जीवन बीमा शिकायत : जीवन बीमा व्यवसाय में ग्राहक को सर्वोपरी माना गया है और समस्त नीति और निर्देशन ग्राहकों के हितों को ध्यान में रखकर लिये जाते है | प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बीमा कम्पनिया, बीमा मध्यस्थ, और भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण का सयुंक्त प्रयास रहता है की एक भी ग्राहक का हित प्रभावित न हो | इसके लिये समय – समय पर बीमा कम्पनिया जागरूकता अभियान चलाकर लोगों में बीमा सम्बन्धी जानकारी को प्रदान करती रहती है जिससे बीमा सम्बन्धी किसी भी शिकायत को पूर्व में ही रोका जा सकें | इसके अतिरिक्त भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण भारतीय व्यावसायिक परिवेश को ध्यान में रखते हुए आम जनता को जागरूक करता रहता है साथ ही किसी भी शिकायत के सम्बन्ध में उचित कार्यवाही का भी अधिकार, पूर्व निर्धारित माध्यमो के द्वारा प्रदान करता है | समस्त बीमा कम्पनियों को भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण के समस्त नीति और निर्देशन को कानूनन मानना अनिवार्य है | इसी विषय पर यदि शिकायतों के बारें में विवेचना की जाय तो ज्ञात होता है की किसी भी शिकायत की वजह में जितना योगदान बीमाकर्ता, बीमा मध्यस्थ का होता है उससे कही अधिक लापरवाही ग्राहकों की होती है | जीवन बीमा ग्राहको का एक बड़ा वर्ग बीमा लेते समय तटस्थ रूप में समस्त पहलुओं को नहीं समझना चाहता और न ही अपनी आवश्यकता के अनुरूप बीमा लेते समय आकलन करता है और कागजी कार्यवाही तक सीमित रहकर बीमा में निवेश करता है नतीजन जब किसी सेवा या अपेक्षा में बीमा कम्पनी खरी नहीं उतरती है तो दोष बीमा कम्पनी या फिर बीमा मध्यस्थ का मान कर ग्राहक शिकायती कार्यवाही प्रारम्भ करता है | हालाँकि यह शत प्रतिशत सत्य नहीं है कुछ ग्राहक ऐसे भी है जो जागरूक होकर बीमा पॉलिसी लेते है | यहाँ पूर्व के तीन वित्तीय वर्षो में प्राप्त समस्त बीमा सम्बन्धी शिकायतों का वर्गीकरण समझना अनिवार्य है जो की चित्र संख्या -1 में प्रदर्शित है |
चित्र संख्या -1

चित्र स्रोत - http://www.policyholder.gov.in/

यदि उपरोक्त विवरण का मुल्यांकन करें तो ज्ञात होता है की सबसे अधिक बीमा सम्बन्धी शिकायत पिछले तीन वर्षो में अनुचित व्यावसायिक कार्य की वजह से है दुसरे स्थान पर बीमा सेवा सम्बन्धी शिकायतें है, तीसरें क्रम में दावा सम्बन्धी शिकायतें चौथे स्थान पर प्रस्ताव पत्र सम्बन्धी पाचवें स्थान पर अन्य बीमा सम्बन्धी शिकायतें एवं सबसे कम शिकायत छठे क्रम में यूलिप से सम्बंधित है | यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है की कभी यूलिप सम्बन्धी शिकायतों का अम्बार सा होता था और क्रम में प्रथम होती थी | निसंदेह यहाँ भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण की तारीफ करनी होगी जिसने अपने नियम निर्देशों में आवश्यक सुधार करके यूलिप सम्बंधित समस्याओं का लगभग समापन कर दिया है और आज लोगो में बीमा सम्बन्धी किसी अन्य उत्पाद की अपेक्षा यूलिप उत्पाद के बारें में ग्राहकों को अधिक जानकारी ज्ञात है |

बीमा सम्बन्धी शिकायतों के कारण : जीवन बीमा के निजीकरण के पश्चात् बीमा क्षेत्र ने अलग - अलग तरह की शिकायतों का सामना किया है और वर्तमान में भी कर रहा है | इसे समाप्त तो नहीं किया जा सकता परन्तु व्यापक स्तर पर कमी लायी जा सकती है और कमी लाने के लिए यह अत्यंत आवश्यक है की ग्राहकों में जागरूकता लायी जाए | ग्राहकों का बीमा के बारे में जानकारी का आभाव होना, बीमा मध्यस्थो पर नव-व्यावसायिक लक्ष्य प्राप्ति का दबाव होना, बीमा मध्यस्थो में किसी एक पॉलिसी का विक्रय इस लिए करना की उसमे पारिश्रमिक आय अधिक है, आवश्यकता आधारित विक्रय न करना, आम जनता द्वारा बीमा को मृत्यु के पश्चात् प्राप्त होने वाला धन माना जाना आदि मूलभूत समस्याएं है जो बीमा कम्पनी के उत्पाद और ग्राहकों की अपेक्षा में अंतर पैदा कर देती है जिसकी पूर्ति न होने पर ग्राहक शिकायत का रास्ता अपनाता है और न्याय की उम्मीद करता है | कई बार यह भी देखने में आता है की पॉलिसी धारक बीमा सम्बन्धी सेवा जिसे प्राप्त करने का उसका अधिकार है वह भी नहीं प्राप्त करता और वह शिकायत के जरिये आवश्यक सेवा प्राप्त करना चाहता है | समस्त तरह की शिकायतों का यदि बारीकी से अध्ययन किया जाय तो कुल शिकायतों में से एक बड़ा हिस्सा शिकायतों का सिर्फ इसलिए है की बीमा उत्पाद को बीमा विक्रय प्रतिनिधि, ग्राहकों को पारदर्शिता के साथ उत्पाद के लाभो को स्पष्ट नहीं कर पाते है | नतीजन अनुचित व्यावसायिक विक्रय का जन्म होता है जो आगे चलकर शिकायतों का रूप ले लेता है | यहाँ पुनः एक बात पर नये सिरे से सोचने की जरूरत आज के बीमा व्यावसायिक परिवेश में है की “आवश्यकता आधारित विक्रय” को जन मानस में प्रचारित किया जाय जिससे शिकायतों में कमी लायी जा सकती है |

बीमा सम्बन्धी शिकायत प्रक्रिया ?  भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण ने ग्राहकों के हितो को संरक्षित करने के लिए शिकायतों के निस्तारण हेतु अलग – अलग फ़ोरम बनाये है जिनकी जिम्मेदारी है की तय समय सीमा में उस शिकायत का निवारण करें | प्रत्येक जीवन बीमा शाखा कार्यालय पर शिकायत निवारण अधिकारी होते है वहां पर शिकायत लिखित दर्ज करायी जा सकती है, और ऐसी समस्त शिकायतों का निस्तारण 15 दिनों में करना अनिवार्य होता है और यदि ऐसा नहीं होता या प्रदान किया गया समाधान संतोषजनक नहीं है तो भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण के शिकायत निवारण सेल के टोल फ्री नम्बर 155255 (या) 1800 4254 732  या complaints@irda.gov.in पर शिकायत भेजी जा सकती है या www.igms.irda.gov.in वेबसाईट पर अपनी शिकायत आन-लाइन दर्ज करायी जा सकती है और आन-लाइन शिकायत स्थिति से अवगत हुआ जा सकता है इसके अलावा सीधे तौर पर प्राधिकरण को पत्र प्रेषित किया जा सकता है या फिर शिकायत फैक्स के माध्यम से भी भेजा जा सकता है | शिकायत पर उचित कार्यवाही प्राधिकरण तय सिमा में अवश्य सुनिश्चित करता है | समस्त बीमा कम्पनीयों को शिकायत प्राप्त होने पर तीन दिनों के अंदर शिकायत प्राप्ति की सूचना शिकायतकर्ता को देनी होगी एवं 15 दिनों के अंदर उक्त शिकायत का समाधान भी | प्रत्येक बीमा कम्पनी को बोर्ड सदस्यों से संस्तुत शिकायत निस्तारण पॉलिसी बनानी और व्यवहार में लानी अनिवार्य है और उसका निस्तारण भी करना अनिवार्य है | यदि उक्त माध्यमों से भी शिकायतों का निस्तारण नहीं होता है या प्राप्त निस्तारण असंतोषजनक है तो ग्राहक बीमा लोकपाल या फिर सिविल कोर्ट का सहारा ले सकता है | शिकायत करने की प्रक्रिया को चित्र संख्या - 2 के माध्यम से समझा जा सकता है |
चित्र संख्या -2

चित्र स्रोत - http://www.policyholder.gov.in/

निष्कर्ष : प्रभावशाली ढांचागत परिवर्तन करने के बावजूद दुनिया के कई ऐसे व्यावसायिक क्षेत्र है जहाँ से शिकायतों को पूर्ण रूप से समाप्त आज तक नहीं किया जा सका है परन्तु संतोष का विषय है की शिकायतों की संख्या न के बराबर है | जीवन बीमा क्षेत्र से भी शिकायतों का समापन तो नहीं किया जा सकता बल्कि व्यापक स्तर पर कमी अवश्य लायी जा सकती है इसके लिये यह अत्यंत आवश्यक है की वर्तमान में चल रहे प्रयासों के अलावा जीवन बीमा सम्बन्धी जानकारी को नई पीढ़ी के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाय जिससे एक समय पश्चात् बीमा के सम्बन्ध में देश के कोने कोने में लोग शिक्षित हो और बीमा व्यवसाय में शिकायत की संख्या न के बराबर रह पायें | साथ ही आज के व्यावसायिक परिवेश में यह अत्यंत आवश्यक है की आवश्यकता आधारित विक्रय को प्राथमिकता दी जाय | कोई भी प्रस्ताव पत्र बीमा कम्पनी के पास आये तो उसके बीमांकन के पहले यह टेलेफोन माध्यम से अवश्य पुष्ट किया जाय की आवश्यकता आधारित विक्रय हुआ है की नहीं | हालाँकि कुछ कम्पनियां ऐसा कर रही है पर शिकायतों में कमी लाने के लिए प्राधिकरण द्वारा निर्देशित हो की समस्त बीमा कम्पनियां अनिवार्य रूप से ऐसा करें | आवश्यकता आधारित विक्रय की पुष्टि करने के लिए विशेषज्ञों की टीम हो, जिसमे भारतीय बीमा संस्थान से प्राप्त विशेष योग्यता वाले व्यक्ति टीम में अनिवार्य रूप से हो | 

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