फिर से नया साल, फिर से नई उम्मीद, फिर से
आपस में शुभकामनाओं का आदान – प्रदान, यही तो है नव वर्ष 2015 जिसे हम पिछले कई दिनों
से जोरशोर से, उत्साह से मना रहें है | पर सही मायने में क्या हमें नया साल मानना
चाहियें ? कुछ लोग कह सकते है हाँ, कुछ कह सकते है नहीं | पर यदि हम पिछले दो दशको पर प्रकाश डाले तो
हमारे देशवासी विदेशी संस्कृति के प्रभाव में जकड़ते जा रहे है | हम भारतीय सभी
धर्मो को मानने वाले है और हम सब की ख़ुशी में अपनी ख़ुशी समझते है |
यह सास्वत सत्य है कि नया वर्ष मनाने की परम्परा
हमारे यहाँ विदेशो से आयी है, और इसे मनाने में किसी को कोई ऐतराज भी नहीं होना
चाहिए, पर क्या हम विदेशी संस्कृति के चक्कर में अपने आदर्श विश्व प्रसिद्द अपनी
संस्कृति को भूल जाएँ, क्या ऐसा करना अपने आप को धोखा देना नहीं है | जिस उल्लास,
उत्साह से हम विदेशी नव वर्ष मनाते है उससे बढ़ कर हमें अपने नव वर्ष और पर्व
त्यौहार को मनाना चाहिए | जिससे हमारी संस्कृति का वजूद बचा रहे |
पुनः इस मुद्दे पे वापस आते है की नया
वर्ष हमें मनाना चाहिए या नहीं | कोई भी व्रत त्यौहार पर्व चाहे वह स्वदेशी हो या
फिर विदेशी हमें एकता, सुविचार अपने में मजबूत विश्वास को बनाये रखने की प्रेरणा
देता है | सब परिवर्तन चाहते है पर अपने में नहीं बल्कि समाज में | जरुरत है तो
सिर्फ और सिर्फ एक एक इन्सान में परिवर्तन की वो परिवर्तन अपने लिए हो सकता है,
अपने परिवार समाज और देश के लिए जो न केवल आपकी उपस्थिति को मजबूत करेगा बल्कि आप
औरो के लिए प्रेरणा स्रोत बन जायेगे |
आनंदमय होकर सारे पर्व उल्लास से मनाये
साथ ही यह याद रखे की उस धर्म पर्व का जो मूल उद्देश्य है उसे समझकर अपने जीवन में
धारण करने का प्रयास करें | “HAPPY NEW YEAR -
2015”
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