सिकन्दर लोदी (१४८९-१५१७) के
शासनकाल से पहले पूरे भारतीय इतिहास में ‘चमार’ नाम की किसी जाति का उल्लेख नहीं मिलता। आज जिन्हें हम ‘चमार’ जाति से संबोधित करते
हैं और जिनके साथ छूआछूत का व्यवहार करते हैं, दरअसल वह वीर
चंवरवंश के क्षत्रिय हैं । जिन्हें सिकन्दर लोदी ने चमार घोषित करके अपमानित करने की
चेष्टा की । भारत के सबसे विश्वसनीय इतिहास लेखकों में से एक विद्वान कर्नल टाड को
माना जाता है जिन्होनें अपनी पुस्तक ‘द हिस्ट्री आफ
राजस्थान’
में चंवरवंश के बारे में विस्तार से लिखा है ।
प्रख्यात लेखक डॅा विजय सोनकर
शास्त्री ने भी गहन शोध के बाद इनके स्वर्णिम अतीत को विस्तार से बताने वाली
पुस्तक “हिन्दू चर्ममारी जाति: एक स्वर्णिम गौरवशाली राजवंशीय
इतिहास”
लिखी । महाभारत के अनुशासन पर्व में भी इस राजवंश का उल्लेख
है । डॉ शास्त्री के अनुसार प्राचीनकाल में न तो चमार कोई शब्द था और न ही इस नाम
की कोई जाति ही थी । ‘अर्वनाइजेशन’ की लेखिका डॉ
हमीदा खातून लिखती हैं,
मध्यकालीन इस्लामी शासन से पूर्व भारत में चर्म एवं सफाई
कर्म के लिए किसी विशेष जाति का एक भी उल्लेख नहीं मिलता है । हिंदू चमड़े को
निषिद्ध व हेय समझते थे । लेकिन भारत में मुस्लिम शासकों के आने के बाद इसके उत्पादन
के भारी प्रयास किए गये थे ।
डा विजय सोनकर शास्त्री के अनुसार
तुर्क आक्रमणकारियों के काल में चंवर राजवंश का शासन भारत के पश्चिमी भाग में था
और इसके प्रतापी राजा चंवरसेन थे। इस क्षत्रिय वंश के राज परिवार का वैवाहिक संबंध
बाप्पा रावल वंश के साथ था । राणा सांगा व उनकी पत्नी झाली रानी ने चंवरवंश से
संबंध रखने वाले संत रैदासजी को अपना गुरु बनाकर उनको मेवाड़ के राजगुरु की उपाधि
दी थी और उनसे चित्तौड़ के किले में रहने की प्रार्थना की थी । संत रविदास चित्तौड़
किले में कई महीने रहे थे । उनके महान व्यक्तित्व एवं उपदेशों से प्रभावित होकर
बड़ी संख्या में लोगों ने उन्हें गुरू माना और उनके अनुयायी बने । उसी का परिणाम
है आज भी विशेषकर पश्चिम भारत में बड़ी संख्या में रविदासी हैं । राजस्थान में चमार
जाति का बर्ताव आज भी लगभग राजपूतों जैसा ही है । औरतें लम्बा घूंघट रखती हैं आदमी
ज़्यादातर मूंछे और पगड़ी रखते हैं ।
संत रविदास की प्रसिद्धी इतनी
बढ़ने लगी कि इस्लामिक शासन घबड़ा गया सिकन्दर लोदी ने मुल्ला सदना फकीर को संत
रविदास को मुसलमान बनाने के लिए भेजा वह जानता था की यदि रविदास इस्लाम स्वीकार
लेते हैं तो भारत में बहुत बड़ी संख्या में इस्लाम मतावलंबी हो जायेगे लेकिन उसकी
सोच धरी की धरी रह गयी स्वयं मुल्ला सदना फकीर शास्त्रार्थ में पराजित हो कोई
उत्तर न दे सका और उनकी भक्ति से प्रभावित होकर अपना नाम रामदास रखकर उनका भक्त
वैष्णव (हिन्दू) हो गया । दोनों संत मिलकर हिन्दू धर्म के प्रचार में लग गए जिसके
फलस्वरूप सिकंदर लोदी आगबबूला हो उठा एवं उसने संत रैदास को कैद कर लिया और इनके
अनुयायियों को चमार यानी अछूत चंडाल घोषित कर दिया । उनसे कारावास में खाल खिचवाने, खाल-चमड़ा पीटने, जुती बनाने
इत्यादि काम जबरदस्ती कराया गया उन्हें मुसलमान बनाने के लिए बहुत शारीरिक कष्ट
दिए । लेकिन उन्होंने कहा………………………………………….”वेद धर्म सबसे
बड़ा,
अनुपम सच्चा ज्ञान, फिर मै क्यों
छोडू इसे,
पढ़ लू झूठ कुरान. वेद धर्म छोडू नहीं, कोसिस करो हज़ार, तिल-तिल काटो
चाहि,
गोदो अंग कटार” (रैदास रामायण)
संत रैदास पर हो रहे अत्याचारों के प्रतिउत्तर में चंवर वंश के क्षत्रियों ने
दिल्ली को घेर लिया । इससे भयभीत हो सिकन्दर लोदी को संत रैदास को छोड़ना पड़ा था ।
संत रैदास का यह दोहा देखिए:
बादशाह ने वचन उचारा । मत प्यारा
इसलाम हमारा ।।
खंडन करै उसे रविदासा । उसे करौ
प्राण कौ नाशा ।।
जब तक राम नाम रट लावे । दाना
पानी यह नहींपावे ।।
जब इसलाम धर्म स्वीकारे । मुख से
कलमा आपा उचारै ।।
पढे नमाज जभी चितलाई । दाना पानी
तब यह पाई ।
समस्या तो यह है कि आपने और हमने
संत रविदास के दोहों को ही नहीं पढ़ा, जिसमें उस समय
के समाज का चित्रण है जो बादशाह सिकंदर लोदी के अत्याचार, इस्लाम में जबरदस्ती धर्मांतरण और इसका विरोध करने वाले
हिंदू ब्राहमणों व क्षत्रियों को निम्न कर्म में धकेलने की ओर संकेत करता है । चंवरवंश
के वीर क्षत्रिय जिन्हें सिकंदर लोदी ने ‘चमार’ बनाया और हमारे-आपके हिंदू पुरखों ने उन्हें अछूत बना कर
इस्लामी बर्बरता का हाथ मजबूत किया । इस समाज ने पददलित और अपमानित होना स्वीकार
किया,
लेकिन विधर्मी होना स्वीकार नहीं किया आज भी यह समाज हिन्दू
धर्म का आधार बनकर खड़ा है ।
अब आइये जानते हैं खटिक जाति के
बारे में :-
खटिक जाति मूल रूप से वो ब्राहमण
जाति है,
जिनका काम आदि काल में याज्ञिक पशु बलि देना होता था। आदि
काल में यज्ञ में बकरे की बलि दी जाती थी। संस्कृत में इनके लिए शब्द है, ‘खटिटक’ । मध्यकाल में जब
क्रूर इस्लामी अक्रांताओं ने हिंदू मंदिरों पर हमला किया तो सबसे पहले खटिक जाति
के ब्राहमणों ने ही उनका प्रतिकार किया । राजा व उनकी सेना तो बाद में आती थी ।
मंदिर परिसर में रहने वाले खटिक ही सर्वप्रथम उनका सामना करते थे । तैमूरलंग को
दीपालपुर व अजोधन में खटिक योद्धाओं ने ही रोका था और सिकंदर को भारत में प्रवेश
से रोकने वाली सेना में भी सबसे अधिक खटिक जाति के ही योद्धा थे । तैमूर खटिकों के
प्रतिरोध से इतना भयाक्रांत हुआ कि उसने सोते हुए हजारों खटिक सैनिकों की हत्या
करवा दी और एक लाख सैनिकों के सिर का ढेर लगवाकर उस पर रमजान की तेरहवीं तारीख पर
नमाज अदा की । मध्यकालीन बर्बर दिल्ली सल्तनत में गुलाम, तुर्क, लोदी वंश और मुगल
शासनकाल में जब अत्याचारों की मारी हिंदू जाति मौत या इस्लाम का चुनाव कर रही थी
तो खटिक जाति ने अपने धर्म की रक्षा और बहू बेटियों को मुगलों की गंदी नजर से
बचाने के लिए अपने घर के आसपास सूअर बांधना शुरू किया । इस्लाम में सूअर को हराम
माना गया है । मुगल तो इसे देखना भी हराम समझते थे । और खटिकों ने मुस्लिम शासकों
से बचाव के लिए सूअर पालन शुरू कर दिया । उसे उन्होंने हिंदू के देवता विष्णु के
वराह (सूअर) अवतार के रूप में लिया । मुस्लिमों की गो हत्या के जवाब में खटिकों ने
सूअर का मांस बेचना शुरू कर दिया और धीरे धीरे यह स्थिति आई कि वह अपने ही हिंदू
समाज में पददलित होते चले गए । कल के शूरवीर ब्राहण आज अछूत और दलित श्रेणी में
हैं।
1857
की लडाई में मेरठ व उसके आसपास अंग्रेजों के पूरे के पूरे
परिवारों को मौत के घाट उतारने वालों में खटिक समाज सबसे आगे था । इससे गुस्साए
अंग्रेजों ने 1891
में पूरी खटिक जाति को ही वांटेड और अपराधी जाति घोषित कर
दिया । जब आप मेरठ से लेकर कानपुर तक 1857 के विद्रोह की दासतान पढेंगे तो रोंगटे खडे हो जाए्ंगे । जैसे को तैसा पर चलते
हुए खटिक जाति ने न केवल अंग्रेज अधिकारियों, बल्कि उनकी
पत्नी बच्चों को इस निर्दयता से मारा कि अंग्रेज थर्रा उठे । क्रांति को कुचलने के
बाद अंग्रेजों ने खटिकों के गांव के गांव को सामूहिक रूप से फांसी दे दिया गया और
बाद में उन्हें अपराधि जाति घोषित कर समाज के एक कोने में ढकेल दिया । आजादी से
पूर्व जब मोहम्मद अली जिन्ना ने डायरेक्ट एक्शन की घोषणा की थी तो मुस्लिमों ने
कोलकाता शहर में हिंदुओं का नरसंहार शुरू किया, लेकिन एक दो
दिन में ही पासा पलट गया और खटिक जाति ने मुस्लिमों का इतना भयंकर नरसंहार किया कि
बंगाल के मुस्लिम लीग के मंत्री ने सार्वजनिक रूप से कहा कि हमसे भूल हो गई। बाद
में इसी का बदला मुसलमानों ने बंग्लादेश में स्थित नोआखाली में लिया।
आज हम आप खटिकों को अछूत मानते
हैं,
क्योंकि हमें उनका सही इतिहास नहीं बताया गया है, उसे दबा दिया गया है । आप यह जान लीजिए कि दलित शब्द का
सबसे पहले प्रयोग अंग्रेजों ने 1931 की जनगणना में ‘डिप्रेस्ड क्लास’ के रूप में
किया था। उसे ही बाबा साहब अंबेडकर ने अछूत के स्थान पर दलित शब्द में तब्दील कर
दिया। इससे पूर्व पूरे भारतीय इतिहास व साहित्य में ‘दलित’ शब्द का उल्लेख कहीं
नहीं मिलता है । हमने और आपने मुस्लिमों के डर से अपना धर्म नहीं छोड़ने वाले, हिंसा और सूअर पालन के जरिए इस्लामी आक्रांताओं का कठोर
प्रतिकार करने वाले एक शूरवीर ब्राहमण खटिक जाति को आज दलित वर्ग में रखकर अछूत की
तरह व्यवहार किया है और आज भी कर रहे हैं । भारत में 1000 ईस्वी में केवल 1 फीसदी अछूत
जाति थी,
लेकिन मुगल वंश की समाप्ति होते-होते इनकी संख्या 14 फीसदी हो गई। आखिर कैसे..?
सबसे अधिक इन अनुसूचित जातियों के
लोग आज के उत्तरप्रदेश,
बिहार, बंगाल, मध्य भारत में है, जहां मुगलों
के शासन का सीधा हस्तक्षेप था और जहां सबसे अधिक धर्मांतरण हुआ। आज सबसे अधिक
मुस्लिम आबादी भी इन्हीं प्रदेशों में है, जो धर्मांतरित
हो गये थे।
डॉ सुब्रहमनियन स्वामी लिखते हैं, ” अनुसूचित जाति उन्हीं बहादुर ब्राह्मण व क्षत्रियों के वंशज
है, जिन्होंने
जाति से बाहर होना स्वीकार किया, लेकिन मुगलों के जबरन धर्म परिवर्तन को स्वीकार नहीं किया।
आज के हिंदू समाज को उनका शुक्रगुजार होना चाहिए, उन्हें कोटिश: प्रणाम करना चाहिए, क्योंकि उन
लोगों ने हिंदू के भगवा ध्वज को कभी झुकने नहीं दिया, भले ही स्वयं अपमान व दमन झेला।” प्रोफेसर शेरिंग ने भी अपनी पुस्तक‘ हिंदू कास्ट एंड टाईव्स’ में स्पष्ट
रूप से लिखा है कि ”भारत के निम्न जाति के लोग कोई और नहीं, बल्कि ब्राहमण और क्षत्रिय ही हैं।” स्टेनले राइस ने अपनी पुस्तक “हिन्दू कस्टम्स एण्ड देयर ओरिजिन्स” में यह भी लिखा है कि अछूत मानी जाने वाली जातियों में
प्राय: वे बहादुर जातियां भी हैं, जो मुगलों से हारीं
तथा उन्हें अपमानित करने के लिए मुसलमानों ने अपने मनमाने काम करवाए थे।
यदि आज हम बचे हुए हैं तो अपने
इन्हीं अनुसूचित जाति के भाईयों के कारण जिन्होंने नीच कर्म करना तो स्वीकार किया, लेकिन इस्लाम को नहीं अपनाया । आज भारत में 23 करोड़ मुसलमान हैं और लगभग 35 करोड़ अनुसूचित जातियों के लोग हैं । जरा सोचिये इन लोगों ने भी मुगल
अत्याचारों के आगे हार मान ली होती और मुसलमान बन गये होते तो आज भारत में मुस्लिम
जनसंख्या 50
करोड़ के पार होती और आज भारत एक मुस्लिम राष्ट्र बन चुका
होता । यहाँ भी जेहाद का बोलबाला होता और ईराक, सीरिया, सोमालिया, पाकिस्तान और
अफगानिस्तान आदि देशों की तरह बम-धमाके, मार-काट और खून-खराबे
का माहौल होता। हम हिन्दू या तो मार डाले जाते या फिर धर्मान्तरित कर दिये जाते या
फिर हमें काफिर के रूप में अत्यंत ही गलीज जिन्दगी मिलती ।
धन्य हैं हमारे ये भाई जिन्होंने
पीढ़ी दर पीढ़ी अत्याचार और अपमान सहकर भी हिन्दुत्व का गौरव बचाये रखा और स्वयं
अपमानित और गरीब रहकर भी हर प्रकार से भारतवासियों की सेवा की । हमारे अनुसूचित
जाति के भाइयों को पूरे देश का सलाम
(This article written by Mr. Pramod
Agrawal <pka_ur@yahoo.com and published with due consent of him. blogger is not taking any responsibility of the
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