“परहित सरिस धर्म नहिं भाई |
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई ||”
उपरोक्त चौपाई का उल्लेख हिन्दुओं के प्राचीन और सर्वमान्य ग्रन्थ श्री रामचरित मानस में तुलसीदास जी द्वारा किया गया है | जिसका भावार्थ यह है कि दूसरो के हित के लिए कार्य करना सबसे बडा धर्म है एवं दूसरो को हानि पहुँचाना सबसे बडा पाप है | सभी धर्म की समस्त परिभाषाओं और व्याख्याओं का निचोड़ है “अच्छा बनना” और “अच्छा करना” और दूसरों की भलाई करना तो निसंदेह अच्छा करना है | सभी मजहबों ने एकमत होकर जिस बात पर जोर दिया है वह है मानवता की सेवा यानी "सर्वभूत हितारेता" होना | भूखो को भोजन कराना, वस्त्रहीन को वस्त्र देना, बीमार लोगों की देखभाल करना, भटकों को सही मार्ग पर लगाना आदि धर्म का पालन करना है | क्योंकि धर्म वह शाश्वत तत्व है जो सर्व कल्याणकारी है | ईश्वर ने स्वयं यह प्रकृति ऐसी रची है कि जिसमें अनेक चेतन और जड़ जीव इसी धर्म (परहित) के पालन में लगे रहते है | यदि पूर्व के वर्षो में देखा जाय तो बड़े बड़े साहूकार, व्यवसायी, मंदिरों का निर्माण, भण्डारे के जरिये गरीबो के खाने का प्रबंध, दान देकर करते थे जिसका मूल उद्देश्य अपने समाज में गरीबों की मदद करना था | ये सब कही न कही सामाजिक दायित्यों की पूर्ति के प्रमाण की पुष्टि करतें है |

कॉर्पोरेट की सामाजिक जिम्मेदारी :- भारत देश में सबसे आसान है नियम बनाना परन्तु अत्यंत मुश्किल है उसका पालन करवाना | हम भारतीय जब तक कोई नियम कानूनन अनिवार्य  हो उसका पालन नहीं करतें है और नियमों का पालन करने से पूर्व उससे बचने का रास्ता खोजते है | यह तो सिक्के का एक पहलू है वही दूसरा पहलू यह भी है कि कुछ लोग स्वयं की प्रेरणा से  केवल नियम कानूनों का पालन करते है बल्कि एक कदम और आगे बढ़कर दूसरो की मदद करते है | हालांकि ऐसे लोगो की संख्या कम है, पर है | ऐसा  केवल लोगों के व्यवहार में है बल्कि व्यावसायिक संगठनो के साथ भी है चाहे वह निजी क्षेत्र से हो या फिर सार्वजानिक क्षेत्र से | कॉर्पोरेट की सामाजिक जिम्मेदारी भारत देश के लिये नयी नहीं है बल्कि इसका प्रमाण वर्षो पहले से देश में मौजूद है | समय – समय पर सामाजिक दायित्वों की पूर्ति की प्रक्रिया अवश्य परिवर्तित होती रही है, जिसे विभिन्न नाम से हम संबोधन कर सकते है | परन्तु जमीनी हकीकत यह भी है की समाजिक दायित्वों की पूर्ति आवश्यकता आधारित न करके, बल्कि व्यावसायिक कंपनिया नियमो की पूर्ति करने के लिए करती है | जिसमे कागजी कार्यवाही तो मजबूत होती है परन्तु जन - जन तक उसका लाभ प्राप्त नहीं होता है | जब तक “एक अच्छे निगमित नागरिक” की सोच उत्पन्न नहीं होगी कोई भी कम्पनी अपने दायित्वों की मात्र नियमो की पूर्ति तक ही सीमित  होगी | कार्पोरेट की संलग्नता सामाजिक दायित्वों के सन्दर्भ में हम चित्र संख्या - 1 में दिए गए पिरामिड से अच्छे ढंग से समझ सकते है | यह पिरामिड यह भी प्रदर्शित कर रहा है की कार्पोरेट सामाजिक दायित्वों की पूर्ति किस कुशलता के साथ कर सकतें है |

कॉर्पोरेट की सामाजिक जिम्मेदारी की बाध्यता :- 1 अप्रैल 2014 के पहले भारत में कार्पोरेट की सामाजिक दायित्वों की पूर्ति करना कानूनन अनिवार्य नहीं था | हालाँकि कुछ कम्पनियाँ खुद से आगे बढकर समाज के बड़े तबकों के गरीब लोगों को मदद कई रूपों में प्रदान करती रही | इनमे शामिल था शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और परिवार कल्याण, सामाजिक सरोकारों, बुनियादी ढांचे का विकास, और सतत आजीविका आदि | कम्पनी एक्ट 2013 के अनुसार “यदि किसी कम्पनी की कीमत 500 करोड़ या अधिक या कारोबार रुपया 1000 करोड़ या अधिक या शुद्ध लाभ 5 करोड़ या कंपनी अधिनियम 2013 और समय समय पर किये गये परिवर्तन की अनुसूची सातवीं में निर्दिष्ट के रूप में कार्पोरेट की समाजिक दायित्वों (CSR) गतिविधियों पर पिछले 3 वर्षों के औसत शुद्ध मुनाफे का कम से कम 2% खर्च करना पड़ता है |” यह अब कानूनन अनिवार्य है | यह नियम 1 अप्रैल 2014 से प्रभाव में आया है | यदि सरल शब्दों में कार्पोरेट के सामाजिक दायित्वों को समझना हो तो हम कह सकते है की “कार्पोरेट की सामाजिक दायित्व कम्पनियों के बारे में है कि कैसे वो व्यापार प्रक्रिया का प्रबंधन के साथ सकारात्मक प्रभाव सामाज के बारें में करती है |”

एक आदर्श कार्पोरेट की सामाजिक जिम्मेदारी के प्रबंधन को चित्र संख्या दो के माध्यम से समझा जा सकता है जो निसंदेह यह प्रदर्शित कर रहा है की कम्पनी में कॉर्पोरेट की सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) स्थान कहाँ होना चाहियें |

जीवन बीमा और सीएसआर :- जीवन बीमा और सामाजिक दायित्व एक ही सिक्के के दो पहलू है | साधारणतः बीमा कम्पनियाँ सीएसआर को एक अलग दृष्टिकोण से देखती है | ऐसा इसलिए है की जीवन बीमा अपने आप में एक सामाजिक सरोकार का साधन है जिसमे लोगों के आकस्मिक समय में वित्तीय संकट से रक्षा प्रदान करना है और बीमा कम्पनियाँ करती भी है | एक तरफ जहाँ जीवन बीमा के क्षेत्र में ग्राहक सेवा बहुत महत्वपूर्ण है और नियमित ग्राहक सेवा की आवश्यकता पड़ती है वही दूसरी तरफ जीवन बीमा कम्पनियाँ प्रतियोगिता में बने रहने के लिये हर संभव प्रयास करती है | कुछ जीवन बीमा कम्पनियों का मानना यह भी हो सकता है की ग्राहक सेवा अत्यधिक महत्वपूर्ण है न की सीएसआर | एक तरफ जहाँ कम्पनियाँ बड़े तबके के लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करने हेतु बिज्ञापन पर करोड़ो रूपये खर्च करती है वही उन्हें सीएसआर पर किया गया खर्च अनावश्यक प्रतीत होता है वजह सीएसआर के क्षेत्र में खर्च किये गये धनराशि से तत्काल व्यावसायिक प्रतिफल नहीं मिल पाता | जीवन बीमा कम्पनियाँ ऐसी अवधारणा इस लिए रखती है की उनमे दूरदर्शिता की कमी, परिवर्तन के पैमाने को नियंत्रित न कर पाना, सीएसआर के लिए दोयम दर्जे का रणनीतिक प्रबंधन, जोखिम / अवसर भूमिका, चयनात्मक सुनवाई, पुरानी संरचना को बनाए रखने, असमान दृष्टिकोण, गैर-भागीदारी दृष्टिकोण, नवाचार के रूप में सीएसआर देखने के लिए विफलता, कंपनी एकता और लाभ की पहचान में कमी का होना है जिससे उन्हें सीएसआर पर किया गया व्यय अनावश्यक और अनुपयोगी लगता है | हालांकि जमीनी हकीकत यह है की सीएसआर से लाभ जितना प्राप्त करने वालों को होता है उससे कही अधिक लाभ सीएसआर में खर्च करने वालों को होता है | इन सब के अलावा कटु सत्य यह भी है की सीएसआर के रूप में खर्च किये गये धनराशि से तत्काल व्यवसाय की उम्मीद करना अपने आप को धोखा देना है जबकि सीएसआर पर खर्च से परिणाम इतना सशक्त होता है की ब्राण्ड जन मानस में भरोसे का प्रतीक बन जाता है |


जीवन बीमा में सीएसआर का लाभ :- जीवन बीमा के क्षेत्र में सीएसआर को स्वयं से अपना कर तय मानको के अनुरूप खर्च करने के बजाय एक अच्छे निगमित नागरिक की धारणा से कार्य करने पर बीमा कम्पनियों को अधिक लाभ प्रदान होगा | जीवन बीमा कम्पनियों को अपनी स्थिति इस प्रतियोगी बाजार में स्थिर और मजबूत बनाने के लिए सीएसआर को प्राथमिकता देनी चाहिये | करोड़ो रूपये के विज्ञापन से बीमा कम्पनियाँ क्षणिक ध्यान लोगों का अपनी तरफ खीच सकती है जबकि सीएसआर के माध्यम से उनके ब्रांड की स्थिति अत्यधिक मजबूत होती है, कॉर्पोरेट छवि जन मानस में बढ़ने लगती है, आकर्षित और प्रेरित कर्मचारियों को बनाए रखने की क्षमता में वृद्धि होती है, बिक्री में वृद्धि के साथ साथ कंपनी की बाजार हिस्सेदारी बढ़ती है, निवेशकों और वित्तीय विश्लेषकों में भरोसे की नींव का निर्माण होता है, कर्मचारियों की वफादारी और प्रतिधारण में वृद्धि होती है, उत्पाद और सेवाओं की गुणवत्ता में वृद्धि होती है, ग्राहकों के प्रति वफादारी को बढ़ाने के लिए सकारात्मक प्रमाण दिखता है, अधिक से अधिक उत्पादकता और गुणवत्ता बीमा विक्रय प्रतिनिधियों में दिखती है, विनियामक निरीक्षण स्वतः कम हो जाते है, जरुरत पड़ने पर पूंजी बाजार में जाने पर सहयोग प्राप्त होता है और उत्पाद सुरक्षा प्राप्त होती है | प्रत्यक्ष रूप के अलावा अप्रत्यक्ष रूप से अनगिनत लाभ सीएसआर पर खर्च करने से जीवन बीमा कम्पनीयों को प्राप्त हो सकते है |


निष्कर्ष :- सीएसआर आधुनिक निगमों की दिल और आत्मा है और कॉरपोरेट गवर्नेंस के लिए एक महत्वपूर्ण मानक भी है | सीएसआर कॉर्पोरेट जवाबदेही, लाभप्रदता और पर्यावरणीय स्थिरता के लिए एक अनिवार्य तंत्र है | सीएसआर सामाजिक रूप से जिम्मेदार व्यापार का आयोजन करते हुए लोगों के अंदर और निगम के बाहर दोनों नैतिक अखंडता को बनाए रखने के क्रम में आधुनिक निगमों के लिए चमकते हुए तारे की भांति है |
कॉर्पोरेट घरानों और गैर- सरकारी संगठनों को सक्रिय रूप से परियोजनाओं के लिए पैमाने पर कार्य करने के लिए सबसे अच्छा सीएसआर प्रथाओं को लागू करने और अधिक लाभार्थियों तक पहुंचने के लिए नया करने के लिए अपने संसाधनों और इमारत सहक्रियाओं पूलिंग पर विचार करना चाहिए । एक विषय या अनुशासन के रूप में सीएसआर सामाजिक और विकास के मुद्दों के बारे में छात्रों और कॉर्पोरेट घरानों को अपने व्यापार और सामाजिक चिंताओं के बीच एक विवेकपूर्ण संतुलन की मदद करने में सीएसआर की भूमिका को जागरूक करने के बिजनेस स्कूलों में और कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में अनिवार्य बनाया जाना चाहिए | जीवन बीमा क्षेत्र के दूरगामी विकास और आम जनता में भरोसे के निर्माण के लिए समस्त जीवन बीमा कंपनियों को चाहियें की विज्ञापन में अधिक पैसे खर्च करने के बजाय स्वयं से सीएसआर निर्धारित प्रतिशत के अलावा खर्च करें जो उनके व्यावसायिक परिणामो को स्थिरता के साथ-साथ सभी स्तरों पर विकसित करेगा | यहाँ मै पुनः इस बात को दुहराना चाहूँगा कि “परहित सरिस धर्म नहीं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अधमाई” ही सच्ची विचार धारा है जिसे अपना कर सामाजिक कल्याण के साथ-साथ व्यवसाय में भी सुंदर रूप प्रदान किया जा सकता है | दूसरों का हित लाभ करने के लिए तत्पर रहें जो मर्म से भी बढ़कर है | परोपकार करने से मनुष्य को मत्कारी पुन्य लाभ अर्जित होते है | ईश्वर ने केवल मनुष्य को ही ऐसी बुद्धि प्रदान की है की वह अपना और दूसरों का दुःख संपादन कर सकता है | अतएव मानव शरीर प्राप्त कर सबका हित साधन और हित चिन्तन करना ही सबसे बड़ा धर्म है और यह समान रूपसे व्यावसायिक कंपनियों जीवन बीमा सहित सभी क्षेत्रो में लागू होता है क्योकि कम्पनियाँ व्यक्तिओं के द्वारा ही चलायी जाती है जिसका एक मात्र उद्देश्य पैसा बनाना नहीं हो सकता है | उद्देश्य पूर्ति के लिए बीमा कम्पनियों को सामाजिक दायित्वों की पूर्ति नियम कानून से ऊपर उठ कर करनी चाहिये | सरकार द्वारा सीएसआर की बाध्यता करके कही न कही देश के विकास में अविस्मरणीय पहल की गयी है | 

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