भोजशाला आंदोलन की वजह से राजा भोज इन दिनों फिर चर्चा में हैं. राजा भोज 11 वीं सदी में मालवा और मध्य भारत के प्रतापी राजा थे. वो दौर गुजरे तो जमाना हो गया लेकिन राजा भोज आज भी कहां राजा भोज और कहां गंगू तेलीकी कहावत के जरिए बोलचाल में बने रहते हैं, क्या है इस कहावत के पीछे की कहानी, आइये देखते हैं.
इस कहावत को फिल्मी गाने में भी पिरोया गया. यही नहीं, तंज कसने के लिए भी इस कहावत का इस्तेमाल किया गया. कहावत लोकप्रिय है, कहावत ऐसी है कि आम बोलचाल में कहीं न कहीं जुबां से निकल ही जाती है लेकिन इस कहावत की कहानी का सच क्या है ये आज आपको दिखाएगा एबीपी न्यूज. ये रिपोर्ट आज हम आपको मध्यप्रदेश के धार में तनाव के मद्देनजर दिखा रहे हैं.
भोपाल से करीब ढ़ाई सौ किलोमीटर दूर धार की नगरी राजा भोज की नगरी कही जाती है. 11 वीं सदी में ये शहर मालवा की राजधानी रह चुका है और जिस राजा भोज ने इस नगरी को बसाया उस राजा की तारीफ करते आज आम लोग तो क्या, इतिहासकार क्या, यहां के गृह मंत्री तक नहीं थकते. गृह मंत्री बाबूलाल गौर ने तो अपने बंगले में आज भी राजा भोज की एक मूर्ति लगवा रखी है और राजा भोज का जिक्र छेड़ते ही वो उनके गुण गाने लगते हैं. लेकिन जैसे ही बाबूलाल गौर से राजा भोज और गंगू तेली की कहावत के बारे में पूछा गया तो वो कन्नी काट गए.
राजा भोज के प्रशंसकों की देश-विदेश में कमी नहीं. बहुमुखी प्रतिभा के धनी राजा भोज शस्त्रों के ही नहीं बल्कि शास्त्रों के भी ज्ञाता थे. उन्होंने वास्तुशास्त्र, व्याकरण, आयुर्वेद और धर्म पर कई किताबें और ग्रंथ लिखे जिसका ब्यौरा इतिहास में मिलता है.
ऐसा बताते हैं कि मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल को एक जमाने में भोजपाल कहा जाता था और बाद में इसका ज गायब होकर इसका नाम भोपाल पड़ गया. वीआईपी रोड से भोपाल शहर में एंट्री करते ही राजा भोज की ये विशाल मूर्ति आपका स्वागत करती है.

11 वीं सदी में अपने 40 साल के शासन के दौरान राजा भोज ने कई मंदिरों और इमारतों का निर्माण करवाया उसी में से एक है भोजशाला. कहा जाता है कि राजा भोज सरस्वती के उपासक थे और उन्होंने भोजशाला में सरस्वती की एक प्रतिमा भी स्थापित कराई थी जो आज लंदन में मौजूद है.
भोजशाला को लेकर तनाव ये है कि बसंत पंचमी पर हिंदू दिनभर यहां सरस्वती की पूजा करना चाहते हैं और शुक्रवार पड़ने पर मुसलमान भी यहां के परिसर में बनी दरगाह में नमाज पढ़ना चाहते हैं. जब भी धार का ये तनाव सामने आता है बरबस ही राजा भोज और गंगू तेली की कहावत जुबान पर चढ़ जाती है लेकिन इसके पीछे कहानी क्या है, राजा भोज के साथ जुड़े गंगू तेली कौन हैं, इसके लिए ABP न्यूज ने की खास पड़ताल.
राजा भोज ने भोजशाला तो बनाई ही मगर वो आज भी जाने जाते हैं एक कहावत के रूप में कहां राजा भोज कहां गंगू तेली. मगर ये कहावत में गंगू तेली नहीं गांगेय तैलंग हैं. जो दक्षिण के राजा था और जिन्होंने धार नगरी पर आक्रमण किया था मगर मुंह की खानी पड़ी तो धार के लोगों ने ही हंसी उड़ाई कि कहां राजा भोज कहां गांगेय तैलंग, गंगू तेली नहीं.
धार शहर में पहाड़ी पर तेली की लाट रखी हैं. कहा जाता है कि राजा भोज पर हमला करने आए तेलंगाना के राजा इन लोहे की लाट को यहीं छोड़ गए और इसलिए इन्हें तेली की लाट कहा जाता है.
राजा भोज और गंगू तेली की कहावत को लेकर एक किवदंती ये भी है कि राजा भोज के महाराष्ट्र के पनहाला किले की दीवार बार-बार गिरती रहती थी. इससे निजात पाने के लिए कहा गया था कि अगर नवजात बच्चे और उसकी मां की बलि दे दी जाए तो दीवार गिरना बंद हो जाएगा. कहते हैं कि गंगू तेली नाम के शख्स ने ये कुर्बानी दी लेकिन इसके बाद गंगू तेली को घमंड आ गया और तब लोग उसके घमंड को देखकर कहने लगे कहां राजा भोज कहां गंगू तेली. हालांकि भोपाल के इतिहासकारों के अपने मत हैं  प्रसिद्ध व्यंग्यकार ज्ञान चतुर्वेदी कहां राजा भोज कहां गंगू तेली की कहावत की अलग से व्याख्या कते हैं. इनका कहना है कि राजशाही से लेकर आज की लोकशाही तक में ये कहावत प्रासंगिक बनी हुई है. न राजा भोज रहे और न ही गंगू तेली लेकिन ये कहावत बोलचाल में अजर अमर है. जब तक दुनिया रहेगी तब तक शायद ये कहावत भी चलती रहेगी.
(This article written by Mr. Pramod Agrawal <pka_ur@yahoo.com. blogger is not taking any responsibility of the content)


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