क्या आज शिक्षा के
मायने बदल गयें है, या फिर शिक्षा ही बदल गयी है | आज जहाँ ग्रामीण लोग मुश्किल से
अपने बच्चो को उच्च शिक्षा दिला पा रहें है और वो भी इस उम्मीद में की बेटे का
भविष्य उज्जवल होगा | पर वास्तव में ऐसा नहीं हो रहा लोग स्नातक तो हो जा रहें है
पर रोजगार के लिए दर-दर भटक रहें है | इसमें किसका दोष निकाला जाय शिक्षा का या
फिर सरकार का जो रोजगार की सुविधा नहीं मुहैया करा पा रही है, नतीजन लोग योग्यता
के अनुसार नहीं बल्कि जीवन यापन के लिए कुछ भी करने लगते है, जो न उन्हें उनकी
योग्यता के अनुरूप सही लगता है न उन्हें मानसिक संतुष्टि देता है |
आज प्रत्येक छोटे
कस्बो में अच्छे पढ़े लिखे लोग या तो बेरोजगार दिखेगे या फिर कुछ ऐसा काम करते हुए
जो कहीं न कहीं शिक्षा का मजाक बन कर रह गया है | कुछ लोग कहते है की अगर आप में
प्रतिभा है तो आपको रोजगार जरुर मिल जायेगा | मै उन लोगो से जानना चाहता हूँ कि
जिस इन्सान ने गाँव में सरकारी व्यवस्था में शिक्षा ली उसका क्या कसूर की उसे
रोजगार न मिले | और तो और प्रतिभा को दिखाने के लिए अवसरों का होना बहुत जरुरी है जो
की या तो आज है नहीं या है तो नाम मात्र या फिर बिकाऊ, जिसे आम आदमी नहीं खरीद
सकता |
मेरा मानना है की आज
समस्या लोगों में नहीं है बल्कि हमारी शिक्षा प्रणाली में है जो आज हमें एस काबिल
नहीं बना पा रहा है कि हम अपना जीवन निर्वहन कर सकें, आधुनिक सुख सुविधाए तो दूर
की बात, रही सही कसर राज्य सरकारें एवं केंद्र सरकार कर दे रहें है रोजगार के लिए
नए इकाई का सृजन न करके | आकडे बुक में तो अच्छे दिखेगे, पर जमीनी हकीकत कुछ और ही
है | इन ऑटो चालको से बात करके मुझे अपार कष्ट हुआ, इसलिए ये टिपण्णी कर रहा हूँ
साथ ही भारत सरकार से इस ब्लॉग के माध्यम से निवेदन कर रहा हु की शिक्षा का रूप
परिवर्तित किया जाए और रोजगार के साधन व्यापक रूप में सामने लाये जाय जिसससे देश
और समाज का विकास हो सकें |
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