भूमिका : बीमा क्षेत्र के निजीकरण के पश्चात् से ही बीमा क्षेत्र में समय - समय पर व्यापक परिवर्तन देखने को मिलते रहें है | इन परिवर्तनों के माध्यम से विनियामक ने यह पूर्णरूप से प्रयास किया है, कि आम जनता का हित सर्वोपरी रहे, साथ ही साथ बीमा क्षेत्र का विकास भी तेजी से होता रहे | पर अब तक किये गए बदलाओं से यह प्रतीत हो रहा है कि, बीमा क्षेत्र अपनी बाल्य अवस्था में है, जिसे शिक्षित करने के लिए हर तरीके से प्रयास किया जा रहा है, यह कितना प्रभावशाली होगा इस क्षेत्र के विकास के लिये, यह आने वाला समय ही बयाँ करेगा | पिछले कई वर्षो से प्रतीक्षित कई मामले जो बीमा क्षेत्र के विकास के साथ – साथ भारतीय अर्थव्यस्था को मजबूती प्रदान कर सकते है को भारत सरकार ने अमलीजामा पहनाने का पूरा प्रयास इस अध्यादेश को राष्ट्रपति महोदय के द्वारा जारी करवा कर किया है | इस अध्यादेश में विदेशी होल्डिंग्स 26% से बढ़ाकर 49% कर दिया गया है जिसकी मांग उद्योग स्तर पर पिछले कई वर्षो से चली आ रही थी | बीमा क्षेत्र में अध्यादेश का सफर निम्नाकित है |

Ø  1991 : सरकार ने अपनी उदारीकरण नीति आरम्भ की |
Ø  1993-94 : सरकार ने मल्होत्रा कमेटी का गठन, राष्ट्रीयकृत बीमा क्षेत्र में सुधार और सुझाव देने के लिये किया | कमेटी ने यह संस्तुति दी की, इस क्षेत्र में निजी प्रतियोगिता को विदेशी निवेश के साथ (विदेशी स्वामित्व की अधिकतम निश्चित सीमा) प्रवेश दिया जाय |
Ø  1999-2000 :  बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण का जन्म, बीमा क्षेत्र को विनियमित और विकसित करने के लिये हुआ | भारत में बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा अधिकतम 26 प्रतिशत निर्धारित किया गया |
Ø  2004: कांग्रेस गठबंधन सरकार ने विदेशी निवेश की सीमा 26% से बढ़ाकर 49% करने का प्रस्ताव दिया , लेकिन विपक्ष पार्टी द्वारा इसका विरोध किया गया |
Ø  2008: कांग्रेस गठबंधन सरकार द्वारा बीमा कानून संशोधन विधेयक 2008 प्रस्तावित किया गया । इस अध्यादेश में कई तरह के सुधार प्रस्तावित थे, जिनमे एक विदेशी निवेश की सीमा में 26% से 49% तक सीमा बढ़ाना भी शामिल था |
Ø  2013: कांग्रेस गठबंधन सरकार विदेशी निवेश 49% की वृद्धि के लिए रूपरेखा बनाती है, लेकिन अंतिम बिल पारित नहीं हो पाता |
Ø  2014 (जुलाई-अगस्त): भाजपा पार्टी नेतृत्व वाली सरकार बीमा विधेयक पारित करवाना चाहती है, जबकि उसने इस बिल का विरोध कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में किया था, जब वो सत्ता में नहीं थे, ।  
Ø  2014 (दिसंबर): चयन समिति बीमा विधेयक में संशोधन का सुझाव देती हैं, लेकिन बीमा विधेयक संसद के शीतकालीन सत्र में पारित नहीं हो पाया, जो की 23 दिसंबर 2014 को समाप्त हो गया |
Ø  उपरोक्त के अलावा भारतीय बीमा विनियामक ने समय - समय पर परिवर्तन, बीमा क्षेत्र को विस्तृत और नियंत्रित करने के लिए किये है | प्राधिकरण का उद्देश्य आम आदमी के हितो को सुरक्षित रखने का प्राथमिक रहा है |

भारतीय बीमा कानून (संशोधन) अध्यादेश 2014 :- बीमा सुधारों को लागू करने की तत्कालिकता का हवाला देते हुए सरकार ने बीमा विधेयक पारित करने के लिए अध्यादेश मार्ग का उपयोग करके संसदीय गतिरोध को बायपास करने का फैसला किया । भारतीय संविधान राष्ट्रपति महोदय को आपातकालीन अस्थायी कानून पारित करने का अधिकार दिया हुआ है, जब संसद सत्र में नहीं हो | कैबिनेट ने अध्यादेश के जरिये विधेयक पारित करने की सिफारिश राष्ट्रपति महोदय से की । 26 दिसंबर 2014 को, राष्ट्रपति महोदय ने औपचारिक रूप से कैबिनेट की सिफारिश के आधार पर बीमा कानून संशोधित अध्यादेश 2014 पारित के लिए अनुमति दी एवं उसके पश्चात् यह प्रभाव में आया ।

बीमा कानून (संशोधन) अध्यादेश 2014 की मुख्य विशेषताएं :- बीमा विधेयक अध्यादेश वस्तुतः चयन समिति द्वारा संशोधित रूप में है |  इस अध्यादेश में हर छोटे बड़े पहलु को ध्यान में रखा गया है, जिससे देश में बीमा का विकास हो सके और भारतीय अर्थव्यस्था को बल मिल सके | सभी बीमाकर्ता को समान तरीके से नियमित किया जा सकेगा | मौजूदा कानून में निम्न मुख्य परिवर्तन अब लागु है |

Ø  बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण का नाम परिवर्तित कर अब भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण हो गया है |

Ø  विदेशी निवेश की सीमा 26% से 49% तक कर दिया गया है, हालांकि,  एक भारतीय बीमा कंपनी अभी तक भारतीयों द्वारा "नियंत्रित" किया जाना चाहिए। "नियंत्रण” की परिभाषा कंपनिय अधिनियम 2013 से लिया गया है | इसका इंतजार बीमा उद्योग काफी समय से कर रहा था |

Ø  विदेशी कंपनियों को भारत में पुनर्बीमा व्यापार करने के लिए और शाखाएं खोलने की अनुमति दी गयी है।

Ø  लॉयड को विदेशी पुनर्बीमाकर्ता की शाखा के रूप में भारतीय बाजार का उपयोग करने की अनुमति दी है।

Ø  प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण अब भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण के आदेश/निर्णय के खिलाफ अपील की सुनवाई करेगा |

Ø  अब पंजीकरण के बिना बीमा कारोबार करने पर जुर्माना लगाया जा सकता है।

Ø  वैधानिक और नियामक ढांचे के अन्य उल्लंघनों के लिए जुर्माना पहले से काफी बढ़ाया गया है।  

Ø  यह जीवन बीमा परिषद और जनरल इंश्योरेंस काउंसिल की स्थापना के लिए कहता है। वे बीमा क्षेत्र के लिए आत्म विनियमन निकायों के रूप में कार्य करेगे।

Ø  यह पीएसयू सामान्य बीमा कंपनियों को पूंजी बाजार से धन जुटाने के लिए अनुमति देता है |
Ø  यह, जीवन बीमा पॉलिसी की विक्री के तीन साल की अवधि के बाद किसी भी आधार पर जीवन बीमा पॉलिसी को चुनौती देने से एक बीमा कंपनी पर प्रतिबंध लगाता है।

Ø   इस अध्यादेश के माध्यम से बहुत सारे पुराने नियमो को या तो पूर्णरूप से हटा लिया गया है या उनमे परिवर्तन कर दिया गया है, साथ ही बहुत सारे नए नियमो का भी उल्लेख है |

अध्यादेश का प्रभाव :-  आने वाले कुछ दिनों में बीमा व्यवसाय में इस अधिनियम की वजह से एक नयी गति मिलेगी जो न केवल पॉलिसी होल्डर, बीमा सलाहकार, बीमा कंपनियों के हित में होगी बल्कि देश के आर्थिक विकास में भी सहायक होगी | हमारे माननीय वित्त मंत्री जो को इस बारे में भी विचार करना चाहिए की आयकर की धरा 80 सी में जहाँ - जहाँ निवेश करने पर छुट मिलती है उन सारे विकल्प में सेवाकर की वसूली नहीं की जाती, जबकि बीमा क्षेत्र ही ऐसा है जो आयकर की धारा में छुट तो मिलती है, पर इसमें सेवाकर की वसूली भी की जाती है | यदि सेवाकर को इस उद्योग से हटा दिया जाय तो निश्चित ही बीमा क्षेत्र का आशातीत विकास हो सकता है |  .

4 मार्च 2015 को यह अध्यादेश लोकसभा में पारित हो चूका है | अध्यादेश ने, बीमा अधिनियम 1938, सामान्य बीमा कारोबार (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1972 और बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीए) अधिनियम, 1999 में संशोधन किया है | यह एक स्वागतयोग्य रिफार्म है | यह देखना दिलचस्प होगा की इस अध्यादेश के माध्यम से उपलब्ध अवसर का लाभ कितने बीमाकर्ता ले पायेंगे, कितने, मौजूदा भारतीय बीमाकर्ता अपनी शेयरहोल्डिंग बढाने के लिए आगे आते है, और कितने बीमाकर्ता और अधिक इंतजार करेगे स्थायी व्यावसायिक पर्यावरण सामने आने का ।
 

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