भारत का संविधान में अंकित है कि- ‘‘हम भारत के लोगभारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्नसमाजवादीपंथनिरपेक्षलोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिकआर्थिक और राजनीतिक न्यायविचारअभिव्यक्तिविश्वासधर्म और उपासना की स्वतंत्रताप्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बात बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर इस संविधान सभा को अंगीकृतअधनियमित और आत्मविश्वास करते हैं।’’

भारत के संविधान निर्माण के बाद लगातार उसमें गिरावट आ रही है। भारत जब अपना 66 वां गणतंत्र दिवस मना रहा है तो मीडिया में यह चर्चा हो रही है कि मुख्य अतिथि की सुरक्षा की स्थिति क्या होगीकहां ठहरेंगेक्या खायेंगेकैसे हाथ मिलाया तो कैसे गले मिलेकिस से कितने देर बात की आदि,आदि। इस पर किसी तरह की चर्चा नहीं हो रही है कि संविधान ने जो अधिकार जनता को दिया है वह मिल रहा है कि नहीं। गणतंत्र दिवस के पहले ही दिल्ली को किले में तब्दील कर दिया गया था। दिल्ली की आम जनता को सड़कमेट्रोदफ्तरबाजार इत्यादि जगहों पर भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। आम जनता को कभी यह महसूस नहीं हुआ कि गणतंत्र आम लोगों के लिए है। हमारे यहां गण को दूर करके गणतंत्र मनाने की परम्परा चल रही है।

भारत का संविधान भारत को प्रभुत्व सम्पन्न कहता है। लेकिन यह कैसा प्रभुत्व है जब आपका मुख्य अतिथि आता है तो आप के बनाये हुए नियम को तोड़ता है और आप उसके हर फैसले को सिर झुकाकर मानते हैं। भारत की परम्परा रही है कि गणतंत्र के मुख्य अतिथि भारत के राष्ट्रपति की गाड़ी में साथ-साथ आयेंगेलेकिन ओबामा जी इस नियम को तोड़ते हुए अपनी गाड़ी में आये। ओबामा के अगारा जाने के कार्यक्रम के कारण पूरे अगारा के लोगों को तीन घंटे के लिए बंधक बनाने का प्रोग्राम बन चुका था। अगारा का कार्यक्रम रद्द हो गयानहीं तो तीन घंटे में कई लोगों की जानें भी जा सकती थी,क्योंकि मोबाईल टावर बंद कर दिये जातेआवागमन पर रोक होती। इस तरह के बंधन से किसी को अचानक दिल के दौड़े पड़ने या डिलेवरी जैसी घटना में समय से अस्पताल पहुंचाना कठिन हो जाता ओबामा की सुरक्षा में लगे एक अधिकारी के अनुसार- ‘‘मैं पिछले 30 साल से कार्यरत हूं और इससे पहले कई उच्चस्तरीय विदेशी प्रतिनिधिमंडल के लिए सुरक्षा बंदोबस्त कर चुका हूं। अन्य देशों की सुरक्षा एजेंसियो में मेरे कई अच्छे दोस्त हैं लेकिन अमेरिकी खुफिया विभाग के एजेंटों का बर्ताव बहुत रूखा और दबंग किस्म का है। इससे यह पता चलता है कि ये हमें महत्व देना नहीं चाहते। अमेरिकी खुफिया विभाग के एजेंट हमारी सभी सुरक्षा तैयारियों में हस्तक्षेप कर रहे हैंस्वयं को अधिक सक्षम और निपुण दिखाने की कोशिश कर रहे हैं।’’ भारत जब इतना दबाव में काम कर रहा है तो यह सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न देश कैसे हुयेएक व्यक्ति के लिए हम एक शहर को ही बंधक बना रहे हैं। लेकिन भारत का शासक वर्ग इतने से खुश हैं कि दुनिया का सबसे ताकतवर देश का शासनाध्यक्ष आया हुआ है।

भारत के संविधान में जो भी अधिकार आदिवासियोंदलितांेमजदूरोंकिसानों को दिया गया है उसको एक-एक कर के छिना जा रहा है। संविधान में दर्ज अधिकारों को पाने के लिए आज लोगों को आंदोलन करना पड़ रहा है। संवैधानिक अधिकार देने के बदले आंदोलनरत भारत की जनता को लाठी और गोलियां की सौगात दी जा रही हैंफर्जी केसों में डाल कर उनके अधिकारों का हनन किया जा रहा है। खासकरआदिवासियों को जो अधिकार संविधान ने दिया है उसकी खुलेआम मजाक उड़ाई जा रही हैउनके जंगल और जमीन को पूंजीपतियों के हवाले किया जा रहा है। महिलाओं की यौनिक हिंसा दिनों-दिन बढ़ती जा रही हैयहां तक कि कानून के रखवाले भी यौनिक हिंसा कर रहे हैं। इस संविधान के रखवालों द्वारा महिला कैदी के गुप्तांगों में पत्थर डालने वाले पुलिस अधिकारियों को मेडल देकर सम्मानित भी किया जाता है। श्रम कानूनों में बदलाव कर मजदूरों के अधिकारों को छीना जा रहा है और जब वे अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाते हैं तो उनको जेलों में डाल दिया जाता है। पिछले साल रेहड़ी-पटरी कानून बना थाजिससे देश में कुल करीब 4 करोड़ के आस-पास लोगों को फायदा होना था। लेकिन वह कानून दिल्ली में भी लागू नहीं हो पाया। गणतंत्र दिवस की सबसे ज्यादा मार इन्हीं दुकानदारों पर पड़ा- जो रोज कमाते-खाते हैं। जनवरी के दूसरे सप्ताह से ही इनकी दुकानों को बंद करा दिया गया। लाजपत नगर मार्केट में 1000 से अधिक रेहड़ी-पटरी दुकनदार हैं जो प्रति सप्ताह जगह के हिसाब से पुलिस को 200 से लेकर 1000 रू. तक देते हैं। इसके अलावा वे एमसीडी को 1500 रु. प्रति माह देते हैं। अपनी गाढ़ी कमाई में से पैसा देना भी उनको काम नहीं आया। उनको पुलिस परेशान कर रही हैपकड़ कर ले जा रही है और झूठे झगड़े के केस में फंसा कर जेल में डाल रही है। फाईन दे कर जब वे लोग बाहर आ रहे हैं तो पुलिस धमका रही है कि 26 जनवरी तक दुकानें मत लगाना। ये रोज कमाने-खाने वाले लोग हैंअब इनके सामने रोटी की समस्या आ गई है। उनको डर है कि 26 जनवरी के बाद भी दुकान नही लगी तो बच्चों की पढ़ाई समाप्त हो जायेगी। क्या इन लोगों का भी इस गणतंत्र में कोई अधिकार है?

गणतंत्र के रक्षक ऐसे हैं जो किसी भी असहमति की आवाज को बर्दाश्त नहीं करते हैं। गण की बात छोड़ दीजियेअब तो तंत्र की असहमति की आवाज भी नहीं सुनी जा रही है। यही कारण है कि गणतंत्र दिवस के परेड में पश्चिम बंगाल की झांकी नहीं दिखायी गई। पश्चिम बंगाल की झांकी ममता बनर्जी द्वारा चलाई जा रही कन्या श्री’ योजना पर थी जो कि मोदी के बेटी बचाओबेटी पढ़ाओ’ योजना से मिलती है। इसलिए इस झांकी को परेड में शामिल नहीं किया गया।

भारत के प्रथम राष्ट्रपति ने भारतीय गणतंत्र के जन्म के अवसर पर कहा था- ‘‘हमें स्वयं को आज के दिन एक शांतिपूर्ण किन्तु एक ऐसे सपने को साकार करने के प्रति पुनः समर्पित करना चाहिएजिसने हमारे राष्ट्रपिता और स्वतंत्रता संग्राम के अनेक नेताओं और सैनिकों को अपने देश में एक वर्गहीन,सहकारीमुक्त और प्रसन्नचित्त समाज की स्थापना के सपने को साकार करने की प्रेरणा दी। हमें इस दिन यह याद रखना चाहिए कि आज का दिन आनन्द मनाने की तुलना में समर्पण का दिन है- श्रमिकों और कामगारोंपरिश्रमियों और विचारकों को पूरी तरह से स्वतंत्रप्रसन्न और सांस्कृतिक बनाने के भव्य कार्य के प्रति समर्पण करने का दिन है।’’ राजेन्द्र प्रसाद की बात क्या सच होती दिख रही हैयहां तो मेहनतकश जनता को सम्मान देना तो दूर की बात हैउनके साथ इन्सान जैसा व्यवहार नहीं किया जाता है। वर्गहीन समाज की जगह संसद में भी करोड़पतियों-अरबपतियों के साथ-साथ क्रिमनलों (जिन पर बलात्कारकत्ल व दंगे जैसे संगीन अपराध दर्ज हैं) की संख्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। राजनीति में कुछ परिवारों का वर्चस्व बढ़ा है। बापू को मारने वालों को देशभक्त बताया जा रहा है। संसदविधान सभाओं में हंगामामार-पीटपोर्न साईट देखने की घटनांए हो रही हैं। अध्यादेश लाकर जनता के उपर कानून थोप दिया जा रहा है। गणतंत्र इनके लिए समर्पण का नहींआनन्द मनाने का दिन है। गणतंत्र दिवस में अगली पंक्ति में बैठने वाले अपने को गर्वानित महसूस करता है और बोलता है कि अपना-अपना भाग्य है। इनमें जनता के सेवक नहींसम्राट दिखाने की लालसा होती है। कार से उतरने के बाद बाराक ओबामा बारिस से बचने के लिए जहां खुद छतरी हाथ में लिये थेवहीं भारत के प्रधान सेवक के पीछे एक सेवक छतरी लेकर खड़ा था।

भारत का संविधान जो लिखा गया थाउसको 66 वर्ष होते-होते शासक वर्ग ने खारिज कर दिया है और वह अपने अघोषित संविधान पर काम कर रहा है जिसमें से गण को गायब कर गण विरोधी तंत्र को मजबूत बनाया जा रहा है।

Post a Comment

If you have any doubts, please let me know

और नया पुराने