हमारी विलाशातापूर्ण सोच ने सबसे अधिक मानवीय मूल्यों को क्षीण किया है | कहते है की पुराने ज़माने में लोगों के पास लोगों को समझने और आगे बढकर मदद करने का नायब हुनर था | समय के साथ साथ आज के इन्सान में वो हुनर नही रहा | लोग अकांक्षाओ और विलाशातापूर्ण जीवन की प्राथमिकता और भागमभाग में बेहिसाब दौड़ रहें है | दौड़ भी इतनी तेज की मंजिल का कुछ पता नहीं और जब मंजिल का पता चलता है तो दौड़ने की ताकत ही शेष नहीं रह पाती | यहाँ पर प्रदर्शित सारे चित्र मेरे स्वयं के द्वारा लिए गये है | आज हम सब यह न केवल महसूस करते है की अपने और अपने बच्चो के पास अच्छे से अच्छी चीजे विद्यमान हो | विलाश की सारी व्यवस्थाये भरपूर हो | किन्तु किसी के भी पास गैरो की छोडिये अपनों की भी न जानकारी है न चिंता फिर एक अपरचित की कोई कैसे मदद कर सकता है |
मेरी एक बुरी आदत है की जहाँ भी जाता हूँ जमीनी हकीकत दिखाई पड़ती है तो उसे कैमरे में कैद कर लेता हूँ | और उनके दर्दो को अपने शब्दों में बयां करने की कोशिश करता हूँ | इन बच्चो की स्थिति और भविष्य का आकलन आप आसानी से कर सकते है | जिनके लिए शिक्षा और समाज का कोई भी विशेषज्ञ न पहुच पाता है और न ही कोई योजनाये इनके काम आती है | ये लड़ते रहते है तो सिर्फ और सिर्फ अपने अन्तर्द्वंद से |
इनकी समस्यायों का गहराई से मुल्यांकन किया जाय तो कही न कही समाज में बढ़ रही विलाशितापूर्ण जीवन शैली का महत्वपूर्ण हाथ है | जहाँ लोग अनावश्यक चीजो के पीछे खर्च तो कर सकते है किन्तु इन गरीबो की कोई मदद नहीं करते | यदि पैसो से मदद न भी की जाय तो इन्हें जागरूक करके इनकी मदद की जा सकती है जो न केवल इनके हित में होगा बल्कि सामाजिक अव्यवस्था में समानता लाने में व्यापक सहयोग मिलेगा |
जब भी मै इन बच्चों की तुलना कान्वेंट और इंग्लिश मीडियम स्कूल में पड़ने वाले बच्चों से करता हूँ तो स्वयं बाध्य होकर यह सोचना पड़ता है की कौन इस व्यथा के लिए जिम्मेदार है समाज, सरकार या फिर हमारा सिस्टम | सोचिये क्योकि तस्वीरें कभी झूठ नहीं बोलती | न ज्यादे तो कम से कम इनके लिये इतना जरुर करिये की इन्हें जागरूक करिये |
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