जब रक्षा करने के लिये वादा करने वाला नियामक भी रक्षा न कर पाये तो आप क्या कहेगें ? आज जिस तेज गति से देश की प्रगति हो रही है और इस प्रगति में कहीं न कहीं आम आदमी जुड़ रहा है ऐसे में सरकार और नियामक को अपने दायित्वों का निर्वहन और मजबूती के साथ करना होगा अगर ऐसा नहीं कर पातें तो निसंदेह आम जनता का विश्वास देश के नियामक और सरकार से उठ जायेगा और वो चाह कर भी देश के प्रगति से नहीं जुड़ पायेगा | जी हां हम बात कर रहें है कल शेयर बाजार में हुई भारी गिरावट की |

कल पूरे कारोबारी सत्र के दौरान सेंसेक्स और निफ्टी में करीब छह फीसदी की गिरावट दर्ज की गयी | सेंसेक्स में यह सात सालों में सबसे बड़ी और अब तक की  चौथी सबसे बड़ी गिरावट है | एक दिन में शेयर मार्केट निवेशकों को करीब सात लाख करोड़ रुपये से ज्यादा नुकसान हुआ है | बीएसइ के सभी सेक्टरों में जम कर बिकवाली रही. यही नहीं, डॉलर के मुकाबल रुपया भी फिसला है | निवेशकों का डगमगाता भरोसा यह प्रदर्शित कर रहा है की नियामक चाहे जितने बड़े बड़े वादे करें पर आम जनता तभी विश्वास कर पायेगी जब हकीकत में उसे कुछ देखने को मिलेगा | सात लाख से भी अधिक का नुकसान अपने आप में बहुत दुखद है और इस तरह के नुकसान में आम आदमी ही पिसता है | पिछले सात सालों में दस सबसे बड़ी गिरावट का विवरण निम्नवत है जो यह प्रमाणित करता है की न सरकार और न ही नियामक अपनी जिम्मेदारियों को सही रूप में निर्वहन कर रहा है नतीजन बर्बादी हो रही है तो सिर्फ आम आदमी की |
कब
अंक
24 अगस्त, 2015
1,624.51 
21 जनवरी 2008
1,408.35

17 मार्च, 2008
951.03 
 3 मार्च, 2008
900.84 
22 जनवरी, 2008
875.41

11 फरवरी, 2008
833.98 

 18 मई, 2008
826.38 
13 मार्च, 2008
770.63 
17 दिसंबर, 2007
769.48 
31 मार्च, 2008
726.85 

सेबी को देश की आतंरिक वित्तीय व्यवस्था के उधमियों की चिंता अत्यधिक है, जबकि उनमे निवेश धन कई वर्षो से सुरक्षित रहा है, और अभी भी आम जनता का विश्वास भी उन कंपनियों में बना हुआ है | सेबी को चौबीस हजार करों की चिंता ज्यादे है जबकि एक झटके में सात लाख से अधिक का निवेशको का नुकशान सेबी के लिये मायने नहीं रखता | क्या कोई इतने बड़े नुकसान के बावजूद सेबी के खिलाफ जा सकता है की एक नियामक होने के नाते क्या मैकनिज्म बनाये की आम जनता का नुकसान न हो | एक दो नहीं कई – कई बार हम सब को इस तरह के नुकसान की सुचना मिलती है पर यहाँ नियामक आम जनता के हितों को सुरक्षित बड़े पैमाने पर करने में असफल हुआ है | जबकि स्वदेशी कंपनियों को जन बूझकर परेशान किया जा रहा है और आम जनता के हितो के सुरक्षा की बात की जा रही है |


कल की शेयर बाजार की घटना ने एक बार पुनः यह प्रमाणित कर दिया की जमीनी स्तर पर न नियामक को और न सरकार को आम आदमी की चिंता है | नियामक को तो छोटे निवेशको की चिंता है क्योकि उनके जरिये हो तो वो देश की सुर्खोयों में बने रह पाते है | भले ही छोटे निवेशको का भरोसा उस कम्पनी पर हो | विदेशी कंपनियों का स्वागत और स्वदेशी कंपनियों का गला घोटने की नीति, आने वाले समय में देश को बर्बाद कर के रख देगी | सरकार को इस मुद्दे को गंभीर रूप से लेना चाहिए और नियामक को यह निर्देश देने चाहिये की ऐसा ढाचा तैयार करें की भविष्य में इस तरह की पुर्नावृत्ति न हो और ऐसा तभी संभव हो पायेगा जब स्वदेशी कंपनियों को पूर्ण स्वतंत्रता के साथ कार्य करने की आजादी दी जाएँ और न्यायालय में स्वदेशी कंपनियों के खिलाफ चल रहे केसो को तुरंत उनके पक्ष में समाप्त किया जाएँ |

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