अभी हाल में गुर्जर समुदाय के लोगों ने
आरक्षण के लिये अपनी मांग के लिये सरकार को मजबूर करने की कोशिश की और सामान्य जन
मानस के नियमित जीवन चक्र को भी उन्होंने अपने हड़ताल और ट्रेनों को रोकने के प्रयास
से प्रभावित किया | कल गुजरात राज्य में पटेल समुदाय के लोगों ने भी आरक्षण के
लिये बड़े पैमाने पर रैली की जिसमे लाखों लोगो ने भागीदारी दिखाई | इन रैलियों और
आंदोलनों के अलावा छोटे-छोटे स्तर पर कई समूह और समुदाय एक्टिव है, जिनका मुख्य
उद्देश्य या तो आरक्षण को समाप्त करना है या फिर आरक्षण में अपनी जाति को शामिल
करने के लिये | भारत में ऐसे छोटे समुदाय/समूह जो आरक्षण के लिये लड़ रहें है इस
लिये नहीं आ पाते की उन्हें मीडिया कवरेज बड़े पैमाने पर नहीं मिल पाती | पहले
गुर्जर समुदाय, फिर पटेल समुदाय और इन सब से प्रेरित होकर न जाने कितने समुदाय
एकजूट हो रहें होंगे देश की व्यवस्था को चुनौति देने के लिये | ये जो आरक्षण के
मांग की आग राजस्थान से आरंभ हुई है अब गुजरात तक पहुँच चुकी है और न जाने कितने
प्रदेशो में अभी इस तरह की मांग उठ सकती है | इन सब घटनाओं को देखकर एक बात जेहन
में आती है की क्या अब सही समय आ गया है जातिगत आरक्षण को समाप्त करके आय के
अनुरूप आरक्षण वित्तीय रूप में देने का | किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले
आरक्षण की वर्तमान लागू प्रतिशत को समझना अनिवार्य है |
आरक्षण श्रेणी
(भारत सरकार के अनुरूप)
|
आरक्षण प्रतिशत
(भारत सरकार के अनुरूप)
|
अनुसूची
जातियां
|
15.0%
|
अनुसूचित
जनजातियां
|
7.5%
|
अन्य पिछड़ा
वर्ग
|
27%
|
कुल संवैधानिक
आरक्षण का प्रतिशत
|
49.5%
|
सामान्य वर्ग
(अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग सहित सभी के लिए)
|
50.5%
|
वर्तमान में प्रचलित आरक्षण नीति को देखकर
हम सब सामान्य वर्ग से सम्बंधित लोगों की मानसिक पीड़ा को समझ सकतें है | जहाँ इस
नीति में कुछ विशेष वर्ग को दोहरा लाभ प्राप्त हो रहा है (दोहरा लाभ यानी की
आरक्षण प्रतिशत में लाभ और सामान्य वर्ग की श्रेणी में भी लाभ) वही सामान्य वर्ग
को दोहरे तरीके से उनके हितो को प्रभावित कर रहा है | परिणाम अच्छा प्रतिशत और
मार्क्स प्रतियोगी परीक्षाओं में लाने के बावजूद उन्हें अपनी प्रतिभा दिखने का
मौका नहीं मिलता है | यहाँ यह कहना आवश्यक नहीं होगा की भारतीय सविंधान में कितने प्रतिशत
तक आरक्षण देने और कितने वर्षो तक देने की बात कही गयी थी | वह समय सीमा व्यतीत हो
जाने के बावजूद आज भी आरक्षण लागू है | वजह चाहे सरकार की नाकामी रही हो या फिर
राजनेतिक स्वार्थ |
आज आरक्षण ने एक भयानक रूप ले लिया है और
क्षेत्रीय राजनैतिक पार्टिया वोट बैंक की राजनीति के लिये इसे बढावा दे रही है जो
कही से भी देश हित में नहीं है | समस्त वर्तमान में चल रही आरक्षण व्यवस्था को
देखते हुए यह कहा जा सकता है की आरक्षण जाति आधारित व्यवस्था को समाप्त करके आय के
अनुरूप किया जाय जिससे समस्त वर्ग को सामान मौका मिल सके अपनी प्रतिभा को दिखाने
के लिये | यदि कोई वास्तव में गरीब है तो उसे वित्तीय रूप से सरकार राजकोष से सहायता
प्रदान कर, उन्हें सशक्त बनाने चाहिए | चाहे वह किसी भी वर्ग या समुदाय का हो |
यदि आरक्षण की वर्तमान व्यवस्था को नहीं समाप्त किया गया तो आने वाले दिनों में न
जाने कितने और समुदाय निकलकर बहार आयेंगे जो कही न कही देश की प्रगति में बाधक
सिद्ध होगा |
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