किसी भी व्यवसाय के सबसे महत्वपूर्ण
घटकों में से एक महत्वपूर्ण स्थान “मध्यस्थों” का होता है जो की उस कम्पनी के
उत्पाद को जन मानस के मध्य पहुँचाते है प्रतिफल के रूप में पारिश्रमिक अर्जित
करतें है | पर यह सामान्य व्यवस्था जीवन बीमा के क्षेत्र में इतनी आसानी से लागू
नहीं होता है | क्योंकि बीमा मध्यस्थों के लिये यह अत्यंत आवश्यक है की बीमा के
समस्त पहलुओं के बारे में अच्छी तरह समझ रखते हो साथ ही साथ उचित प्रकटीकरण का भी
गुण उनमे विद्यमान हो | कई तरह के सहयोग की आवश्यकता ग्राहकों को बीमा मध्यस्थों
से बीमा उत्पाद बेचने के पश्चात करनी पड़ती है, जैसे की दावा में सहयोग करना,
पॉलिसी सेवा सम्बंधित कार्यो में सहयोग करना, समय - समय पर बीमा के बारे में नवीनतम
जानकारी से पूर्ण रहना | यदि देखा जाय तो कम्पनी के प्रथम जोखिम अंकन का कार्य वो
स्वयं करते है साथ ही साथ आवश्यकता आधारित विक्रय में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा
करते है | यानि की किसी भी बीमा कम्पनी की नीव यदि यह कहा जाय की बीमा मध्यस्थो पर
टिकी है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी | जीवन बीमा के निजीकरण के पश्चात बीमा
मध्यस्थों ने अनेकों परिवर्तन देखे है कुछ उनके हित में रहें है और कुछ उनके हित
में प्रत्यक्ष तौर पर नहीं रहें है | निजीकरण के एक दशक से भी अधिक का समय व्यतीत
हो जाने के पश्चात् भी बीमा मध्यस्थ अपनी कोई स्थाई पहचान नहीं बना पाये है और
परिवर्तन के मार्ग से अभी भी गुजर रहें है | इस पूरी व्यवस्था के लिए जितनी
जिम्मेदारी बीमा कम्पनियों, बीमा नियामक की रही है उससे कहीं अधिक बीमा मध्यस्थ
स्वयं रहें है | बीमा मध्यस्थो के बारे में समझने से पूर्व यह अति आवश्यक है की
विगत वर्षो में उनके द्वारा किये गए व्यवसाय में हिस्सेदारी को समझा जाय |
चित्र - 1
Source
: IRDAI Hand Book 2013-14
बीमा मध्यस्थ और उनका योगदान : व्यावहारिक रूप से देखा जाय तो
बीमा उत्पाद के विक्रय में सहयोग करने वाले है 1. अभिकर्ता 2. कार्पोरेट अभिकर्ता 3. ब्रोकर्स 4. प्रत्यक्ष बिक्री
5. सूक्ष्म बीमा अभिकर्ता 6. सीएससी 7. वेब एग्रीगेटर और नयी विचारधारा के रूप में 8. बीमा विपणन फर्म है | इन सब में यदि देखा जाय तो अभिकर्ता
द्वारा विक्रय परम्परागत विक्रय के रूप में माना जा सकता है जिनकी संख्या जीवन
बीमा के क्षेत्र में 31 जनवरी 2016 तक 20.18 लाख है | भारतीय जीवन बीमा निगम की
नीव ही बीमा अभिकर्ताओं पर टिकी हुई है जिनके पास में 10.69 लाख अभिकर्ता 31 जनवरी 2016 तक कार्यरत है | हालाँकि वर्तमान प्रतियोगी बाजार में भारतीय
जीवन बीमा निगम ने अपने को नये रूप में प्रस्तुत किया है और विक्रय के अन्य
माध्यमों से भी पॉलिसी का विक्रय कर रही है जिनमे सीधी बिक्री भी शामिल है | निजी
क्षेत्र के कुल 23 जीवन बीमा कम्पनियों के पास मात्र 9.40 लाख बीमा अभिकर्ता 31 जनवरी 2016 तक है | यानी की औसतन 00.42 लाख
जीवन बीमा अभिकर्ता प्रति निजी बीमा कम्पनी के साथ कार्यरत है | अभिकर्ता के अतिरिक्त
विक्रय के माध्यम नयें नियमों और कानूनों के अन्तर्गत विद्यमान है | इन सब में
सबसे नवीनतम विक्रय के मध्यस्थ का माध्यम है बीमा विपणन फर्म जिन्हें अभी अपनी
उपयोगिता बीमा क्षेत्र के लिये महत्वपूर्ण है को प्रमाणित करना बाकी है | यदि विगत
के वर्षो के मध्यस्थों द्वारा किये गये कार्य को देखे तो स्पष्टतः चित्र-2 में एक बात निकल कर सामने आ रही है की सीधी बिक्री की
हिस्सेदारी दिन प्रतिदिन बढ़ती चली जा रही है | जीवन बीमा के उत्पाद विक्रय में
मध्यस्थों की भूमिका अत्यंत ही महत्वपूर्ण है | मध्यस्थ चाहे जो भी हो सराहनीय
कार्य इस लिये है की देश में कही न कही बीमा के विस्तार में सहायक है | यहाँ नवीनतम
उपलब्ध (वित्तीय वर्ष 2014-15) के जीवन बीमा
व्यवसाय चैनल वाइज देखना अनिवार्य है | सीधी बिक्री में वृद्धि होने का प्रमुख
कारण लोगों में जागरूकता और इन्टरनेट की पहुच में वृद्धि को माना जा सकता है |
चित्र - 2
Source
: IRDAI Annual Report F.Y. 2014-15
बीमा मध्यस्थों की समस्यायें : बीमा मध्यस्थों की अनेकों समस्याएं है जिनकी वजह से वो अपना
त्वरित योगदान जीवन बीमा के क्षेत्र में नहीं कर पाये है | अनेको मूलभूत परिवर्तन
किये गये परन्तु उन सब में बीमा मध्यस्थों की सहूलियत को ध्यान में नहीं रखा गया
नतीजन अनेको बीमा मध्यस्थ इस व्यवसाय से दूरी बना लिये | आकड़े कम्प्यूटर में अच्छे
लगते है और नीति और नियम किताबों में | जो नियम व्यवहारिक न हो वह लोगों को अपने
साथ लम्बी अवधि तक जोड़ें नहीं रख सकता | यह सत्य है की जीवन बीमा के विक्रय का
कार्य अत्यंत ही जटिल है और शायद यही वजह थी की बीमा बिक्री करने वाले मध्यस्थों
को आकर्षक कमीशन राशि का भुगतान किया जाता था परन्तु विगत वर्षो के कुछ उत्पाद
परिवर्तन के नियमों ने बीमा मध्यस्थों की पारिश्रमिक को कम कर दिया नतीजन अनेकों
मध्यस्थों ने इस व्यवसाय से पलायन कर लिया | बेरोजगारी की बीमारी से ग्रसित इस देश
में मध्यस्थों के रूप में अनेकों लोगों को न केवल बीमा व्यवसाय में रोजगार प्राप्त
हो सकता है बल्कि बीमा का प्रचार प्रसार भी तेजी से हो सकता है | रही सही कसार
सेवाकर ने पूरी कर दी न केवल बीमा अभिकर्ताओं को सेवाकर उनके द्वारा अर्जित आय पर
देना पड़ता है बल्कि पॉलिसी धारक को प्रीमियम के साथ सेवाकर देना पड़ता है | सबसे
आश्चर्यचकित कर देने वाला विषय यह है कि आयकर की धारा 80 C के अन्तर्गत प्राप्त होने वाली निवेश में आयकर से छुट के उपलब्ध
समस्त निवेशो में एकलौता जीवन बीमा क्षेत्र ही है जिसपर सेवाकर लागू होता है | इन
सबके आलावा बीमा मध्यस्थो के रूप में कार्य करने की एक जटिल प्रक्रिया है जिसकी
पूर्ति सभी के द्वारा संभव नहीं है एवं उसके पश्चात् भविष्य की सुनिश्चितता नहीं
है | समस्त कार्य वर्षों में एक ही तरह का कार्य करना है - बीमा विक्रय | नये और
पुराने बीमा मध्यस्थों में कोई भेद नहीं है | जमीनी सुविधा जो एक नौकरी पेशा आदमी
को प्राप्त होती है जैसे ऋण, ग्रेच्युटी, पेंशन, रिटायर्मेंट, कार्य प्रोमोशन आदि
बीमा मध्यस्थों को प्राप्त नहीं है | बीमा मध्यस्थों को व्यक्तिगत अभिकर्ता बनने
के माध्यम को छोड़ कर अन्य बीमा विक्रय के माध्यम के रूप में कार्य करने के लिए भारी
पूँजी की आवश्यकता है जो सबके बस की बात नहीं है | जीवन बीमा उत्पाद में नयापन न
होना भी बीमा अभिकर्ताओं की रूचि और विक्रय में प्रभाव डालता है | बीमा मध्यस्थों
से सम्बंधित नियम कानून थोड़ा जटिल है | जो बीमा मध्यस्थ कार्य कर रहें है उनमे
स्थायित्व नहीं है | इन सब समस्यायों के होते हुये भी एक बहुत ही अच्छी बात यह है
की आज भी बीमा मध्यस्थों द्वारा ही बीमा के उत्पाद का विक्रय किया जा रहा है और समस्त
जीवन बीमा कम्पनी की नीव इन पर विद्यमान है | बीमा मध्यस्थों की आवश्यकता के लिये भारतीय
जीवन बीमा बाजार के स्वरुप को समझना अति आवश्यक है | नवीनतम उपलब्ध डेटा का विवरण
निम्न है |
चित्र - 3
Source
: IRDAI Annual Report F.Y. 2014-15
निष्कर्षात्मक टिप्पड़ी : कोई भी व्यवस्था यदि चल रही है तो उसे अच्छा माना जा सकता है
परन्तु उस व्यवस्था में छोटे-छोटे सुधार कर
और प्रभावी बना देना अत्यंत आसान है न की व्यवस्था को परिवर्तित कर देना | बीमा
मध्यस्थों की आवश्यकता और उनकी समस्यायों के निवारण के लिये यह अत्यंत आवश्यक है
की भारतीय व्यावसायिक परिवेश में इनके बारे में हर बड़े छोटे पहलुओं के बारे में गहन
विचार किया जाय और इनमे सुधार किया जाय | नियमों और कानूनों को और व्यावहारिक
बनाया जाय | बीमा मध्यस्थों के पेशे को और आकर्षक बनाया जाय और बीमा उत्पाद में
नवीनता लायी जाय | बीमा व्यवसाय को तुरन्त सेवाकर मुक्त किया जाय जिससे पॉलिसी
होल्डर के साथ साथ बीमा मध्यस्थों की रूचि इसमें बनी रह सकें | बीमा मध्यस्थ के
उपलब्ध समस्त माध्यमों में व्यक्तिगत अभिकर्ता माध्यम सबसे भरोसे योग्य माना जा
सकता है जिनमे कार्य करने के लिये कम पूँजी की आवश्यकता होती है और कार्य करने का
त्वरित मौका मिल जाता है | भारतीय जीवन बीमा निगम ने अपने कार्यो से यह प्रमाणित
भी किया है की परम्परागत जीवन बीमा विक्रय प्रतिनिधि अत्यंत महत्वपूर्ण है और इनके
बारे में अलग से सोचने की जरुरत है | किसी देश का आर्थिक विकास तभी हो सकता है जब
वित्तीय सेवाओं का न केवल प्रचार प्रसार हो बल्कि लोगों की हिस्सेदारी हो | जीवन
बीमा भी अपने आप में बेमिसाल है जो न केवल वित्तीय संकटों की समस्यायों को दूर करता
है बल्कि स्थिर धन को देश के विकास में लगाता है | और यह तभी संभव हो पाता है जबकि
बीमा का विक्रय भारत देश के प्रत्येक नागरिकों को किया जाय और यह तभी सम्भव होगा
जब जीवन बीमा मध्यस्थों को आधिनुक आवश्यकता और भारतीय बीमा परिवेश के अनुरूप तैयार
किया जाय | बीमा मध्यस्थ किसी भी बीमा कम्पनी की सफलता के आधारभूत स्तम्भ है |
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubts, please let me know