश्य करना चाहिये | उसकी माँ
ने मुझसे पूछा भैया आपका नाम क्या है ? मेरे मुख से कोई आवाज नहीं निकली और मै
वहां से वापस मंदिर चला आया |
घर वापस आते समय मेरे दिमाक में एक प्रश्न बार-बार
अपनी दस्तक दे रहा है की प्रदेश की राजधानी का यह हाल है तो प्रदेश के अन्य जनपदों
के हाल का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है | इसके लिए जिम्मेदार चाहे जो भी लोग
हो परन्तु इन बच्चो और इन जैसे ढेरों बच्चों का बचपन किस पीड़ा में व्यतीत हो रहा
है ये सरकारें, समाज या हम आप तब तक नहीं समझ पायेगे जब तक की एक भी बच्चा जमीनी
आवश्यकताओं से वंचित है | इस लेख को लिखने का मात्र उद्देश्य यह है की हम आप, हम
सब मिलकर अपने छोटे प्रयास से भी समाज में परिवर्तन ला सकते है और जीवन पर्यन्त
जिन खुशियों की तलाश हम करते है उसे जीवंत रूप से न केवल महसूस कर सकते है बल्कि प्राप्त
कर सकते है | जिसका कोई मोल नहीं है |
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