हिन्दुओं के धर्मो से अगर हम सीख ले तो
पता चलता है की प्रत्येक इन्सान को अपने कर्मो का फल अवश्य है मिलता है | एक छोटे
से उदाहरण से यह समझा जा सकता है “जब भीष्म पितामह बाणों छिद्रित शेष शैया पर
अंतिम सांसे गिन रहे थे तो श्री कृष्ण जी उनके समीप गये | श्री कृष्ण जी को समीप
आया देखकर भीष्म पितामह ने उनसे पूछा भगवन हमें किस कर्मो की सजा मिल रही है |
भगवान् मंद मंद मुस्कुरायें और बोलो आप तो सर्वज्ञाता है आप स्वयं जान सकतें है की
किस कर्म का फल प्राप्त हो रहा है | भीष्म पितामह बोलो प्रभु मेरी जानकारी में तो
मैंने कोई भी ऐसा अपराध नहीं किया जिससे
इतनी पीड़ा झेलनी पड़े | श्री कृष्ण जी मंद मंद मुस्कुरायें बोले पितामह आप पूर्व के
एक जन्म में राजा थे और युद्ध लड़ने को जा रहे थे उस समय एक सांप वहा रास्तें में
पड़ा था और आपके सैनिको ने आप से पूछा, महराज इस सांप का क्या करें तो आपने उन्हें
निर्देश दिया था की उस सांप को रास्ते से कही दूसरी जगह फेक दो | आपके सैनिको ने
वही किया पर जब उन्होंने सांप को फेका तो वह कांटो की झाड़ियों में गिरा और वह जैसे
जैसे बचने की कोशिश करता वो कांटे उसके शारीर में चुभते जाते और अत्यंत पीड़ा झेलने
के बाद उस सांप की मृत्यु हो गयी | उस जन्म के कर्म का परिणाम आपको अभी तक नहीं
मिला क्योकि आपके कर्म अत्यंत अच्छे थे परन्तु यह आपका अंतिम जन्म है इस लियें न
चाहते हुये भी यह कष्ट आपको मुझे देना पड़ रहा है |” अर्थात प्रत्येक इंसान को अपने
कर्मो का प्रतिफल अवश्य ही भोगना पड़ता है | अतः हे मानव कर्म ऐसा करों की उससे
किसी का कोई नुकशान और तकलीफ न हो | कर्मो से प्रदर्शित हो तो सिर्फ और सिर्फ हरि
का नाम क्योंकि संसार में मात्र एक ही सत्य है और वह है स्वयं श्री कृष्ण
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