भारत गाँवों का देश कहा जाता है, जहाँ कुल आबादी
का मुख्य हिस्सा आज भी गाँवों में रहता है | भारत में छः लाख से भी अधिक गाँव हैं |
कुल आबादी का 68.84 प्रतिशत लोग गाँवों में रहते हैं | मात्र 31.16 प्रतिशत लोग शहरों में रहते हैं | यदि
जनसँख्या के रूप में देखा जाय तो 83.31 करोड़ लोग गाँवों में रहते हैं, जबकि 37.71 करोड़ लोग शहरों में
रहते हैं | भारत की यह जनसंख्या की स्थिति नवीनतम भारतीय जन गणना 2011 के आँकड़ों पर
आधारित है | भारत में कुल साक्षरता दर 74.04 प्रतिशत है, जिनमें पुरुष साक्षरता 82.14 प्रतिशत है, जबकि
महिला साक्षरता 65.46 प्रतिशत है | यह समस्त आँकड़े इस बात को प्रमाणित करते हैं की बीमा
क्षेत्र के लिये ग्रामीण क्षेत्र में अपार संभावनायें विद्यमान हैं | 24 जीवन बीमा
कम्पनियाँ, 11032 उनके शाखा कार्यालय, 2188500 जीवन बीमा अभिकर्ता 689 कार्पोरेट बीमा अभिकर्ता मिलकर जीवन बीमा
को आम जनता तक पहुँचाने को तटस्थ हैं | जीवन बीमा के निजीकरण के एक दशक से अधिक
समय हो जाने के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन बीमा की पहुँच आज तक मजबूत नहीं
हो पायी है | जीवन बीमा प्रवेश (Insurance Penetration) पिछले एक दशक से भी अधिक का समय व्यतीत
हो जाने के बावजूद अभी भी अपने बाल्यावस्था में ही जान पड़ता है |
ग्राफ-1
Data Source:
IRDA of India Handbook 2013-14
वित्तीय वर्ष 2000-01 को छोड़कर यदि
औसत निकाला जाय तो 13 वित्तीय वर्षों का औसत 3.29 रहा है | जो जीवन बीमा प्रवेश (Insurance
Penetration) की वास्तविकता
को बयां कर रहा है | हाल ही में माननीय प्रधानमंत्री जी की बीमा क्षेत्र की दो
योजनाओं का शुभारम्भ किया है इन योजनाओं में अत्यंत ही अल्प अवधि में 14 जून 2015 तक दस करोड़ लोग
शामिल हुए हैं | यह आँकड़े ये बयां करने के लिये पर्याप्त हैं की बीमा का विकास
प्रत्याशित रूप से इस लिए भी नहीं हो पाया क्योंकि बीमा कम्पनियाँ लाभ के लिये
बीमा उत्पाद बनाती और उसका विक्रय करती हैं न की लोगों की जमीनी आवश्यकताओं के
ध्यान में रखकर | प्राधिकरण ने समाजिक और ग्रामीण दायित्व समस्त बीमा कम्पनियों के
लिये निर्धारित करके यह सुनिश्चित करने की कोशिश की हुई है की आम लोगों को भी बीमा
का लाभ प्राप्त हो सके पर बीमा कम्पनियाँ सिर्फ प्राधिकरण निर्देशों को पूरा करने मात्र
तक ही सीमित रही हैं | वित्तीय वर्ष 2012-13 में 4.42 करोड़ और वित्तीय वर्ष 2013-14 में 4.09 करोड़ पाँलिसियाँ
बीमा कम्पनियों ने मिलकर विक्रय किया जबकि एक माह से भी कम की अवधि में
प्रधानमंत्री द्वारा आरंभ की गयी बीमा योजना में अब तक दस करोड़ लोग शामिल हो चुके हैं
|
माँग और पूर्ति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जहाँ
माँग होती है वहाँ पूर्ति भी होती है पर इन सब में एक कटु सत्य यह भी है की माँग
जहाँ पर भी विद्यमान है उसकी भुगतान करने की क्षमता क्या है यदि भुगतान करने की
क्षमता कम है और दूसरी तरफ विकल्प के रूप में अधिक भुगतान करने की क्षमता भी
विद्यमान है तो पूर्ति पहले उस जगह सुनिश्चित की जाती है जहाँ भुगतान करने की
क्षमता अधिक होती है | ठीक यही बात जीवन बीमा में भी लागू होती है ग्रामीण क्षेत्र
की प्रीमियम भुगतान करने की क्षमता कम है और दूसरी तरफ बीमा कम्पनियों को बेहतर
विकल्प के रूप में शहरी क्षेत्र के लोगों के रूप में अधिक भुगतान करने वाले लोग
विकल्प के रूप में उपलब्ध हैं, अतः बीमा कम्पनियाँ शहरी क्षेत्र में अपने बीमा
उत्पाद विक्रय को प्राथिमिकता देती हैं तथा ग्रामीण क्षेत्र में विक्रय मात्र
प्राधिकरण बाध्यता को पूरा करने के लिये कर रही हैं | यही कारण है की बीमा क्षेत्र
का समुचित विकास आज भी ग्रामीण क्षेत्र में नहीं हो पाया है | लक्ष्य निर्धारित कर
सही रूप में उसका क्रियान्वयन किया जाय तो ग्रामीण क्षेत्र में बीमा को प्रचारित
प्रसारित कर बीमा कम्पनियाँ न केवल पॉलिसी विक्रय की संख्या में इजाफा कर पायेंगी
बल्कि अपने लाभ को भी बढ़ा सकेंगी | ग्रामीण क्षेत्र में जीवन बीमा के विकास के
लिये निम्न महत्वपूर्ण कदम उठाये जा सकते हैं |
प्राधिकरण का समय-समय पर हस्तक्षेप जरुरी : जीवन बीमा क्षेत्र
के लिए ग्रामीण और समाजिक बाध्यता को छोड़ कर और कोई दिशा निर्देश जीवन बीमा कम्पनियों
को प्राधिकरण से प्राप्त नहीं है, की ग्रामीण क्षेत्र में बीमा करना अनिवार्य है |
चूकी ग्रामीण क्षेत्र की प्रीमियम अदा करने की क्षमता शहरी क्षेत्र के अपेक्षाकृत
कम है अतः बीमा कम्पनियाँ शहरी क्षेत्र को प्राथमिकता देती हैं | प्राधिकरण को
चाहिये की समस्त जीवन बीमा कम्पनियों को इसके लिये दिशा निर्देश समय-समय पर अवश्य
ही जारी करती रहें की शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ बीमा कम्पनियाँ ग्रामीण क्षेत्रों
में भी बीमा का व्यवसाय व्यापक पैमाने पर करें और यह तब संभव होगा जब प्राधिकरण
बीमा कम्पनिओं से ग्रामीण क्षेत्रों में व्यावसायिक लक्ष्य के बारें में जानकारी
प्राप्त कर उसकी विवेचना करता रहे | कहने को तो आज भी बीमा कम्पनियाँ ग्रामीण
क्षेत्र में कार्य कर रही हैं पर वह वास्तव में मात्र खाना पूर्ति साबित हुआ है |
ग्रामीण क्षेत्र में भारतीय जीवन बीमा निगम के द्वारा किया गया प्रयास सराहनीय है
और निगम ने जो लक्ष्य निर्धारित किया है की प्रत्येक व्यक्ति के पास एक जीवन बीमा
पॉलिसी अवश्य हो, का सफल क्रियान्वयन हो जाने पर बीमा का विकास तेज गति से होगा |
निजी बीमाकर्ताओं द्वारा और तेजी से और एकजुट होकर प्रयास करना अत्यंत आवश्यक है |
सस्ते जीवन बीमा उत्पाद : ग्रामीण क्षेत्र के
लोगों की आय निश्चित नहीं होती और कई लोगों की आय पूरे वर्ष न होकर कुछ महीनों तक
ही सीमित रहती है | औसतन दो डॉलर आय प्रतिदिन होती है, जो की अत्यंत ही कम
है | ग्रामीण क्षेत्र के लोगों की जरुरत और प्रीमियम अदा कर सकने की क्षमता के
अनुरूप जीवन बीमा उत्पाद बनाकर विक्रय बीमा कम्पनियों द्वारा किया जाना चाहिए |
ग्रामीण क्षेत्र के लिये बनाये जाने वाले उत्पाद में बीमाकर्ता को लाभ की सीमा
न्यूनतम तय किया जाना चाहिए जिससे अधिकतम लाभ वहाँ के लोगों को प्राप्त हो सके | हाल
ही में प्राधिकरण द्वारा ग्रामीण क्षेत्र के लिए बीमा धनराशि को बढ़ाकर दो लाख तक
कर देने से अब ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को अधिक लाभ प्राप्त होगा और बीमा कम्पनियाँ
भी बाध्य होंगी अच्छे उत्पाद लाने को | एक उत्पाद किसी एक के लिए अच्छा हो सकता है
पर वही उत्पाद किसी दूसरे के लिए अच्छा हो ये जरुरी नहीं है | बीमा कम्पनियों को
चाहिये की ग्रामीण क्षेत्रों को मिलाकर सर्वेक्षण करें जिससे उनके बारें में
विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकें और प्राप्त जानकारी के आधार पर उत्पाद का निर्माण
कर उसका विक्रय करें |
आवश्यकता आधारित विक्रय :- ग्रामीण क्षेत्रों
में आवश्यकता आधारित विक्रय ही किया जाना चाहिये क्योंकि उन लोगों की आय अत्यधिक
कठिन परिश्रम से प्राप्त होती है | और उस प्राप्त आय को बीमा में निवेश कर उनके
उद्देश्यों की पूर्ति में सहायता मिलने पर ही वो और लोगों से बीमा की अनुसंशा करेंगे
जिससे आम जनता का विश्वास बीमा में मजबूत होगा और बीमा का दूरगामी प्रचार प्रसार
भी | आवश्यकता आधारित विक्रय न करने पर बीमा से आम जनता का विश्वास क्षीण होगा जो
की बीमा के लिये घातक परिणाम प्रदान करेगा | आवश्यकता आधारित विक्रय ग्रामीण
क्षेत्र के लिए इसलिए भी आवश्यक है की क्योंकि उनमें जानकारी का व्यापक आभाव पाया
जाता है और गलत विक्रय का शिकार होने की संभावनायें वहाँ पर प्रबल रहती हैं | इन
सब से ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को बचाने के लिए आवश्यकता आधारित विक्रय ही एक
मात्र सरल एवं सशक्त साधन है |
ग्रामीण क्षेत्र में कार्यालय खोलने की
बाध्यता : बीमा क्षेत्र का निजीकरण हुए एक दशक से भी अधिक का समय हो चुका है,
परन्तु अभी भी बहुत से ऐसे जिले हैं जहाँ पर जीवन बीमा कम्पनियों के कार्यालय आज
भी मौजूद नहीं हैं | यह न केवल बीमा कम्पनियों के लिए चिंता का विषय है, बल्कि
प्राधिकरण के लिये भी है | बीमा क्षेत्र का निजीकरण होने के एक दशक से भी अधिक समय
व्यतीत हो जाने के बावजूद भी यह स्थिति अत्यंत चिंताजनक है | बीमा कम्पनियों को
कुछ प्रतिशत कार्यालय ग्रामीण क्षेत्र में खोलने की बाध्यता होनी चाहिए क्योंकि
कुल आबादी का प्रमुख हिस्सा आज भी गाँव में रह रहा है | जब जीवन बीमा कम्पनियों के
कार्यालय ग्रामीण क्षेत्र में होंगे तो वो स्वतः ही कार्य करने को प्रेरित होंगी |
जिससे ग्रामीण क्षेत्र में जीवन बीमा का प्रचार प्रसार एवं विकास होगा | ग्रामीण
क्षेत्र में जीवन बीमा कार्यालय होने पर वहाँ के लोगों को बीमा सेवा बेहतर रूप में
प्राप्त हो पायेगी |
नए वितरण तंत्र की
खोज : ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में बीमा उत्पाद विक्रय और बीमा
सम्बंधित सेवाओं के लिए जीवन बीमा कम्पनियों को नये वितरण तंत्र के बारें में
सोचना होगा | बीमा अभिकर्ता के माध्यम से बीमा सेवा प्रदान करने पर लागत अधिक
आयेगी जिसका भार बीमा उत्पाद के माध्यम से आम जनता पर ही पड़ेगा | अतः बीमा कम्पनियों
को लागत कम करने के लिये नये वितरण तंत्र पर विचार अवश्य ही करना होगा | मल्टी लेवल
विक्रय इनमें से एक हो सकता है | ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को ही प्रोत्साहित करने
के लिए उन्हें मल्टी लेवल विक्रय की अनुमति दी जाय, जिससे उन्हें कुछ पारिश्रमिक
भी प्राप्त हो सकेगा और ग्रामीण क्षेत्र में बीमा का विकास भी | ग्रामीण क्षेत्र
के लोगों को बीमा अभिकर्ता बनने के लिये अलग मापदण्ड निर्धारित किये जाने चाहिये |
ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को बीमा अभिकर्ता बनने के लिए समय – समय पर प्रोत्साहन
प्रदान किया जाना चाहिए जिससे नये लोग
सामने आयें और बीमा का विकास हो सके |
सरकार का प्रयास
: अभी हाल में जो भारत सरकार ने पहल की है बीमा को लेकर वो सच में
काबिले तारीफ है इससे न केवल अर्बन बल्कि रूरल क्षेत्र में तेजी से बीमा का प्रचार-प्रसार
हो रहा है तथा लोग आगे बढ़कर जीवन बीमा लेने आ रहे हैं | 14 मई 2015 तक 10 करोंड़ लोगों ने बीमा सुरक्षा प्राप्त किया हुआ है | सरकार को इस तरह
की योजनाए समय-समय पर जरुर लानी चाहिये | इससे आम लोगों में बीमा के प्रति विश्वास
मजबूत होता है साथ ही साथ लोग बीमा कम्पनियों से भी बीमा लेने के लिए प्रेरित होते
हैं | केंद्र सरकार के अलावा राज्य सरकारों को भी इस तरह की योजनाए लानी चाहियें |
जब प्रचार प्रसार होगा तो लोग बीमा कम्पनियों तक भी पहुँचेंगे बीमा उत्पाद बचत के
साथ-साथ जोखिम से
सुरक्षा प्राप्त करने के लिये |
समस्त बीमा कंपनियों को समान अवसर : समस्त बीमा कम्पनियों को बीमा के प्रचार प्रसार
एवं विकास खास कर ग्रामीण क्षेत्र के लिये एक समान अवसर प्रदान किया जाना चाहिये |
अभी हाल ही में भारत सरकार द्वारा जारी की गयी योजनाओं का जिम्मा सरकारी क्षेत्र
की जीवन और सामान्य बीमा कम्पनियों को दिया गया, जबकि समानता की यदि बात की जाय तो
समस्त बीमा कम्पनियों को समान अवसर प्रदान किया जाना चाहिये | यह इसलिए भी आवश्यक
है की बीमा कम्पनियों को कहीं से भी यह न लगे की भारत सरकार उनके साथ भेद-भाव कर
रही है | समानता का अवसर देने से समस्त बीमा कम्पनियों को अपनी दक्षता दिखाने का
मौका मिल पायेगा | एक स्वस्थ प्रतियोगिता का लाभ न केवल आम जनता को बल्कि सरकार को
भी प्राप्त हो सकेगा |
प्रौद्योगिकी के जरिये ग्रामीण क्षेत्र
में बीमा विक्रय : आज ग्रामीण क्षेत्र भी प्रौद्योगिकी से अछूता नहीं है और नित नयें
लोग प्रौद्योगिकी से जुड़ते चले जा रहें हैं | अतः बीमा कम्पनियों को प्रौद्योगिकी
का सहारा लेकर जीवन बीमा ग्रामीण क्षेत्र में विक्रय किया जाना चाहिए | प्रौद्योगिकी
का सहारा लेने से बीमा कम्पनियों की विक्रय लागत कम आयेगी जिसका लाभ ग्रामीण
क्षेत्र के लोगों को होगा | आज प्रौद्योगिकी से लोग तेजी से जुड़ रहें है और इनके
सहारे न केवल प्रचार प्रसार को बल मिलेगा बल्कि लोग स्वयं में प्रेरित होंगे बीमा
उत्पाद क्रय करने को | तेजी से बढ़ती इन्टरनेट प्रयोगकर्ता की संख्या इस बात का
जीवंत उदाहरण है की लोग प्रौद्योगिकी से जुड़ रहें है |
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