प्रस्तावना :- इतिहास इन प्रमाणों से भरा पड़ा है कि हम-सब ने
कई तरह की आपदाओं का सामना किया है, और अभी भी कर रहे है | आपदाएं दो तरह की होती
है, एक प्राकृतिक आपदाएं - जिनके कारण होते है, भूकंप,
बाढ़,
ज्वालामुखी, विस्फोट,
भूस्खलन,
तूफान
आदि | दूसरी तरह की आपदाएं मानव द्वारा निर्मित है - जिनके कारण है, आतंकवाद, महामारी, वनों
की कटाई, प्रदूषण, युद्ध, सड़क/ट्रेन दुर्घटना, दंगे, विषाक्त भोजन, औद्योगिक
आपदाएं/संकट, पर्यावरण प्रदूषण, स्वास्थ्य आपदाएं आदि | इन
आपदाओं में धन, जन और संपत्ति की असहनीय हानि होती है, जिसकी भरपाई कभी नहीं की जा
सकती है | इन आपदाओं से न केवल हम सब समय - समय पर चोट खा रहे है बल्कि विश्व के
कई और देश भी इन आपदाओं से पीड़ित है | 1.2 अरब आबादी (जन गणना 2011 के अनुशार) के साथ भारत दूसरी सबसे
बड़ी आबादी वाला देश है, और यहाँ सभी प्रकार के आपदाओं की एक बड़ी हिस्सेदारी विद्यमान
है । हमारे देश के लिए वास्तव में कुछ तरह की आपदाओं को रोकना अभी भी लगभग असंभव सा
है | विभिन्न सरकारी, अर्द्ध-सरकारी, निजी क्षेत्र की कंपनिया, और एन.जी.ओ., आपदा
प्रबंधन के क्षेत्र में कार्यरत है | भारत सरकार के अधीन “भारतीय राष्ट्रीय आपदा
प्रबंधन प्राधिकरण” (http://www.ndma.gov.in/) आपदा प्रबंधन के लिए कार्यरत है |
आपदाएं
|
|
प्राकृतिक
आपदाएं
|
मानव
रचित आपदाएं
|
भूकंप
बाढ़
शहरी बाढ़
भूस्खलन
चक्रवात
सुनामी
गर्म तरंगें
|
नाभिकीय
जैविक
रासायनिक
|
विश्व के प्राकृतिक आपदा जोखिम श्रेणी में भारत का क्रम 100 है एवं आपदा जोखिम 7.17 % है | हमारे देश ने कई तरह की आपदाओं
का सामना किया है, जिनमे प्रमुख है, बंगाल अकाल (1770), हिंद महासागर सूनामी (2004), महान अकाल (1876-78), गुजरात में आया भूकंप, (2001), तीसरे प्लेग महामारी (1894), कोरिंगा चक्रवात (1839), लातूर भूकंप (1993), उत्तराखंड में अचानक आयी बाढ (2013), कलकत्ता चक्रवात (1737), कश्मीर बाढ़ (2014), मुंबई तबाही (2005), भोपाल गैस त्रासदी (1984), गैसल ट्रेन आपदा (1999), इत्यादि | मरने वालों की संख्या के
आधार पर प्राकृतिक आपदाओं की सूची, (दस सबसे खराब प्राकृतिक आपदाओं) का विवरण
निम्न प्रकार है | इस विवरण से यह स्पष्ट होता है कि आपदा आने पर बड़े पैमाने पर
क्षति होती है |
श्रेणी
|
मरने
वालों की
संख्या (अनुमान)
|
घटना
|
स्थान
|
दिनांक
|
1
|
10-40 लाख
|
चीन में आई बाढ़
|
चीन
|
जुलाई-अगस्त, 1931
|
2
|
09-20 लाख
|
पीली नदी बाढ़
|
चीन
|
सितंबर-अक्टूबर, 1887
|
3
|
08.30 लाख
|
शानक्सी भूकंप
|
चीन
|
23 जनवरी 1556
|
4
|
02.42-6.55 लाख
|
तांगशान भूकंप
|
चीन
|
28 जुलाई 1976
|
5
|
05-10
लाख
|
भोला
चक्रवात
|
पूर्वी
पाकिस्तान
(अब
बांग्लादेश)
|
13
नवंबर 1970
|
6
|
03 लाख
|
भारत चक्रवात
|
भारत
|
25 नवंबर 1839
|
7
|
03 लाख
|
कलकत्ता चक्रवात
|
भारत
|
7 अक्टूबर 1737
|
8
|
2.80 लाख
|
हिंद
महासागर में आए भूकंप और सूनामी
|
भारत
|
26 दिसंबर 2004
|
9
|
2.73 लाख
|
हैयुआन भूकंप
|
चीन
|
16 दिसंबर 1920
|
10
|
2.50-3.00 लाख
|
अन्ताकिया भूकंप
|
बीजान्टिन
साम्राज्य
(अब तुर्की)
|
मई 526
|
बहुत सारी आपदाएं देश में घटित होती रहती है, इन आपदाओं के पीछे का
मुख्य कारण प्राकृतिक व्यवहार और मानवीय कृत्य दोनों शामिल है | ये आपदाएं कुछ दिनो
तक तो देश के मुख्य समाचार में बनी रहती है, और लोकलुभावन घोषणाओं के पश्चात् जमीनी
समस्यायों से रूबरू उन लोगों को होना पड़ता है, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर
इससे प्रभावित हुए रहते है | हमारे देश का पॉलिसी संचालन इतना अव्यवस्थित है, कि इस
तरह की आपदाओं में मिलने वाले लाभ कई वर्षो पश्चात् मिलता है या तो मिलता ही नहीं
है | सारे लाभ सरकारी फ़ाइल् तक ही सिमट कर रह जाते है, जबकि आपदा की स्थिति में
घोषित लाभ और सहयोग की जरुरत तुरंत होती है |
आपदाओं का कुप्रभाव :- आपदा जब आती है तो अपने साथ न केवल जीवन, धन,
सम्पति का विनाश कर देती है बल्कि कई तरह की उम्मीदों और आशाओं का भी गला घोट देती
है, विकास की बात तो दूर, उनसे प्रभावित लोगों के लिए पुनः साधारण जीवनशैली का
वातावरण बनाना भी संभव नहीं हो पता है | मंजर इतना भयावह होता है की सह पाना
मुश्किल और कह पाना मुश्किल होता है | इन आपदाओं का कुप्रभाव क्या होता है, निचे
दिए गये विवरण से स्पष्ट है | सरकारी खजाने की क्षति के साथ - साथ
देश का विकास भी कुछ समय के लिए रूक जाता है, जो न केवल उस देश के लिए चिंता का
विषय है जो इससे प्रभावित हुआ रहता है, बल्कि उससे जुड़े समस्त देशो पर उसका प्रभाव
पड़ता है | आपदाओं के कुप्रभाव को निम्नांकित वर्गीकृत विवरण के द्वारा स्पष्टतः
समझा जा सकता है |
भौतिक
|
मनोवैज्ञानिक
|
सामाजिक-आर्थिक
|
लोगों का अंगभंग होना
लोगों का जलना
लोगों को चोट लगना
लोगों में संक्रमण
का होना
लोगों का
विषाक्तीकरण होना
जीवन का आसामायिक
समापन
|
अवसाद
शोक, विलाप, मातम
क्रोध
अपराध
उदासीनता
डर, आशंका
सिंड्रोम-जलने की वजह से
विचित्र व्यवहार
आत्महत्या
वियोग
चिंता
तनाव प्रतिक्रियाओं
शराब का सेवन
नौकरी का न होना
|
पर्यावरणीय विनाश
विप्लव/अव्यवस्था
स्वास्थ्य समस्याएं
बेघर
बेरोजगारी
|
अभी असामयिक वर्षा और ओले पड़ने की वजह से देश के कई हिस्सों में
फसलों की बर्बादी हो रही है, जो कही न कही आपदा का जीवंत उदाहरण है | आज किसान
आत्महत्या कर रहें है | इस तरह की आपदाओं की वजह से देश की प्रगति कुछ समय के लिये
रूक जाती है, जबकि व्यक्तिगत नुकशान कई तरह से होतें है | भारत एक कृषि प्रधान देश
है, और आज भी किसानो की इन तरह की समस्यायें का समाधान नहीं हो पा रहा है |
आपदा प्रबंधन की वर्तमान स्थिति : आपदा प्रबंधन के लिए विभिन्न सरकारी,
अर्द्ध – सरकारी, निजी क्षेत्र की कंपनियों एवं समाजिक संस्थाओं द्वारा भारतीय राष्ट्रीय
आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के नेतृत्व में कार्य किया जा रहा है | विभिन्न तरह की
युक्तियों को अपना कर लोगों को जागरूक किया जा रहा है, और घटनाओं को घटित होने के
पश्चात् सुविधाएँ प्रदान की जा रही है | कुछ आपदाएं आज भी नियंत्रण के बाहर है और
समय – समय पर घटित हो रही है | सरकार द्वारा इस क्षेत्र में किया गया प्रयास को
अत्यधिक प्रभावशाली बनाने के लिए इस क्षेत्र को बीमा से जोड़ने की जरुरत है | आपदा
प्रबंधन को निम्नाकित चित्र के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है |
बीमा के
माध्यम से आपदा प्रबंधन कैसे ? जब भी कोई आपदा आती है, उसके द्वारा कई तरह की क्षति होती है और यदि
गहराई में उसका अध्ययन किया जाय तो, यह ज्ञात होता है कि पर्यावरण को पुनः उसी रूप
में लाना अत्यंत ही चुनौतिपूर्ण कार्य होता है | जन की जो क्षति हो जाती है, उसे
वापस उसी रूप में नहीं लाया जा सकता परन्तु उसके अलावा सारी चीजो को सामान्य रूप
में लाने के लिए एक बड़ी धनराशी की आवश्यकता होती है | यानि की उस आपदा के पश्चात्
धन ही है, जो कुछ हद तक स्थिति को सही रूप में पुनः लाने के लिए मदद कर सकता है | सरकारी
प्राधिकारी (केन्द्र और राज्य), एन.जी.ओ.,
पूंजी बाजार, निजी क्षेत्र की कंपनियों के आलावा बीमा इस तरह की आपदाओं में एक
महत्वपूर्ण योगदान कर सकता है | जो बीमा और पुनर्बीमा के माध्यम से किया जा सकता
है | हालाँकि सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है, किसी भी आपदाओं का सामना करने की |
आपदा
प्रबंधन बीमा के माध्यम से करने पर, बीमा क्षेत्र के विकास के साथ साथ आपदा
प्रबंधन में भी मदद मिलेगी | आज आम लोगों के लिए समूह बीमा एवं सूक्ष्म बीमा के
रूप में छोटे ही सही पर विकल्प मौजूद है | साधारणतः बीमा को आपदा प्रबंधन में
जोड़ने पर प्रीमियम देने की समस्या सामने आ सकती है | बीमा कम्पनियाँ प्रीमियम के
आधार पर सुरक्षा प्रदान करती है, और जोखिम का अंकन भी करती है | आपदा प्रबंधन में
बीमा एक बेहतर बिकल्प हो सकता है | प्रारम्भ में कुछ समस्यायों का सामना जरुर करना
पड़ेगा, परन्तु लम्बी अवधि में वह अपना प्रभाव व्यापक रूप में दिखायेगा | आपदा
प्रबंधन बीमा के माध्यम से करने के लिए निम्न बिन्दुओं पर ध्यान देने से महत्वपूर्ण
सहयोग मिलेगा |
1. संभावित आपदा क्षेत्र में रहने वाले
लोगों के लिए बीमा अनिवार्य कर देना चाहिए, जिसमे प्रीमियम की 50 प्रतिशत हिस्सेदारी केंद्र/राज्य
सरकार करें और शेष उन क्षेत्रो में रहने वाले लोग | यदि इन क्षेत्रो का कोई
व्यक्ति बीमा नहीं लेता है, तो उसे उसकी सहमती के पश्चात् बीमे से बाहर रखा जाय
एवं आपदा के पश्चात् सुरक्षा राशि न प्रदान की जाय |
2. सूक्ष्म बीमा का प्रचार - प्रसार किया जाय जिससे
लोग इसे लेने के लिये स्वयं प्रेरित हों | हालाँकि इनमे मिलने वाली सुरक्षा कम है
पर यह लेने योग्य है, खास कर गरीबो के लिये |
3. आपदा वाले क्षेत्रो के लिये स्वास्थ्य, सामान्य,
एवं जीवन की सयुंक्त पॉलिसी का निर्माण करना चाहिये | इन पालिसियों में चूँकि
जोखिम अधिक होगा, अतः बीमा कंपनियां अधिक जोखिम के कुछ भाग को पुनर्बीमा कंपनी को
हस्तांतरित कर सकती है |
4. विभिन्न बीमा योजनाओं के बारे में लोगों
में जागरूकता लायी जाय |
5. प्राकृतिक जोखिम को बीमा में सम्मिलित
किया जाना चाहिये, चाहे स्थिति “एक्ट आफ गॉड” की वजह से ही क्यों न हो |
6. आतंकवाद से होने वाली हानि को भी बीमा
में सम्मलित किया जाना चाहिए |
7. जिन्हें बीमा की सबसे ज्यादा जरूरत है
(गरीब तबके के लोगों के लिए), उन लोगों के लिए बीमा खरीदने योग्य अर्थात कम प्रीमियम पर उपलब्ध
कराना चाहिये |
8. बीमा द्वारा सार्वजनिक, निजी भागीदारी
के साथ सयुंक्त रूप से मिलकर आपदा सरंक्षण देना चाहिये |
निष्कर्ष : यह शाश्वत सत्य है कि हम प्राकृतिक आपदाओं से
बच नहीं सकते हैं | हमें जितना संभव हो प्राकृतिक आपदाओं से और उससे होने वाले
नुकसान को कुछ हद तक कम करने के लिए भरसक प्रयत्न करना चाहिए | मानव रचित आपदाओं
को कुछ सावधानियों को अपनाकर हम कम कर सकतें है | हम सब को, सरकारों (केंद्र एवं
राज्यों), उद्योगों, देश के शैक्षणिक क्षेत्र, बीमा कंपनियां
एवं समाजिक संस्थायें आपसी सहयोग के माध्यम से "सुरक्षित भारत" बनाने का
सबसे अच्छा प्रयास करना चाहिये | इन आपदाओं को बीमा से जोड़ देने पर न केवल
व्यक्तिगत सुरक्षा प्राप्त होगी बल्कि लोगों में एक आत्मविश्वास का जन्म भी होगा |
सरकार को एक बड़ी धनराशी का सहयोग बीमा के माध्यम से मिल जायेगा, जिससे पुनः निर्माण
में सहायता मिलेगी | आपदाओं के प्रबंधन में बीमा एक विकल्प हो सकता है, साथ ही यह
भी आवश्यक है की आम लोगों को इन आपदाओं के बारें में जागरूक किया जाय | स्वास्थ्य,
संपत्ति और जीवन तीनों तरह के बीमा को इस क्षेत्र से जोड़ना अत्यंत आवश्यक है |
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