आधुनिकता और विलासितापूर्ण जीवन की लालसा में सुकून कही गुम सा हो गया है | पिछले कुछ दशकों से आधुनिकता और विलासितापूर्ण जीवन की वस्तुओं और सेवाओं में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई है किन्तु उसके ठीक विपरीत अनुपात में लोगों का अपना सुकून भी जीवन से गायब हो गया है | और शायद ऐसा इसलिए होता है की प्रकृति जब कुछ देती है तो उसके बदले में आप से कुछ लेती भी है यही उसका न्याय भी है | सुकून प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों रूपों में हमारी लालसा और व्याकुलता पर निर्भर करता है | कुछ लोग जीवन को साधारण तरह से व्यतीत करके सुकून महसूस करते है जबकि कुछ लोग विलासिता की आधुनिक चीजों को गलत-सही रास्तो को अपनाकर प्राप्त करने के पश्चात् उनके जीवन से सुकून गायब हो चूका होता है | यदि गम्भीरता और ईमानदारी से इसका मुल्यांकन किया जाय तो सुकून का किसी वस्तु, सेवाओं और विलासितापूर्ण जीवन को पा लेने से कोई लेना देना नहीं बल्कि सुकून व्यक्ति की सोच संतुष्टि, व्यवहार, कार्य, उदारता, सामूहिकता और प्रसन्नता पर निर्भर करता है | अस्सी के दसक के पहले के जन्मे व्यक्तियों में से अधिकांश लोगों के बचपन में उनके पास पहनने के एक या दो कपड़े होते थे, पाँव में पहनने के एक जोड़ी चप्पल या वो भी नहीं, बिस्कुट और ब्रेड उन्हें तब नसीब होता था जब वो बीमार होते थे और डाक्टर के द्वारा अनिवार्य बताया जाता था | स्कूल की पढ़ाई उन लोगों ने दूसरों के किताबों सी की | सोने के लिए एक चारपाई पर ही कई बार बिना विस्तर के भी हमेशा गहरी नीद आ जाती थी | अनावश्यक लालच मन में कभी भी नही रहता था | उन्ही लोगों के पास आज पहनने को ढेरों कपड़े, चप्पल, जूते, प्रतिदिन बिस्कुट, ब्रेड का सेवन, को मिल रहा है पर वो सुकून कही गायब सा हो गया है | सुबह जगने के साथ ही ढेरो कार्य योजनाओं की झड़ी लग जाती है और रात को विस्तर पर सोने जाने तक याद आता है की ये कार्य तो आज करने से छुट गया | ऐसे अनेको बातों के पीछे हम अनावश्यक रूप से दिन प्रतिदिन परेशान रहते है |

तो क्या यह मान लिया जाय की हम सब जो दिन-प्रतिदिन कर रहें है वो सही है और सुकून की हमारें जीवन में कोई आवश्यकता नहीं है ? कुछ लोगों का जबाब हाँ हो सकता है और तर्क यह की इसके अलावा कोई रास्ता है ही नहीं | ऐसे सभी लोगों से मेरा प्रश्न यह है की क्या वो वास्तव में सुकून प्राप्त करना चाहतें है ? क्योकि यह अत्यंत कठिन कार्य है की यह निर्धारित किया जाय की हम वास्तव में सुकून प्राप्त करना चाहते है | जिस दिन आपने यह निर्धारित कर लिया उसी दिन आपने आधुनिकता और विलासितापूर्ण जीवन के खिलाफ आधी लड़ाई पर विजय प्राप्त कर लिया | जीवन का प्रारम्भ जन्म से हुआ है और अंत मृत्यु से होगा इस बीच की अवधि ही हमारे जीवन की यात्रा है इस यात्रा को विलासितापूर्ण और आधुनिकता के मायाजाल से बचकर पूरा करना ही सुकून की प्राप्ति का निर्धारण करता है | सुकून प्राप्त करने के लिए हमें आप सबकों आवश्यकता से अधिक प्रत्येक उस चीज का त्याग करना होगा जो भी हमारे पास है अनावश्यक लालच ईर्ष्या द्वेष, काम, मद, छल, धन को भी जीवन से दूर रखना होगा और वह तभी हो पायेगा जब इस आधुनिकता की आँधी से आप अपने विचार, भावनायें और व्यवहार से काबू में कर पायेगे |

हम सब अपने जीवन के एक दशक पीछे का मुल्यांकन करें तो हमें यह प्राप्त होगा की हम सब अपने - अपने परिवार के आलावा जीवन में अन्य किसी के बारें में न तो सोचनें की जहमत उठाई है और न किसी जरूरतमंद की मदद की है | कुछ लोगों का तर्क हो सकता है की मेरी तो आमदनी बहुत कम है मै ऐसा चाह कर भी नहीं कर सकता | जबकि छोटी आमदनी से छोटी मदद करके आप जिस सुकून को प्राप्त करते हो वो दुनिया का कोई व्यक्ति आपको नहीं दे सकता | अर्थात सुकून को प्राप्त करने के लिए हम सब को व्यक्तिगत सोच और कर्मो से बहार आकार सामूहिक सोच सद्भावना सहयोग को अपनाकर, विलासितापूर्ण आधुनिक जीवन का त्याग करना पड़ेगा | तभी जन्म मृत्यु के बीच के इस रास्ते को शानदार तरीके से सुकून के साथ पूरा किया जा सकता है |  मुझे ख़ुशी होगी यदि आप इस बारें में अपनी राय से हमें कम्मेंट बॉक्स में कमेन्ट करके अवगत करायें |

Post a Comment

If you have any doubts, please let me know

और नया पुराने